शुक्रवार, 31 जनवरी 2020

दो गुस्ताखियाँ


नई बिहारी सतसई
गुरु जी –
गोपेश मोहन जैसवाल, बिहारी का कोई दोहा सुनाओ
गोपेश मोहन जैसवाल - 
 या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय,
ज्यौं-ज्यौं बूड़ै स्याम रँग, त्यौं-त्यौं उज्जल होय.
अरे राम-राम ! तुमने क्या गलत-सलत दोहा सुना दिया ! अब इस दोहे का संशोधित संस्करण इस प्रकार है - 
या अनुरागी चित्त की, गति समुझै हर कोय,
हमसे सहमत ना अगर, गोली मारूं तोय.
1.     अप्रशिक्षित निशानेबाज़ –

बेचारे का निशाना ज़रा सा चूक गया. अगर वह गोडसे दादा जी से पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण ले लेता तो उस से ऐसी चूक कभी नहीं होती !  


शुक्रवार, 24 जनवरी 2020

लिबास-ए-उरयानी (दिगम्बरत्व)

लिबास-ए-उरयानी (दिगम्बरत्व)

अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना से क्षमा याचना के साथ -
सत्ता-दल, प्रतिपक्ष में, व्यर्थ आपसी जंग,
सियासती हम्माम में, हर कोई नंग-धड़ंग.
मिर्ज़ा ग़ालिब से क्षमा याचना के साथ -
सियासत में नहीं है फ़र्क, रेशम और खादी का,
ये दौर-ए-नंगई, इसमें कहाँ, कपड़े ज़रूरी हैं !.

सोमवार, 20 जनवरी 2020

नेताओं की मत बात सुनौ



अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानप बाँक नहीं,
तहाँ साँचे चलैं तजि आपनपौ, झिझकैं, कपटी, जे निसाँक नहीं.
घनआनंद प्यारे सुजान सुनौ, यहाँ एक ते दूसरो, आँक नहीं,
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हौ लला, मन लेहु पै देहु छटाँक नहीं.
घनानंद से क्षमा-याचना के साथ -
अति टेढ़ो सियासत-मारग है, जहाँ नेकु सराफत, बांक नहीं,
छल-कपट बिना इस धंधे में, मिलिहै सत्ता की फांक नहीं.
नेताओं की मति बात सुनौ, इन तें तो, डाकू-चोर भले,   
इन में तोला भर लाज नहीं, अरु आतमा, एक छटांक नहीं.       

बुधवार, 15 जनवरी 2020

मोहिनीअट्टम

1987 में रचित मेरी एक कविता
मोहिनी अट्टम -
पद-धारी साहित्यकार की लीला, अपरम्पार है,
अपनी छवि पर स्वयम् मुग्ध है, बाकी सब बेकार है.
तुलसी को कविता सिखलाता, प्रेमचन्द को अफ़साना,
वर्तमान साहित्य सृजन का, अनुपम ठेकेदार है.
चाहे जिसका गीत चुरा ले, उसको यह अधिकार है,
बासे, सतही, कथा-सृजन से, भी तो कब इन्कार है.
प्रतिभा का संहारक है, भक्तों का तारनहार है,
नेता, अफ़सर के कहने पर, करता सब व्यापार है.
ज्ञानदीप को बुझा, तिमिर का, करता सदा प्रसार है,
शिव के वर से, सत्ता का, उसको, चढ़ गया बुखार है.
पुनर्जन्म लो आज मोहिनी, अपनी लीला दोहरा दो,
नवलेखन के भस्मासुर का, एक यही उपचार है.

