वैलेंटाइन डे के आर्थिक दुष्परिणाम -
'किस लुत्फ़ से झुंझला के वो, कहते हैं शबे-वस्ल,
ज़ालिम ! तेरी आँखों से, गयी नींद कहाँ आज?'
'किस लुत्फ़ से झुंझला के वो, कहते हैं शबे-वस्ल,
ज़ालिम ! तेरी आँखों से, गयी नींद कहाँ आज?'
मेरी तरफ़ से एक संशोधित सवाल -
'किस लुत्फ़ से झुंझला के, वो कहते हैं शबे-वस्ल,
कोरी है पासबुक तेरी, बीमा भी नहीं है?'
और
'उस से मिलने की ख़ुशी, बाद में दुख देती है,
जश्न के बाद का, सन्नाटा बहुत खलता है।' (मुईन शादाब)
इस शेर का संशोधित रूप -
'उस से मिलने की खुशी, बाद में दुःख देती है,
चैक बाउंस हुआ, बैंक खबर देती है.'
आखिर में
'ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे,
इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है.'
जिगर साहब के शेर का संशोधित संस्करण -
'ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे,
खुद बिक भी गए तो भी, किश्तों को चुकाना है.'
'किस लुत्फ़ से झुंझला के, वो कहते हैं शबे-वस्ल,
कोरी है पासबुक तेरी, बीमा भी नहीं है?'
और
'उस से मिलने की ख़ुशी, बाद में दुख देती है,
जश्न के बाद का, सन्नाटा बहुत खलता है।' (मुईन शादाब)
इस शेर का संशोधित रूप -
'उस से मिलने की खुशी, बाद में दुःख देती है,
चैक बाउंस हुआ, बैंक खबर देती है.'
आखिर में
'ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे,
इक आग का दरिया है, और डूब के जाना है.'
जिगर साहब के शेर का संशोधित संस्करण -
'ये इश्क़ नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे,
खुद बिक भी गए तो भी, किश्तों को चुकाना है.'
क्या बात है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील बाबू.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवम् मिश्रा जी. 'ब्लॉग बुलेटिन'के माध्यम से आप लोगों का स्नेह मिलता रहे, यही कामना है.
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है। जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"
धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र संवाद' के माध्यम से सुधी पाठकगण तक पहुंचना मेरे साहित्य-सृजन को और अधिक ऊर्जा देता है.
हटाएंबहुत खूब.....,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी. आपकी टिप्पणी दो शब्दों से तो बड़ी ही होनी चाहिए.
हटाएंबढ़िया!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्व मोहन जी.
हटाएंWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
जवाब देंहटाएंOnline Book Publisher India
धन्यवाद टीम बुक बज़ूका. आपको मेरी रचनाएँ अच्छी लगें तो उन्हें अपनी ओर से प्रकाशित करने के लिए मुझसे संपर्क कीजिए. मेरा मोबाइल नंबर है -8527590642
हटाएंहा हा हा हा हा हा हा ----लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद राजेश कुमार राय जी. आपसे बस एक प्रश्न है - मेरे यहाँ चोरी हुई है और आंसू बहाने के बजाय आप हंस रहे हैं?
हटाएंधन्यवाद ज्योति जी.
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