शनिवार, 30 अप्रैल 2016

आईआईटी में संस्कृत


एक साहब को आईआईटी में संस्कृत-शिक्षा थोपे जाने पर आपत्ति है. मैं भी इस मामले में उनके साथ हूँ. किन्तु अपना तर्क प्रस्तुत करते समय जब वो संस्कृत भाषा का उपहास उड़ाते हैं और यह कहते हैं कि - 'हिंदी शब्दों में 'म' लगाते जाओ तो वह संस्कृत बन जाती है' तो मुझे उनकी बुद्धि और उनकी परिहास-शैली पर बहुत तरस आता है. एक फारसी शेर प्रस्तुत है -
'बुत परस्तम, काफिरम, अज़ अहले ईमां नीस्तम,
सूए मस्जिद मी रवं, अम्मा मुसलमां, नीस्तम.'
अब क्या हम यह कहें कि हिंदी, उर्दू में 'म' लगाते जाओ तो वह फ़ारसी बन जाती है. उर्दू के बारे में कहा जाता है कि मुंह में पान रखकर हिंदी बोलो तो वह उर्दू हो जाती है. यह भी कहा जाता है कि अगर गरारे करते हुए हिंदी बोलो तो वह तमिल हो जाती है, अगर कनस्तर में रखकर कंकड़ बजाओ तो उससे कन्नड़ निकलती है. बंगला भाषा के उदगार 'की कोरचे' को तीतर की ज़ुबान बताने का बीरबल वाला किस्सा हमने बचपन में सुना था. वास्तव में भाषाओं का उपहास उड़ाने वाले अपने संकुचित दृष्टिकोण और अपनी बुद्धि-हीनता का ही परिचय देते हैं. लेकिन ऐसे कट्टर-पंथियों के उदय के लिए विभिन्न सरकारों की भाषा नीतियां भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार हैं. हमारी यही भाषा नीतियां हैं जिन्होंने चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसे हिंदी के प्रचारक को हिंदी का प्रबल विरोधी बना दिया, 1966 में हिंसक भाषा आन्दोलन को फलने-फूलने दिया. अब हर जगह संस्कृत थोपने की कोशिश पता नहीं कितने संस्कृत भाषा के दुश्मन पैदा कर देगी.

मंगलवार, 26 अप्रैल 2016

मोहे रंग दे

मोहे रंग दे -
1. नेताजी -‘भाइयों और बहनों, जिस दिन हमारे देश की माताओं, बहनों और बेटियों में देशभक्ति की भावना जागृत हो जाएगी उस दिन हमारा देश विश्व का सबसे अग्रणी देश बन जाएगा.’
आम आदमी - ‘आप यह क्या कह रहे हैं? क्या हमारी माताओं, बहनों और बेटियों में देशभक्ति की भावना नहीं है?’
नेताजी - ‘कहाँ है? वो तो पहनती है लाल और हरी चूड़ियाँ, कितनों को तुमने भगवा चूड़ियाँ पहने देखा है?

2. गुरूजी - ‘देशभक्ति की व्याख्या करो.’
छात्र – ‘ कौन सी गुरूजी? हरी वाली, लाल वाली या भगवा?’
3. गुरूजी –‘कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो’ के लेखक कौन हैं?’
छात्र – ‘कबीरदास.’
गुरूजी – ‘क्या मार्क्स और एंजेल्स के नाम तुमने नहीं सुने?’
छात्र – ‘इनके नाम तो मैंने सुने हैं पर इन से बहुत पहले कबीर कह गए हैं –

‘लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित, लाल,
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई, लाल.’

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

गुनाहे-अज़ीम

गुनाहे-अज़ीम
‘क्या यह खबर सच है कि रबर स्टाम्प बनाने वाला कमरुद्दीन गिरफ़्तार कर लिया गया है?’
‘हां, यह खबर सच है.’
‘पर उस बेचारे का क़ुसूर क्या था?’
‘उसने अपनी दुकान पर यह साइन बोर्ड लगा रक्खा था – यहाँ दस मिनट में रबर स्टाम्प तैयार किए जाते हैं.’
‘ऐसा साइन बोर्ड लगाना भी कोई गुनाह हो गया?’
‘ये मामूली गुनाह नहीं बल्कि गुनाहे-अज़ीम था.’
‘वो कैसे जनाब?’
‘कमबख्त ने इस इबारत के ऊपर, राज्यपालों, राष्ट्रपतियों और हमारे मौनी बाबा की फ़ोटो लगा रक्खी थी,’          