शनिवार, 4 जनवरी 2020

डील ही डील

लखनऊ में हमारे पड़ौसी, हमारे हम-उम्र, हमारे पक्के दोस्त, बिहारी बाबू एक केन्द्रीय शोध संस्थान में वैज्ञानिक थे. उनका वर्तमान और भविष्य दोनों ही उज्जवल थे. उनके अपने ही शब्दों में –
‘मैं शहरे-लखनऊ में अपनी बिरादरी का मोस्ट एलिजिबिल बिहारी बैचलर हूँ.’
हमारे मित्र का शादी के बाज़ार में आज से चालीस साल पहले भी लाखों में भाव था. चुंगी नाके के मुंशी के रूप में कार्यरत उनके बाबूजी एक अदद मोटी मुर्गी टाइप सुकन्या की तलाश में पिछले एक साल से लगे थे लेकिन लाख जतन करने पर भी उनके सारे सपने साकार करने वाली बहू उनको मिल नहीं रही थी.
एक ओर जहाँ बिहारी बाबू के बाबूजी को अपने सुपुत्र के दहेज में मिली रकम से अपनी एकमात्र कन्या का विवाह करना था तो वहां दूसरी ओर हमारे बिहारी बाबू ने अपने ही संस्थान की एक पंजाबी स्टेनोग्राफ़र से प्रेम की पींगे इतनी बढ़ा ली थीं कि बात शादी तक पहुँचने लग गयी थी. हमारे दूरदर्शी मित्र ने अपनी कमाई और अपनी भावी श्रीमती जी की कमाई का जोड़ कर के एक से एक ऊंचे सपने बुन लिए थे लेकिन गरीब घर की इस स्टेनो-बाला के बाप के पास शादी में खर्च करने के लिए धेला भी नहीं था. इधर बिहारी बाबू के बाबूजी को खाली हाथ आने वाली कमाऊ बहू तक स्वीकार नहीं थी क्योंकि सिर्फ़ उसकी तनख्वाह के भरोसे तो उनकी बिटिया की शादी बरसों तक टल जानी थी.
हमारे दोस्त के बाबूजी ने अपने सपूत के लिए आख़िरकार एक मोटी मुर्गी फाँस ही ली. अपने सपूत से बिना पूछे उन्होंने अपनी ही बिरादरी के एक महा-रिश्वतखोर इंजीनियर की कन्या से उनका रिश्ता पक्का कर दिया. बिहारी बाबू ने मेरे घर आकर अपने बाबूजी की इस तानाशाही के ख़िलाफ़ बग़ावत करने का ऐलान कर दिया. उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि वो और उनकी प्रेमिका आर्य समाज मंदिर जाकर शादी कर लेंगे.
मेरी शुभकामनाएँ अपने दोस्त के साथ थीं लेकिन मुझे तब उनका यह ऐलान बड़ा ढुलमुल सा लगा जब उन्होंने इस क्रांतिकारी क़दम को उठाने से पहले अपने बाबूजी को इस अनोखी शादी में शामिल होने का निमंत्रण देने की बात कही. मैं तो ख़ुद अपने दोस्त की शादी में उनके बाप का रोल करने को तैयार था पर लगता था कि अपने हम-उम्र इंसान का बाप बनना मेरे नसीब में नहीं था.
फिर क्या हुआ?
फिर वही हुआ जो कि क़िस्सा-ए-बेवफ़ाई में हुआ करता है. हमारे बिहारी बाबू चुपचाप बिहार जाकर शादी कर आए और हमको इसकी खबर उनके द्वारा लाए गए मिठाई के डिब्बे और साथ में आई उनकी नई-नवेली दुल्हन से मिली.
हमारी भाभी जी सूरत क़ुबूल थीं लेकिन कुछ ज़्यादा सांवली थीं और ऐसे दोहरे बदन वाली थीं जिसमें कि बड़ी आसानी दो बिहारी बाबू तो निकल ही सकते थे. बातचीत में पता चला कि वो पढ़ाई में पैदल हैं और दो साल बी. ए. में अपना डब्बा गोल करने के बाद उन्होंने पढ़ाई से सदा-सदा के लिए सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया है.
नए जोड़े से पहली मुलाक़ात में तो मैं दोनों के सामने शराफ़त का पुतला बना रहा लेकिन अगली ही मुलाक़ात में मैं अपने ज़ुबान-पलट दोस्त की छाती पर चढ़कर उन से इस सेमी-अनपढ़ मुर्रा भैंस के लिए अपनी क़ाबिल स्टेनोग्राफ़र प्रेमिका के साथ की गयी बेवफ़ाई का सबब पूछ रहा था.
दो-चार मुक्कों के बाद दोस्त ने क़ुबूला कि उनके ससुर ने उनके बाबूजी को नक़द तीन लाख रूपये भेंट किये थे ताकि उनकी बिटिया की शादी धूम-धाम से हो जाए. लेकिन मुझे पता था कि बहन की शादी की खातिर बिहारी बाबू अपने प्यार की क़ुर्बानी देने वाले नहीं थे. मुझ से दो-चार अतिरिक्त धौल खाकर उन्होंने यह भी क़ुबूला कि उनके ससुर ने इस रिश्ते को क़ुबूल करने के लिए उन्हें अलग से दो लाख रूपये भी दिए थे.
इस तरह जब एक डील दोनों समधियों के बीच और दूसरी डील ससुर-दामाद के बीच हुई तब जाकर यह शादी संपन्न हुई.
एक और बात मेरे समझ में नहीं आ रही थी कि हमारी भाभी जी ने हमारे बिहारी बाबू में ऐसा क्या देखा जो उन्होंने उनसे शादी करने के लिए अपनी रज़ामंदी दे दी. हमारे बिहारी बाबू शक्लो-सूरत और पर्सनैलिटी से ऐसे लगते थे कि उन्हें देख कर कोई कह उठे –
‘आगे बढ़ो बाबा !’
अब बिहारी बाबू की ऐसी कबाड़ा शख्सियत और ऊपर से उनके परिवार की मुफ़लिसी, फिर बाप की ऊपरी आमदनी पर ऐश करने वाली कोई लड़की कैसे इस शादी के लिए राज़ी हो सकती थी?
जल्दी ही इस सवाल का जवाब भी मिल गया और इसका जवाब ख़ुद भाभी जी ने अपनी शादी के किस्से सुनाते वक़्त दिया था –
‘हम तो इनको देखते ही रो पड़े थे. जितने लद्धड़ ये अब लगते हैं तब ये उस से भी लद्धड़ लग रहे थे और फिर इनकी फॅमिली का दलिद्दर तो इन सबके कपड़ों से भी दिखाई दे रहा था. हम तो फ़ौरन मना कर दिए लेकिन पापा को हमारी सादी का बहुत जल्दी था. कई लड़का लोग हमको मोटा और सांवला कह के रिजेक्ट भी कर चुका था. आखिर पापा का रिक्वेस्ट हम मान लिये, इन से सादी के लिए हाँ कर दिए लेकिन जब हमारे और पापा के बीच एक डील हुआ तब ! हमारे कहने पर पापा ने तीन लाख रुपया हमारे नाम कर दिया और हमको दो हजार रुपया महीना पॉकेट मनी देने का वो प्रॉमिस भी किये हैं.’
इधर भाभी जी अपनी दास्तान सुनाए चली जा रही थीं उधर बिहारी बाबू थे कि ज़मीन में गड़े ही जा रहे थे और मैं था जो अपनी उँगलियों पर हिसाब लगा रहा था कि इस शुभ विवाह में किस-किस के बीच डील हुई हैं और दोनों परिवारों में ऐसा कौन अभागा या अभागी है जो कि ऐसी किसी भी डील में शामिल नहीं है.