नयी व्याख्या –
‘गो हाथ में जुम्बिश नहीं,
आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी, सागरो-मीना,
मेरे आगे.’
यह सब जानते हैं कि शायरे-आज़म मिर्ज़ा ग़ालिब बड़े आशिक़-मिजाज़ थे. जवानी के दिनों
में एक डोमनी से उनके इश्क़ के किस्से बड़े मशहूर हैं. अपने बुढ़ापे में भी उनकी यह
आशिक़-मिजाज़ी गई नहीं और मीना नाम की एक खूबसूरत लड़की से उन्हें इश्क़ हो गया और मीना भी उनके इश्क़ में दीवानी हो गई.
मिर्ज़ा ग़ालिब को अपना शागिर्द सागर भी बहुत अज़ीज़ था.
मुफ़लिसी, बुढ़ापे और बीमारी में मीना और सागर के अलावा, सभी ने मिर्ज़ा ग़ालिब का
साथ छोड़ दिया, उनके हाथ पैर तक ने चलने से जवाब दे दिया, बस उनकी आँखों की रौशनी
बदस्तूर क़ायम रही.
इस शेर में मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी हालत का बयान करते हुए कहते हैं कि वो इतने
कमज़ोर हो गए हैं कि उनके हाथ अब कांपते तक नहीं हैं, बस आँखें ही हैं जो पहले की
ही तरह देख सकती हैं.
मिर्ज़ा ग़ालिब अल्लाताला से बस यही दुआ करते हैं कि इतनी मुसीबत में भी उनका
साथ न छोड़ने वाले – सागर और मीना हमेशा उनकी नज़रों के सामने रहें.
अच्छा तो ऐसा भी था । आपको तो बहुत कुछ पता है :)
जवाब देंहटाएंअब मुझे मौलिक शोध करने के लिए फुर्सत ही फुर्सत है. चचा ग़ालिब और उनके कलाम के बारे में ऐसी बातें पता की हैं जो खुद उनको भी पता नहीं थीं.
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