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

सुहाग

सुहाग –
मैंने 5 वर्ष लखनऊ विश्वविद्यालय में और 31 वर्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय में अध्यापन किया है लेकिन मैं कभी भी विभागाध्यक्ष की कुर्सी पर नहीं बैठा. आज तो विश्वविद्यालयों में रोटेशनल हेडशिप का चलन है लेकिन मेरे सेवा-काल में एक बार जो विभागाध्यक्ष बन जाता था वो अवकाश-प्राप्ति तक उस कुर्सी पर जमा रहता था. आमतौर पर विभागाध्यक्ष अपने अधीनस्थ अध्यापकों पर अपने पद का जम कर रौब गांठा करते थे और अपने अधिकारों का भरपूर दुरुपयोग भी करते थे. अपनी बेबसी पर मैंने एक शेर कहा था –
‘कौन कहता है, तबाही का सबब मिलता नहीं,
जो चिपक जाता है, कुर्सी से, कभी हिलता नहीं.’
मेरे एक विभागाध्यक्ष मुसोलिनी के चचेरे और हिटलर के सगे भाई थे. मैं एक बार शरदावकाश के बाद 10.30 पर विभाग पहुंचा. मैंने विभागाध्यक्ष महोदय को नव-वर्ष की शुभकामनाएं दीं तो उन्होंने अपने दांत निपोर कर मुझसे कहा –
‘मैंने आपका बहुत देर इंतज़ार किया, आप 10.00 के बजाय 10.20 तक नहीं आए तो मैंने डीन से आप के समय से न आने की रिपोर्ट कर दी है.’
मेरे एक मित्र के साथ तो और भी बड़ा हादसा हुआ. वो छुट्टी लेकर अपने घर गए फिर उन्होंने अपने पिताजी की बीमारी का हवाला देकर अपनी छुट्टी बढ़ाने के लिए विभागाध्यक्ष को टेलीग्राम किया पर उन्होंने तुरंत जवाबी टेलीग्राम किया –
‘लीव नॉट ग्रांटेड’
इस जवाबी टेलीग्राम पर भी मित्र जब वापस नहीं आए तो विभागाध्यक्ष ने कुलपति और कुलसचिव को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में केवल इतना लिखा –
‘डॉक्टर -------- इज़ एब्सकोंडिंग.’
एकाद साल तो मैंने अपने आक़ा के ज़ुल्मो-सितम बर्दाश्त किए पर फिर मैं अंजाम की परवाह किए बगैर बागी हो गया. माई-बाप की हर घुड़की का बे-अदबी के साथ जवाब देना मैंने अपना फ़र्ज़ मान लिया.
हम लोगों के झगड़े हमारे कैंपस में कई बार चर्चा में आए और कई बार कुलपति तक भी पहुंचे पर हम दोनों योद्धाओं ने अपनी-अपनी तलवारें म्यान में नहीं रक्खीं पर जब विभागाध्यक्ष महोदय को इस अनवरत विभागीय झगड़े के कारण कुलपति महोदय से झाड़ कहानी पड़ी तो हमारे खूनी चंडाशोक, शांति-पुजारी, धम्माशोक बन गए. उन्होंने अपने विभाग के सभी अध्यापकों को अपने कक्ष में बुलाया, प्यार से हम सबको बिठाया, जल-पान कराया फिर बहुत ही मीठे स्वर में वो मुझसे कहने लगे –
‘जैसवाल साहब, आपका खून बहुत गर्म है, बुरा मत मानिएगा, आप थोड़े इम्प्रैक्टिकल और थोड़े ना-समझ भी हैं. देखिए, विभागाध्यक्ष से हमेशा बनाए रखने में ही आपका फ़ायदा है. विभागाध्यक्ष, अपने अधीनस्थ अध्यापकों के लिए वही हैसियत रखता है जो एक पति, अपनी पत्नी के लिए रखता है.’
मैंने नम्रता से पूछा –
‘सर, क्या मैं यह समझूं कि आप हमारे सुहाग हैं?’
सर ने जवाब दिया –
‘यही समझ लीजिए कि मैं आप सब का सुहाग हूँ. क्या आप अपने सुहाग की सलामती की दुआ नहीं करेंगे?’
मैं अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया और उनसे हाथ जोड़कर बोला –
‘सर, जान-बक्शी हो तो मैं सच-सच बोलूँ?’
हेड साहब ने अभयदान दिया तो मैंने कहा -
‘मैं अपने साथियों की तो नहीं जानता पर खुद मैं तो वो सुहागन हूँ जो कि भगवान से रोज़ ही अपना सुहाग उजड़ने की प्रार्थना करती है.’

मेरे ह्रदय के सच्चे बोल सुनकर हमारे सुहाग का पारा फिर आसमान पर चढ़ गया और हमारे विभागीय दाम्पत्य-जीवन में शांति-स्थापना का उनका यह प्रयास हमेशा-हमेशा के लिए निष्फल हो गया.        

