पद्म श्री बहन कंगना के श्री मुख से कब कौन से फूल झड़े, कब उन्होंने अपने धनुषवाण से किस पर तीर चलाए, इस पर नित्य न्यूज़ चैनल्स पर बहस होती है, सीधी तरफ़ के, उल्टी तरफ़ के और बीच के, देशभक्त उनके पक्ष में, उनके विरोध में या फ़िफ्टी-फ़िफ्टी वाले लहजे में अपने गले फाड़ते रहते हैं.
हमारे देश को कब, कैसी और कैसे आज़ादी मिली, इसका फ़ैसला अब कंगना जी का ताज़ातरीन वक्तव्य करेगा.
गांधी जी हमारे राष्ट्रपिता हैं या फिर हमारे लिए सबसे बड़े खलनायक हैं, यह भी उनके इशारे पर तय होगा.
कंगना जी सुशांत राजपूत आत्महत्या काण्ड में किसी भी जांच-पड़ताल से पहले, किसी भी न्यायिक कार्रवाई से पूर्व, अपना अंतिम निर्णय दे चुकी थीं जो कि कायदे से माननीय सर्वोच्च न्यायालय को भी मान्य होना चाहिए था.
किन्ही मोहतरमा का अंध-भक्त कोई सलमान ख़ुर्शीद अपनी किसी बेकार सी किताब में दो-चार मूर्खतापूर्ण विवादस्पद बातें क्या लिख देता है, हमारा धर्म, हमारी संस्कृति और हमारा राष्ट्र-गौरव ख़तरे में पड़ जाता है.
फिर हमारे उत्साही देशभक्त लाठियां और मशालें ले कर उस मूर्ख के बंगले में तोड़फोड़, आगजनी, कर के भारत की आन-बान-शान को पुनर्स्थापित करते हैं.
कोई वीरदास परदेस में जा कर अपनी मसखरी वाले कार्यक्रम में इंडिया के लिए दो-चार विवादस्पद, उपहासात्मक जुमले क्या सुना देता है, प्रशांत सागर जैसी शांत भारतीय राजनीति में तूफ़ान उठ खड़ा होता है.
उद्दंड, गुस्ताख, देशद्रोही, वीरदास का सर कलम कर के ही भारत की खोई हुई मान-प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित किया जा सकता है.
कोई मणिशंकर अय्यर माननीय की शान में गुस्ताख़ी करता है तो वतन की आबरू ख़तरे में पड़ जाती है.
किसी तीर्थ में दिए जलाने का कीर्तिमान स्थापित कर दिया जाता है तो भारत दुनिया भर में फिर से सोने की चिड़िया कहलाया जाने लगता है.
वर्ड कप में भारत नापाक पाकिस्तान से भिड़े या नहीं, यह राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बन जाता है.
आर्यन खान की गिरफ़्तारी और उसकी रिहाई, सेंसेक्स के उतार-चढ़ाव को निर्धारित करती है.
हम भारत को फिर से जगदगुरु बनाने के लिए क्या इन्हीं नुस्खों का इस्तेमाल करेंगे?
देश की अर्थ-व्यवस्था किस संकट से गुज़र रही है?
बेरोज़गारी राक्षसी सुरसा के मुंह की तरह से किस तरह बढ़ती जा रही है?
सांप्रदायिक वैमनस्य किस प्रकार जंगल की आग की तरह फैलता जा रहा है?
आतंकवाद किस तरह भारत के सुरक्षा-चक्र में सेंध लगा रहा है?
स्त्रियों-बालिकाओं का दमन, उनका शोषण और उनके साथ हुई आपराधिक घटनाओं में निरंतर वृद्धि, हमारा लिंगभेदी सामाजिक और राजनीतिक नज़रिया कैसे उनके विकास में बाधक हो रहा है?
तमिल फ़िल्म - 'जय भीम' में उठाए गए दलितों के शोषण पर उठाए गए असली मुद्दे को कैसे एक विशेष जाति के मान-सम्मान का प्रश्न बना दिया जाता है?
राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त ने आज से 110 साल पहले - 'भारत भारती' में प्रश्न उठाए थे -
'हम कौन थे, क्या हो गए, और क्या होगे अभी ---?'
