बुधवार, 24 दिसंबर 2014

समझौता


इस सियासत की तिजारत में सभी कुछ खोकर,
किसी जागीर, रियासत का, तलबगार नहीं।
हाँ! इलेक्शन में फिर इक बार जो मुंह की खाऊं,
मुझको ओहदा-ए-गवर्नर जो मिल जाये, तो इंकार नहीं।।

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आप अँधा कहें मुझको, कोई ऐतराज़ नहीं,
रेवड़ी-बाँट का ठेका, जो मुझे दिलवा दें.