कहाँ हो दुष्यंत कुमार?
हो गयी है भीड़,
नेताओं की,
छटनी चाहिए,
बन गए जो ख़ुद, ख़ुदा,
औक़ात,
घटनी चाहिए.
माटी (जनता) कहे कुम्हार (नेता) ते -
ज़ुल्म की काली, अँधेरी, रात,
ढलनी चाहिए,
मुझको अब छाती पे तेरी,
दाल दलनी चाहिए.
हो गयी है भीड़,
नेताओं की,
छटनी चाहिए,
बन गए जो ख़ुद, ख़ुदा,
औक़ात,
घटनी चाहिए.
माटी (जनता) कहे कुम्हार (नेता) ते -
ज़ुल्म की काली, अँधेरी, रात,
ढलनी चाहिए,
मुझको अब छाती पे तेरी,
दाल दलनी चाहिए.
अपनी छाती लेकर अपनी दाल दल रहे हैं
जवाब देंहटाएंदुष्यंत जैसे लोग आज रो कलप रहे हैं
दल हैं दलदल हैं होते रहे
लोग तो खुशी निगल रहे हैं ।
जब अपनी दाल दलने के लिए जनता को अपनी ही छाती की ज़रुरत पड़ेगी तो फिर दिनकर जी की वाणी 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है' का क्या होगा?
हटाएंब्लॉग जगत के श्रेष्ठ रचनाओं का संगम "लोकतंत्र" संवाद ब्लॉग पर प्रतिदिन लिंक की जा रही है। आप सभी पाठकों व रचनाकारों से अनुरोध है कि आप अपनी स्वतंत्र प्रतिक्रिया एवं विचारों से हमारे रचनाकारों को अवगत करायें ! आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों के स्वतंत्र विचारों का ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
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