मेरे दो अनमोल रतन –
1987 में अल्मोड़ा में टीवी टावर लगने से पहले, वहां के ठंडी
मंद बयार वाले शांत एवं शुद्ध वातावरण में हमको समस्त सुख थे किन्तु टीवी सुख नहीं
था. कुछ भाग्यशालियों के यहाँ बड़ा एंटिना और शक्तिशाली बूस्टर लगाकर मसूरी टावर से
काम-चलाऊ सिग्नल्स आ जाते थे.
मेरे परम मित्र श्री एस के सिंह तब सीनियर फील्ड ऑफिसर के पद पर अल्मोड़ा में नियुक्त थे. हमारे खत्यारी गाँव में केवल उनके ही घर में
टीवी सिग्नल्स आते थे. चित्रहार हो या कोई फिल्म हो तो उन्हें और उनके बच्चों को
मेरी सेवाओं की हमेशा आवश्यकता पड़ती थी क्योंकि मैं ही हिलती-डुलती झिलमिल करती
तस्वीरों को देखकर नहीं, बल्कि अपनी याददाश्त के आधार पर यह बता सकता था कि टीवी
के परदे पर दिलीप कुमार है या राजकपूर, वैजयंती माला है या मधुबाला.
1982 में शादी हो जाने के
बाद मैंने भी अपने घर टीवी लगाने की असफल कोशिश की पर या तो कभी बिना आवाज़
के हिलती-डुलती पिक्चर आई या बिना पिक्चर के सिर्फ आवाज़. 1986 में हमारे मित्र और
पड़ोसी डॉक्टर फ़ोतेदार को अपने घर से 200 मीटर दूर पर सिग्नल्स मिल गए और वो अपने
यहाँ 14 इंच स्क्रीन वाला टीवी ले आए. पता नहीं क्यों, 20 इंच स्क्रीन वाला टीवी
सिग्नल्स नहीं पकड़ रहा था. हमने भी उनकी देखा-देखी 14 इंच स्क्रीन का श्वेत-श्याम टीवी
ले डाला. ज़िन्दगी में बहार आ गयी. हिलते-डुलते राजीव गाँधी, खड़े-खड़े भी नाचने का
एहसास दिलाते हीरो-हेरोइन और बालिंग या बैटिंग करते हुए कपिल देव के सिर्फ दो
चमकते दांत देखकर ही हमारा जीवन धन्य हो जाता था.
हमारे दिन बड़े मज़े से गुज़र रहे थे कि फिर एक हादसा हो गया.
10 सितम्बर, 1987 को स्वर्गीय गोविन्द बल्लभ पन्त की जन्म-शताब्दी पर अल्मोड़ा में
टीवी टावर लग गया. अब आप पूछेंगे कि टीवी टावर लगने को मैं हादसा क्यूँ कह रहा
हूँ. हादसा इसलिए कि अल्मोड़ा में टीवी टावर लगते ही हमारे तमाम साथियों ने कलर
टीवी ले लिए पर मैं डेढ़ साल पुराने अपने मिनी टीवी को डिस्कार्ड करने के मूड में
नहीं था. ढाई साल तक कलर टीवी खरीदने की लगभग 50 योजनाएं बनीं पर हर बार मामला
टांय-टांय फिस्स हो गया. आख़िरकार जब मेरी श्रीमतीजी और मेरी बेटियों की हर आस टूट
गयी तो अप्रैल, 1990 में मैं 20 इंच स्क्रीन वाला कलर टीवी ले ही आया पर वो भी
बिना रिमोट वाला. मेरे पुराने और भरोसेमंद छोटू टीवी ने हमसे विदा ली पर जाते-जाते
भी वो हमको 1000/ की भेंट दे गया. अलविदा छोटू टीवी.