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

लाजवाब

लाजवाब
हमारी सरकार में क्या पांच-छह कैबिनेट मिनिस्टर्स ही हैं?’
नहीं तो, प्रधान मंत्री के अलावा दो दर्जन से भी ज़्यादा कुल कैबिनेट मिनिस्टर्स हैं.

कुछ के नाम बताइए.

श्री फ़लां, फ़लां, फ़लां, श्रीमती फ़लां, फ़लां, कुमारी फ़लां ---
अच्छा ये सब कैबिनेट मिनिस्टर्स हैं? फिर ये लोग ऑफिसों के बाहर पड़े स्टूलों पर क्यूँ बैठते हैं?’
नो वैकेंसी -
'
सुना है आपके यहाँ शेख-चिल्ली की पोस्ट खाली है?
'
नहीं भाई, वो तो क़रीब दो साल पहले ही भर गई है.'

सोमवार, 4 अप्रैल 2016

वर्ड कप - 2

फ्री हिट -
मजनू ने लैला को छेड़ा तो लैला ने उसको दो झापड़ रसीद किए.
मजनू ने विनम्रता से लैला से पूछा –
‘मैडम, आप क्रिकेट नहीं देखतीं क्या? नो बॉल करने पर बैट्समैन को एक ही फ्री हिट मिलता है, दो नहीं.’
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टॉस –
मजनू ने लैला को दुबारा छेड़ा तो लैला के दो भाइयों ने उसकी जमकर धुनाई की फिर एक ने उसे हवा में सिक्के की तरह उछाल दिया. धड़ाम से नीचे गिरने के बाद कराहते हुए मजनू उठा और लैला के भाइयों के पास जाकर उनसे पूछने लगा –
‘भाई लोगों, ये तो बताओ, तुम में से टॉस कौन जीता?
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माफ़ कीजिएगा कैफ़ी साहब -
‘मगर उसने रोका, न मुझको बुलाया, न दामन ही पकड़ा, न आवाज़ ही दी, मैं आहिस्ता, आहिस्ता बढ़ता ही आया. यहाँ तक कि उससे जुदा हो गया मैं, जुदा हो गया मैं.’
’भाई साहब, अपनी माशूक़ा को क्या आप अंपायर, और खुद को वेस्टइंडीज़ वो बैट्समैन समझ रहे थे जिसे कि नो बॉल पर आउट डिक्लेयर कर दिया गया हो और फिर अपनी गलती का एहसास होने पर अंपायर द्वारा जिसे वापस बुलाकर फ्री हिट भी दे दिया गया हो.    
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3 अप्रैल, 2016 - अंग्रेज़ो ! खाली हाथ, भारत छोड़ो.
अंग्रेजों का ब्रेथवेट से प्रश्न -
'
क्यों रे ब्रेथवेट के बच्चे ! ऐसी भी क्या जल्दी पड़ी थी? प्लेन तो तुझे कल का ही पकड़ना था.'
अंग्रेज़ गब्बर का ब्रेथवेट से अनुरोध - 'ये हाथ हमको दे दे ठाकुर ब्रेथवेट !'
छात्रों को गुरूजी की फटकार -
'
मूर्खो, वेस्टइंडीज़ के लिए 'थ्री चियर्स' क्यों बोल रहे हो? 'फ़ोर चियर्स' कहो. ब्रेथवेट ने लगातार चार सिक्स़र लगाए थे.'

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2016

वर्ड कप पंचनामा

वर्ड कप पंचनामा –
1. हम हार गए, यह खबर फैलाकर कहीं कोई हमको April Fool तो नहीं बना रहा? और अगर यह खबर पक्की भी है तो क्या? ये देखो आतिशबाज़ी और पार्टी-शार्टी का कितना खर्चा बचा.    
2. हमारी तरफ से वेस्टइंडीज़ के क्रिकेटर्स पर ह्यूमन राइट्स वायोलेशन का मुकद्दमा दर्ज किया जाएगा.
3. यह लड़ाई कोहली और गेल के बीच में थी और सब जानते हैं कि इसमें कौन जीता.
4. ये वेस्टइंडीज़ वाले दर्शकों को कैच पकड़ने की प्रैक्टिस क्यूँ करा रहे थे? वैसे अगर दर्शकों को अपनी-अपनी सीटों पर ही कैच पकड़ने का हक़ मिल जाता तो हम कभी नहीं हारते.
5. हम तो जानबूझ कर हारे. हमारी संस्कृति और हमारी परंपरा है –‘अतिथि देवो भवः.’