लखनऊ की एक पॉश कॉलोनी में एक शानदार बंगले में किराएदार के रूप में शर्मा दंपत्ति रहता था.
डॉक्टर मेवालाल
शर्मा शक्ल सूरत के ठीक ठाक से किन्तु वज्र देहाती किस्म के प्राणी थे और श्रीमती रीटा
शर्मा फ़ेमिना मिस इंडिया टाइप होश उड़ाऊ शख्सियत थीं.
अपने मेवालाल भैया
थे तो एक गरीब ब्राह्मण परिवार के पर पढ़ने में बहुत अच्छे थे. एम० एससी० में टॉप
करते ही वो लखनऊ यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हो गए थे.
इलाहाबाद
हाईकोर्ट के जाने माने वकील सुकुल साहब को हमारे मेवालाल अपनी स्मार्ट बिटिया के
लिए पसंद आ गए.
सुकुल जी की बिटिया को मेवालाल बिलकुल पसंद नहीं आए थे किन्तु पिताश्री की दलीलों ने उन पर जादू का असर किया और फिर इस बेमेल विवाह के संपन्न होने में कोई बाधा नहीं रह गयी.
सुकुल साहब
लम्बी चौड़ी हवाईजहाजनुमा गाड़ी में सवार हो कर जब रिश्ता पक्का करने के लिए डॉक्टर मेवालाल
शर्मा के गाँव पहुँचे तो उनके पिताश्री अपने होने वाले समधी की शानो-शौकत देख कर
सकते में आ गए. मेवालाल के पिताश्री के साथ उनके परम घाघ फूफाश्री भी थे जो कि
सुकुल जी के वैभव से उतने प्रभावित नहीं लग रहे थे उन्होंने सुकुल जी के कान में
कहा –
'वकील साहब आपसे शिमला के नर्सिंग होम के बारे में उड़ती-उड़ती ख़बरों पर कुछ
प्राइवेट में बात करनी है. ज़रा बाहर आइएगा.’
सुकुल जी
इत्मीनान से बाहर आए फिर फूफाश्री को संबोधित करके कहने लगे –
‘हमारे होने वाले जमाई राजा के फूफाजी, आपकी बात सुनने से पहले हम अपनी एक बात
कहेंगे. हमारे यहाँ लड़के के बाद सबसे ज़्यादा इज़्ज़त लड़के के फूफा को दी जाती है.
आइए पहले गले मिलते हैं.’
गले मिलने के
तुरंत बाद सुकुल जी ने अपने गले में पड़ी सोने की पांच तोले की चेन फूफाश्री के गले
में डाल दी फिर मुस्कुराते हुए बोले –
‘हाँ, तो आप किसी नर्सिंग होम के बारे में उड़ती-उड़ती ख़बरों पर कुछ प्राइवेट में
बात करना चाह रहे थे. फ़रमाइए क्या कहना चाहते हैं?’
फूफाश्री अपने
गले में पड़ी सोने की चेन को घुमाते हुए बोले –
‘समधी जी, छोडिए ये सब इधर-उधर की बातें. अब तो आपकी बिटिया हमारी हुई. हाँ, जैसे आपने
लड़के के फूफा को सम्मान दिया है वैसा ही सम्मान आप लड़के की बुआ को दीजिएगा. बस, मुझे यही कहना
है.’
सुकुल जी ने
जवाब दिया –
‘अब लड़के की बुआजी तो आई नहीं हैं. आप से प्रार्थना है कि नेग के ये इक्यावन हज़ार
रूपये मेरी ओर से आप उनकी सेवा में प्रस्तुत कर दें.’
फूफाश्री ने अपनी ओर से रिश्ता पक्का होने पर
अपनी मुहर लगा दी और अपने साले साहब को इशारा कर दिया कि वो मुंह खोल कर सुकुल जी
से दहेज मांग लें.
अपने जीजा जी
के इशारे पर पिताश्री ने अपनी समझ से दहेज की एक अकल्पनीय डिमांड सुकुल जी के
सामने रख दी.
