कल 29 नवम्बर को हमने बुर्ज खलीफ़ा और दुबई फाउंटेन को दिन में देखा था पर आज शाम उन दोनों को फिर से देखना था. शाम को इन दोनों की सुंदरता कुछ और ही होती है. बुर्ज खलीफ़ा दुनिया की सबसे ऊँची इमारत है. हमारे बचपन में दुनिया की सबसे ऊँची इमारत ‘एम्पायर स्टेट बिल्डिंग’ हुआ करती थी, जिसकी ऊंचाई 1000 फ़ीट के करीब है वहीँ बुर्ज खलीफ़ा की ऊंचाई 2717 फ़ीट (828 मीटर) है. इसमें कुल 160 मंज़िलें हैं. इसमें होटल्स हैं, फ्लैट्स हैं, दुकानें हैं. इस सूच्याकार भवन को 45 किलोमीटर दूर तक से देखा जा सकता है. बुर्ज खलीफ़ा का निर्माण 2004 में प्रारंभ हुआ और 2009 के अंत तक यह बनकर तैयार हुआ.
एक बार फिर से दुबई मॉल पहुँच कर हमने शाम की रौनक और क्रिसमस की सजावट का का लुत्फ़ उठाया. अक्वेरियम और वॉटरफॉल का दुबारा दीदार करके हम दुबई फाउंटेन देखने चल पड़े. एक विशाल कृतिम जलाशय में यह फाउंटेन बनाया गया है. दर्शक इस झील के हर कोने से, चाहें वो दुबई मॉल का भव्य प्रोमेनाड हो या सूक अल बहार को दुबई मॉल से जोड़ते एक लम्बे से खूबसूरत पुल पर खड़े होकर या नज़दीकी इमारतों से, इसका शानदार नज़ारा देख सकते हैं. शाम होते ही हर आधे घंटे पर 5 मिनट के लिए रौशनी के साथ आप म्यूजिकल फाउंटेन का आनंद ले सकते हैं. इसमें प्रकाश संयोजना के साथ पानी की ऊँची-ऊँची फुहारें शास्त्रीय अरबी, आधुनिक अरबी, पाश्चात्य संगीत और यहाँ तक कि बॉलीवुड की गानों पर भी थिरकती हैं.
फाउंटेन शुरू हुआ तो उसकी भव्यता और सुन्दरता देख कर हम दंग रह गए. हमारी आँखों के आगे लहराती फुहारों के क्या-क्या डिज़ाइन बन रहे थे. मेरी गोदी में मेरा नाती अमेय था, उसे तो बहुत ही मज़ा आ रहा था. पर मैं कुछ ज़्यादा प्रभावित नहीं था. हमने सुना था कि दुबई फाउंटेन की फुहार 240 फ़ीट तक जाती है पर ऐसी ऊँची फुहारें तो कहीं देखने में नहीं आ रही थीं. मैंने अपनी बेटी गीतिका से इसकी शिकायत की ही थी कि एक भयंकर गर्जन के साथ 250 फ़ीट नहीं बल्कि 500 फ़ीट ऊंची एक गगनचुम्बी फुहार आई और फाउंटेन के नज़दीक खड़ी जनता (जिसमें हम भी शामिल थे) को भिगो गयी.. भीगी बिल्ली बने प्रोफेसर जैसवाल को अब कोई शिकायत नहीं थी!
आनंद आ गया वो भी दिव्य प्रकार का. तुलसीदासजी ने तो दुबई फाउंटेन नहीं देखा था फिर उन्होंने कैसे कह दिया – ‘गिरा अनयन, नयन बिनु बानी.’
फाउंटेन के सामने खड़े होकर हमने बुर्ज खलीफ़ा पर लाइट्स के रंग-बिरंगे खेल का आनंद लिया. 2 दिसंबर को यू. ए. ई. का राष्ट्रीय दिवस होता है इसके कई दिन पहले से बुर्ज खलीफ़ा पर और अन्य अनेक स्थानों पर लाइट्स का स्पेशल शो होता है. रौशनी में नहाये हुए बुर्ज खलीफ़ा का सौंदर्य एक दम नैसर्गिक लग रहा था.
