शनिवार, 7 नवंबर 2020

फिर एक बार - उत्तराखंड की लोरी

 उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान लिखी गयी मेरी 21 साल पुरानी कविता - 'उत्तराखंड की लोरी'

आज उत्तराखंड की स्थापना के 20 साल बाद मेरी कविता की इस पर्वत-वासिनी
माँ की कोई भी आशंका यदि निर्मूल सिद्ध हुई हो तो मैं भारी से भारी जुर्माना देने
को और माफ़ी मांगने को तैयार हूँ.
उत्तराखण्ड की लोरी
बेटे का प्रश्न -
मां ! जब पर्वत प्रान्त बनेगा, सुख सुविधा मिल जाएंगी?
दुःख-दारिद्र मिटेंगे सारे, व्यथा दूर हो जाएंगी?
रोटी, कपड़ा, कुटिया क्या, सब लोगों को मिल पाएंगी?
फिर से वन में कुसुम खिलेंगे, क्या नदियां मुस्काएंगी ?
माँ का उत्तर -
अरे भेड़ के पुत्र, भेडि़ए से क्यों आशा करता है?
दिवा स्वप्न में मग्न भले रह, पर सच से क्यों डरता है?
सीधा रस्ता चलने वाला, तिल-तिल कर ही मरता है,
कोई नृप हो, तुझ सा तो, आजीवन पानी भरता है.
अभी भेड़िया बहुत दूर है, फिर समीप आ जाएगा,
नहीं एक-दो, फिर तो वह, सारा कुनबा खा जाएगा.
चाहे जिसको रक्षक चुनले, वह भक्षक बन जाएगा,
तेरे श्रमकण और लहू से, अपनी प्यास बुझाएगा.
बेगानी शादी में ख़ुश है, किन्तु नहीं गुड़़ पाएगा,
तेरा तो सौभाग्य पुत्र भी, तुझे देख मुड़ जाएगा.
प्रान्त बनेगा, नेता, अफ़सर, का मेला, जुड़ जाएगा,
सरकारी अनुदान समूचा, भत्तों में उड़ जाएगा.
राजनीति की उठा-पटक से, हर पर्वत हिल जाएगा,
देवभूमि का सत्य-धर्म सब, मिट्टी में मिल जाएगा.
वन तो यूं ही जला करेंगे, कुसुम कहां खिल पाएगा?
हम सी लावारिस लाशों का, कफ़न नहीं सिल पाएगा.
रात हो गई, मेहनतकश सब, अपने घर जाते होंगे.
जल से चुपड़ी, सूखी रोटी, नमक डाल, खाते होंगे.
चिन्ता मत कर, मुक्ति कभी तो, हम जैसे पाते होंगे,
सो जा बेटा, मधुशाला से, बापू भी आते होंगे.

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मेरी पुरानी कविता को सराहने के लिए धन्यवाद मित्र !

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  2. प्रशंसा के लिए धन्यवाद शिवम् कुमार पांडे जी.

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  3. आपकी रचना आज भी समीचीन है।
    उत्तराखण्ड की स्थापना की जयन्ती पर आपको बधाई।

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  4. प्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'!
    उत्तराखंड के प्राकृतिक सौन्दर्य और उसकी आबो-हवा से मुझे बहुत प्यार है.
    वहाँ की कर्मठ स्त्रियों के लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान है.
    लेकिन वहां की कलुषित राजनीति और वहां के निर्लज्ज भ्रष्ट नेताओं ने इस नए राज्य को पनपने ही नहीं दिया है.
    इसलिए उत्तराखंड की स्थापना का दिवस मेरे लिए बधाई का विषय नहीं, बल्कि चिंता का, आक्रोश का, विषय है.

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