सुकुल जी होने
वाले समधी जी की डिमांड सुन कर कुछ देर तक सोचते रहे फिर मुस्कुरा कर बोले –
‘पंडित जी, आप जितनी रकम दहेज में मांग रहे हैं उस से ज़्यादा तो मैं आपको टीके की रस्म
में ही दे दूंगा.’
शाही अंदाज़
में हमारे मेवालाल भैया की शादी हुई और दो ट्रक भर के दहेज का सामान लेकर शर्मा
दंपत्ति ने लखनऊ के अपने किराये के बंगले में प्रवेश किया.
शर्मा दंपत्ति
के बंगले का किराया ठीक उतना था जितनी कि मेवालाल जी की तनख्वाह थी.
दहेज में रीटा
शर्मा अपने साथ अपनी वो नौकरानी भी लाई थीं जो कि उनके बचपन से ही उनकी सेवा करती
आई थी.
घर खर्च कैसे
चलेगा, इसकी चिंता मेवालाल शर्मा को नहीं करनी थी. सुकुल साहब ने बिटिया के नाम इतना
पैसा फ़िक्स्ड डिपाजिट में डाल दिया था कि उसके मासिक ब्याज से ही उसके सारे शौक़ और
उसकी ज़रूरतें पूरी हो सकती थीं.
हालांकि
डॉक्टर मेवालाल शर्मा ने उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय से और उनकी रीटा डार्लिंग
ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की थी लेकिन डॉक्टर मेवालाल शर्मा के दुष्ट
विद्यार्थी उन दोनों को क्रमशः ‘मग्घा-ए-गुरुकुलकांगड़ी’ और ‘पटाखा-ए-मिरांडाहाउस’ कह कर पुकारते थे.
रीटा शर्मा अपने भतीजे पर जान छिड़कती थीं. दो-चार बार मेवालाल शर्मा भी उनके साथ इलाहाबाद गए थे. उन्होंने नोटिस किया कि उनकी सलहज अपने बेटे से उखड़ी-उखड़ी रहती थीं जब कि उसकी बुआ रीटा उसे अपने कलेजे से लगाए रखती थीं.
रीटा शर्मा को
धीरे-धीरे मेवालाल शर्मा के मग्घेपन की आदत पड़ गयी थी और मेवालाल शर्मा ने भी अपनी
मेमनुमा रीटा के अमरीकन नखडों के साथ एडजस्ट करना सीख लिया था.
इधर पतिदेव को अपने फूहड़पन पर श्रीमती जी की झिड़की खाने का अभ्यास हो गया था तो दूसरी
तरफ श्रीमती जी, पतिदेव के सुड़-सुड़ कर के चाय पीने पर और हाथ से सड़प-सड़प कर दाल-भात खाने पर अब ज़्यादा नाक-भौंह नहीं सिकोड़ती थीं.
अब शर्मा
दंपत्ति के घर में नन्हा मेहमान आने वाला था.
कुछ समय बाद रीटा
शर्मा ने एक सुन्दर से नौनिहाल को जन्म दिया. शर्मा दंपत्ति
का बंगला एक बार फिर उपहारों से भर गया और बंगले के गैरेज में एक नई कार भी खड़ी हो
गयी.
फूफाश्री और
बुआ जी को इस बार भी भरपूर नेग मिले.
अपनी कार के
आते ही रीटा शर्मा के इलाहाबाद के चक्कर और ज़्यादा बढ़ गए. अब वो अपने नौनिहाल को और
अपनी नौकरानी को साथ लेकर ख़ुद कार ड्राइव करती हुई इलाहाबाद तक की यात्रा करने लगी
थीं.
दिन चैन से गुज़र रहे थे लेकिन फिर शर्मा दंपत्ति के सुखी जीवन में एक तूफ़ान आ गया.
एक बार रीटा शर्मा
इलाहाबाद गईं थीं कि इलाहाबाद से ही उनकी भाभी यानी कि मेवालाल शर्मा की सलहज का
फ़ोन आया.