शाम को बुर्ज खलीफ़ा से दुबई शहर का नज़ारा देखने के लिए हमने ऑनलाइन टिकट पहले ही खरीद लिए.थे. हमारी टिकट 124वीं मंज़िल पर बने 'ऑब्ज़र्वेशन डेक', जो लगभग 450 मीटर से भी कुछ अधिक ऊँचा है, तक थी. कतार में लगभग 20 मिनट खड़े होकर हम चेकिंग वगैरा के बाद लिफ्ट के लिए चले. लिफ्ट में चढ़े और बिना किसी झटके के, बिना किसी हलचल के, 60 सेकिंड में हम 0 से 124 मंज़िल पर पहुँच गए.हमको यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि दुबई में हर स्थान पर उन लोगों के लिए व्हील चेयर्स का प्रबंध है जिन्हें कि चलने में कठिनाई है. .
हमारे मोदीजी चीन और जापान जाकर बुलेट ट्रेन का आईडिया भारत लेकर लाए हैं. वैसे तो प्रधानमंत्री के रूप में वो दुबई भी घूम आए हैं पर पता नहीं क्यूँ उन्हें भारत में 'बुर्ज फ़क़ीर' और इतनी त्वरित गति से चलने वाली लिफ्ट के निर्माण का आईडिया अब तक नहीं आया.
बुर्ज खलीफ़ा की 124 वीं मंज़िल से दूध की रौशनी में नहाया हुआ दुबई शहर देखना एक अपूर्व अनुभव है. मीलों तक प्रकाश का सैलाब, हज़ारों वाहनों की घूमती लाइट्स, दूर समुद्र में तैरते खूबसूरत जहाज. हमारा अमेय तो यह नज़ारा देख कर मुग्ध हो गया. ‘मम्मी देखो वो’, 'नाना देखो ये’ और ‘नानी देखो सो मेनी कार्स’ कहते-कहते वो हमको इधर-उधर घुमाता ही रहा. फिर हमने दुबारा देखा दुबई फाउंटेन का नज़ारा. ऊपर से फाउंटेन की खूबसूरती का कोई बयान नहीं किया जा सकता. मैं तो इतना अभिभूत हो गया कि आधे घंटे और रुक कर दुबारा फाउंटेन का आनंद देखने के लिए खड़ा रहा. हमारी बिटिया गीतिका जी हमारे साथ खड़ी थीं पर उनकी व्यंग्य से भरी मुस्कान देख हम बड़े असहज थे. हम वही थे जो एक घंटे पहले दुबई फाउंटेन से कोई ख़ास प्रभावित नहीं थे.
टॉप ऑफ़ दि वर्ड का एक घंटे तक ‘आउट ऑफ़ दि वर्ड’ आनंद लेकर हम वापस लौटे पर अपना दिल वहीं छोड़ आए. लौटते हुए रास्ते में बुर्ज खलीफ़ा के निर्माण की चित्रात्मक गाथा देखने में भी बहुत आनंद आया. वाह क्या शाम थी !
बुर्ज खलीफ़ा की सैर के बाद बस एक मुश्किल आन पड़ी है. हमारे तीन वर्षीय अमेय बाबू ने रोज़ बुर्ज खलीफ़ा घूमने का प्रोग्राम बना लिया है, उनकी सुबह भी बुर्ज खलीफा जाने की फरमाइश से शुरू होती है ..उनके इस फ़ैसले से उनके मम्मी-पापा की जेब कटना तय है. रोज़-रोज़ टिकट लेकर बुर्ज खलीफ़ा जाने से तो बेहतर है कि वहीं एक फ्लैट ले लिया जाय या फिर पूरा का पूरा बुर्ज खलीफ़ा ही ख़रीद लिया जाय !
बढ़िया आनन्द आ गया। आप घूमते रहें इसी तरह से दुनियाँ और हमें बताते रहें शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद. हम जब भी घूमेंगे, अपने अनुभव आपके साथ बांटेंगे.
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