आज स्वर्ग में बैठे हमारे राष्ट्रकवि को उनके प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे और भारतीयों को रसातल में जाते हुए देख कर उनका ह्रदय निश्चित ही तड़प रहा होगा.
हमको हमारे असली मुद्दों से हमारा ध्यान भटकाने की सियासती साज़िशें करने वालों को बेनक़ाब करना होगा.
अब चाहे हमको गुमराह करने वाले नेता हों, अभिनेता हों, मसखरे हों, लेखक हों, मीडिया हो, इन सबको इनकी औक़ात पर लाना हमारा फ़र्ज़ बनता है.
इन सबको इनकी औकात पर तभी लाया जा सकता है जब हम इनकी बेसिर-पैर
की बातों पर कोई भी तवज्जो न दें, कोई भी ध्यान न दें.
आज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ होते तो कहते -
'और भी मुद्दे हैं जमाने में कंगना, आर्यन के सिवा'
अगर हम इस नए सन्देश को अपने राष्ट्रीय-जीवन में अपनालें तो हमको तरक्की की राह पर चलने से, शान्ति और अमन के मार्ग पर चलने से, कोई नहीं रोक सकता.
अभी तो पार्टी शुरू हुई है :)
जवाब देंहटाएंमित्र, अब तो अगले तीन-चार महीने हमको-तुमको ऐसी न जाने कितनी पार्टियाँ झेलनी होंगी.
हटाएं'देव दिवाली' (चर्चा अंक - 4254) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंहमको हमारे असली मुद्दों से हमारा ध्यान भटकाने की सियासती साज़िशें करने वालों को बेनक़ाब करना होगा.
जवाब देंहटाएंअब चाहे हमको गुमराह करने वाले नेता हों, अभिनेता हों, मसखरे हों,लेखक हों,मीडिया हो,इन सबको इनकी औक़ात पर लाना हमारा फ़र्ज़ बनता है.
बिल्कुल सही कहा आपने सर!
अधिकतर ऐसे है जो चर्चा में रहने के लिए हद से नीचे गिर जाते हैं,इसलिए इन लोगों की बातों को कोई तव्वजो ही न दिया जाए तो खुद ब खुद शांत हो जाएगे या फिर खिसियानी बिल्ली की तरह खम्भा नोचने लगेंगे!
बहुत ही उम्दा लेख जितनी तारीफ की जाए कम ही है!
मेरे आलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद मनीषा !
हटाएंबड़ा अच्छा लगता है यह जान कर कि हमारी नई पीढ़ी नेताओं के और मीडिया के, प्रपंचों को समझती है और उनके झांसों में नहीं आती.
वैसे पिछले दो दिनों से तो खम्बा ही नोचा जा रहा है और वह भी माफ़ी मांगे जाने के साथ.
बहुत ही सारगर्भित और सामयिक चिंतन पर आपका आलेख प्रशंसनीय है । देश के समग्र विकास की बात ही केवल और केवल सार्थक है,इसके अलावा सब निरर्थक है,हां हमारी संस्कृति और सभ्यता पर चोट करने का अधिकार किसी को भी नही मिलना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंमेरे आलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा !
हटाएंहमारी सभ्यता पर, हमारे धर्म पर और हमारी संस्कृति पर चोट करने वालों का हम बहिष्कार करें, उनकी उपेक्षा करें, उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करें, लेकिन लाठी और मशाल ले कर तोड़फोड़ करें, आगजनी करें तो यह कृत्य न तो हमारी सभ्यता को शोभा देगा और न ही हमारी संस्कृति को.
सारगर्भित और सामयिक लेख
जवाब देंहटाएंमेरे आलेख के उदार आकलन के लिए धन्यवाद मनोज जी.
जवाब देंहटाएंआपका चिंतन सार्थक है ...
जवाब देंहटाएंकंगना से पहले भी बीसियों कंगनयें हुई है ... आज भी हैं ... आगे भी होंगी ..
बात इतनी सी है की हम किसको कितना भाव देते हैं ...
सही बात खी आपने दिगंबर नासवा जी. नीम पागलों को हम जिस दिन भाव देना बंद कर देंगे, उस दिन से ही उनकी बकवास बंद हो जाएगी.
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