हमारे कलर टीवी ने हमारी दिन-रात सेवा की पर फिर 1994 में एक
और हादसा हो गया. केबल टीवी आते ही चैनलों की संख्या बेशुमार हो गयी और बिना रिमोट
वाले टीवी का चलन सिर्फ जैसवाल साहब के घर तक सीमित रह गया. मेरी श्रीमतीजी और
मेरी बेटियां रिमोट वाले और बड़े स्क्रीन वाले टीवी के लिए ज़िद पकड़े रहीं पर मैं
अपने बिना रिमोट वाले और 8 चैनल वाले, 20 इंच के छोटे स्क्रीन के टीवी का समर्थक
बना रहा और वो भी अगले 12 साल तक. 2006 में एक दिन अचानक ही हमारा टीवी बंद हो
गया. नए टीवी की प्रत्याशा में मेरी श्रीमतीजी और बेटियों की खुशी का तो कोई
ठिकाना ही नहीं रहा.
हमारी कलीग डॉक्टर इला शाह का देवर, नानू हमारा टीवी देखने
के लिए बुलाया गया. टीवी चेक किया गया. नानू ने मुझसे कहा –
‘डॉक्टर साहब, पूरे अल्मोड़ा में 16 साल पुराने टीवी दो-चार
ही होंगे. अब इसकी मरम्मत में 1000-1200 तो लग ही जायेंगे. वैसे भी मैडम और
बच्चियां कई बार मेरे शो रूम पर आकर नया टीवी पसंद भी कर गयी हैं.’
मैंने रुंधे गले से पूछा –
‘क्या कोई और उपाय नहीं है?’
नानू ने कहा –
‘उपाय तो है. आपके टीवी की पिक्चर ट्यूब तो बढ़िया है. मैं 2500/
में इसमें नयी कोरियन किट लगा देता हूँ. आपका टीवी रिमोट से भी चलेगा और चैनेल्स
आयेंगे पूरे 250.’
पत्नी के हाय-हाय करने और बेटियों के शोर मचाने के बावजूद
पुराने टीवी में नयी किट लगाकर उसका नवीनीकरण कर दिया गया. अब मेरे रिटायरमेंट में
समय ही कितना बचा था, मात्र 5 साल. इसलिए नया टीवी लेना रिटायरमेंट तक स्थगित कर
दिया गया.
मित्रों, जैसे-जैसे मेरे रिटायरमेंट के दिन करीब आ रहे थे,
मेरी श्रीमतीजी खिलती जा रही थीं. उन्हें अपने साढ़े 22 साल पुराने टीवी से निज़ात
जो मिलने वाली थी.
अल्मोड़ा को अलविदा कहने का समय आ चुका था. हमारे दुगालखोला
का एक मौलाना मेरे ग्रेटर नॉएडा शिफ्ट होने की तिथि के बारे में बार-बार पूछता
रहता था. मैंने इस जिज्ञासा का कारण पूछा तो उसने बताया कि वो मेरा पुराना टीवी
खरीदना चाहता है पर इसके लिए वो दो हज़ार रूपये से ज्यादा नहीं दे सकेगा. मुझे और
मेरी श्रीमतीजी को तो अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. मैं तो सोच रहा था कि हमारा
टीवी पुराने प्लास्टिक के भाव बिकेगा पर यहाँ तो हमारी लाटरी खुल गयी थी. अल्मोड़ा
से प्रस्थान करने के दिन हमने अपनी जवानी और बुढ़ापे के साथी से विदा ली
ग्रेटर नॉएडा के अपने मकान में जायंट स्क्रीन वाले एलईडी पर
प्रोग्राम्स देखने में मुझे वो मज़ा नहीं आता तो जो कभी 14 इंच स्क्रीन के
श्वेत-श्याम टीवी पर या 20 इंच स्क्रीन के बिना रिमोट वाले कलर टीवी पर प्रोग्राम
देखने में आता था.
मेरी श्रीमतीजी की इच्छा है कि वो एक बार अल्मोड़ा जाकर अपनी
मित्रों से मिलें. मेरी भी हार्दिक इच्छा है कि मैं वहां जाकर अपने पुराने साथियों
से मिलूँ और उन मेहरबान खरीदारों के घर जाकर अपने 14 इंची और 20 इंची दो अनमोल
रत्नों को भी एक बार देख आऊँ. अगर वो चलती हालत में होंगे तो गिनीज़ बुक ऑफ़
रिकार्ड्स में उनका नाम दर्ज हो चुका होगा और अगर उनके दिल की धड़कन रुक भी गयी
होगी तो वो किसी पुरातात्विक संग्रहालय की शोभा बढ़ा रहे होंगे.