फ़ोन पर बड़े
रूखे से अंदाज़ में उन्होंने अपने नन्दोई जी को इलाहाबाद पहुँचने का आदेश दे डाला.
मेवालाल शर्मा
को जब सलहज साहिबा ने यह बताया कि उनके पिताश्री और उनके फूफाश्री को भी इलाहाबाद
तलब किया गया है तो उनके पांवों तले ज़मीन ही खिसक गयी.
बेचारे
मेवालाल अगली ट्रेन पकड़ कर इलाहाबाद पहुँचे. उनके पिताश्री और उनके फूफाश्री पहले
ही सुकुल जी के बंगले में मौजूद थे. पिताश्री ने सपूत को देखा तो वो उन पर टूट पड़े
-
‘जोरू के गुलाम डुबो दिया हमारे कुल का नाम? ऐसी कलंकिनी बहू ले कर आया है जो शादी से
पहले ही एक बच्चे की माँ थी.’
फूफाश्री भी मेवालाल
से ताना मारते हुए बोले –
‘बर्खुरदार, शिमला के नर्सिंग होम का किस्सा हमने पहले भी सुना था पर आज उस पर तुम्हारी
सलहज ने सच की मुहर लगा दी.’
मेवालाल शर्मा
जब तक मुंह खोलें तब तक उनकी सलहज साहिबा आ धमकीं और गरज कर बोलीं –
‘जीजाजी, अब मैं किसी के पाप को अपना बेटा नहीं कहूँगी.
अपनी मेम साहब
का पहला बेटा आपको मुबारक हो. अब इस मुसीबत को आप लोग अपने साथ लखनऊ ले जाइए.’
सबसे अचरज की
बात यह थी कि अपने ही घर में सुकुल जी पूर्णतया निर्विकार होकर इस नौटंकी को देख
रहे थे पर फिर वो एकदम से पिताश्री और फूफाश्री की तरफ़ मुख़ातिब हुए और बड़ी सख्ती
से उन से बोले -
‘समधी साहिबान, आप सबकी बकवास मैंने सुन ली. अब चुपचाप बैठ कर आप लोग मेरी बात सुनिए.
आपको क्या
लगता था कि आपके कौए जैसे सपूत की चोंच में अपनी अनार की कली जैसी बिटिया मैंने
यूँ ही पकड़ा दी थी?
आप लोगों के
कच्चे घरों में इतना पक्का दहेज क्या मैंने यूँ ही भर दिया था?
अगर शिमला के
नर्सिंग होम वाली बात नहीं होती तो रिश्तेदारी की बात तो दूर, आप लोगों को
मैं अपने बंगले में घुसने भी नहीं देता.’
फूफाश्री ने
विनम्रता से कहा –
‘समधी जी, नाराज़ मत होइए. आइए प्राइवेट में कुछ बात करते हैं.’
सुकुल जी
दहाड़े –
‘अब प्राइवेट में बात करने के दिन लद गए. आज से तुम लालची फटीचरों से मेरी
रिश्तेदारी ख़तम.
आज जब कि मेरे
पहले नाती की बात खुल कर सामने आ चुकी है तो फिर आज से तुम लोगों को हड्डी डालना
भी बंद.’
‘समधी जी इतना नाराज़ होना अच्छी बात नहीं है. हमारे जीजाजी ठीक कह रहे हैं. हम
सब प्राइवेट में बैठ कर मामला निबटा लेते हैं.’
सुकुल जी ने
फिर सख्ती से कहा –
‘मेरे बहुत से मुवक्किल पेशेवर क़ातिल हैं. मेरे एक इशारे पर वो किसी का भी पूरा
खानदान साफ़ कर सकते हैं. अब तुम लोगों ने मेरी बिटिया के बारे में दुबारा अपनी
चोंच खोल कर कुछ उल्टा-सीधा कहा तो अपने अंजाम के बारे में ज़रूर
सोच लेना.
मैं अपनी बहू
को भी उसकी गुस्ताखी सज़ा देता पर क्या करूँ? वो हमारे घर के चिराग को जन्म देने वाली है.
