बिहार में चुनाव
हो गए. अब 8 नवम्बर को बिहार की जनता को या तो नए आक़ा मिल जायेंगे या फिर पुराने
आक़ा की वापसी हो जाएगी. मुझे बिहार के सुनहरे भविष्य की कोई आशा नहीं है. वहां की
जनता हमेशा से ठगी और छली जाती रही है और आगे भी उसका यही हश्र होने वाला है. 25
जुलाई, 1997 को समस्त लोकतान्त्रिक मूल्यों की हत्या करके श्री लालू प्रसाद यादव
ने माता राबड़ी देवी को बिहार की हुकूमत प्रदान की थी तब श्री इंद्र कुमार गुजराल
भारत के प्रधान मंत्री थे. इस अवसर पर मैंने बिहार के स्वर्णिम अतीत से लेकर उसके
गर्त में जाने की गाथा पर महाकवि दिनकर की कविता ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती
है’ से प्रेरित होकर एक कविता की रचना की थी जिसमें यह आशंका व्यक्त की गयी थी कि
माता राबड़ी पटना के बाद दिल्ली के तख़्त पर भी क़ब्ज़ा कर सकती हैं. हो सकता है कि
किंचित सह्रदय पाठकों को यह पुरानी कविता आज भी प्रासंगिक लगे -
विध्वंस राग
हे महावीर औ
बुद्ध, तुम्हारे दिन
बीते ,
प्रियदर्शी
धम्माशोक, रहे तुम भी रीते
।
पतिव्रता नारियों
की सूची में नाम न पा ,
लज्जित, निराश, धरती में, समा गईं सीते ।।
नालन्दा, वैशाली, का गौरव म्लान हुआ ,
अब चन्द्रगुप्त
के वैभव का, अवसान हुआ ।
सदियों से कुचली
नारी की क्षमता का पहला भान हुआ ,
मानवता के कल्याण
हेतु, मां रबड़ी का
उत्थान हुआ ।।
घर के दौने से
निकल आज, सत्ता का थाल
सजाती है ,
संकट मोचन बन,
स्वामी के, सब विपदा कष्ट मिटाती है ।
पद दलित अकल हो
गई आज, हर भैंस यही
पगुराती है ,
अपमानित, मां वीणा धरणी, फिर, लुप्त कहीं हो जाती है ।।
जन नायक की
सम्पूर्ण क्रांति, शोणित के अश्रु
बहाती है ,
जब चुने
फ़रिश्तों की ग़ैरत, बाज़ारों में बिक
जाती है ।
जनतंत्र तुम्हारा
श्राद्ध करा, श्रद्धा के सुमन
चढ़ाती है ,
बापू के छलनी
सीने पर, फिर से गोली
बरसाती है ।।
क्या हुआ,
दफ़न है नैतिकता, या प्रगति रसातल जाती है ,
समुदाय-एकता,
विघटन के, दलदल में फंसती जाती है ।
फलता है केवल
मत्स्य न्याय, समता की अर्थी
जाती है ,
क्षत-विक्षत,
आहत, आज़ादी, खुद कफ़न ओढ़ सो जाती है ।।
पुरवैया झोंको के
घर से, विप्लव की आंधी
आती है,
फिर से उजड़ेगी,
इस भय से बूढ़ी दिल्ली
थर्राती है ।।
पुत्रों के पाद
प्रहारों से, भारत की फटती
छाती है ,
घुटती है दिनकर
की वाणी, आवाज़ नई इक आती
है-
गुजराल ! सिंहासन
खाली कर, पटना से रबड़ी
आती है ,
गुजराल ! सिंहासन
खाली कर, पटना से रबड़ी
आती है ।।
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