और हाँ, जाते जाते तुम
लोग यह भी सुन लो.
अब तुम लोग
मेरे जमाई से भी मिलने की कोशिश मत करना.
मैंने उसे
पूरी तरह ख़रीदने का पक्का इंतज़ाम कर लिया है.’
अगले क्षण ही
मेवालाल के पिताश्री और उनके फूफाश्री बिना बैंड-बाजे के, सुकुल जी के
बंगले से बाहर निकाले जा चुके थे.
सुकुल जी के जमाई
राजा चुपचाप अपने पिताश्री और अपने फूफाश्री की बेइज्ज़ती होते हुए देख रहे थे पर
ख़ुद को कौआ कहे जाने पर और अपने खरीदे जाने की बात सुन कर उनका खून खौल गया था फिर
भी अपने ससुरजी से अकड़ कर बात करने की उनकी हिम्मत नहीं हुई.
उन्होंने
मिमियाते हुए सुकुल जी से कहा –
‘पापा, आपने पिताजी और फूफाजी की इतनी बेइज्ज़ती की, मैंने चुपचाप सह लिया. रीटा की नर्सिंग होम
वाली बात भी मुझे बर्दाश्त हो गयी पर आपने मुझे जो कौआ कहा है और मुझे जो ख़रीदने
की बात कही है उस से मेरा दिल बहुत दुखा है.’
सुकुल जी ने
शांत हो कर अपने जमाई राजा से कहा –
‘जमाई राजा ! तुम्हारे बाप की, तुम्हारे फूफा की और तुम्हारी इज़्ज़त तो टका सेर बिकती
है. वैसे मेरी अगली बात सुन कर तुम्हारा दिल फिर कभी नहीं दुखेगा, इसकी गारंटी
है.
पहले ज़रा अपने
ख़रीदे जाने की कीमत तो सुन लो.
मैंने लखनऊ
में एक आलीशान बंगला बिटिया के लिए खरीद लिया है और उसके नाम पर पचास लाख के एफ़०
डी० और कर दिए हैं.
तुम्हारे लिए
हर महीने पच्चीस हज़ार का पॉकेटमनी मैंने अलग से फ़िक्स कर दिया है.
अपनी तनख्वाह
भी तुम अपने पास ही रखना.
अपने घर का
खर्च चलाने की न तो तुम्हारी औक़ात है और न ही उसकी तुम्हें कोई ज़रुरत है पर इन सब
मेहरबानियों की शर्त ये है कि तुम मेरे बड़े नाती को अपना बेटा बना कर अपने साथ
रक्खोगे, मेरे दोनों नातियों को तुम एक सा प्यार दोगे और मेरी बिटिया को हमेशा ख़ुश रक्खोगे.
और हाँ, अपने घर वालों से अब तुम कोई सम्बन्ध नहीं रक्खोगे.
अगर मेरी
शर्तें तुम्हें मंज़ूर हैं तो तुम्हारा स्वागत है और अगर नहीं हैं तो तुम अपना रास्ता
नापो.’
सुकुल जी के
इस बेहूदे प्रस्ताव को सुन कर डॉक्टर मेवालाल शर्मा को इतना गुस्सा आया, इतना गुस्सा
आया कि उन्होंने लपक कर उनके चरण पकड़ लिए.
उसी दिन शर्मा
परिवार ने ढेरों उपहार के साथ लखनऊ के लिए प्रस्थान किया.
शर्मा दंपत्ति
अपने लखनऊ वाले नए बंगले में अब अपने दोनों बेटों के साथ सुख और शांति से रह रहा
है.
डॉक्टर मेवालाल
शर्मा की अपनी एक खुद की कार भी उनके नए बंगले में आ गयी है और सबसे सुखद समाचार
यह है कि उन्होंने बिना सुड़-सुड़ कर के चाय पीना और चम्मच के सहारे, बिना सड़प-सड़प
किए दाल-भात खाना भी सीख लिया है.