‘हेलेन ऑफ़ ट्रॉय’ की
रोमांचक और दुखद गाथा, हम सबने बचपन में पढ़ी होगी लेकिन आज
से 50-60 साल पहले हेलेन ऑफ़ बॉलीवुड की गाथा हम सब भारतीयों के दिलो-दिमाग पर छाई
रहती थी. उसी हेलेन का एक रोमांचक किस्सा हमारे घर-परिवार में अक्सर याद किया जाता
है.
हमारे बाबा दि ग्रेट बड़े सात्विक और नो-नॉनसेंस किस्म के
प्राणी थे और अपनी पसंद-नापसंद को जग-ज़ाहिर करने में एक सेकंड का समय भी बर्बाद
करने में विश्वास नहीं करते थे.
बाबा की एक दूर की भांजी का, यानी कि हमारी एक बुआजी का
परिवार, हमारे बाबा को क़तई पसंद नहीं था. हमारी ये बुआजी
बेचारी खुद तो गाय-छाप थीं लेकिन उनके पतिदेव अर्थात् हमारे फूफाजी बहुत ही बेढब
किस्म के प्राणी थे. फूफाजी दरोगा थे जो कि दाब के रिश्वत लेते थे, उनके श्री-मुख से गालियों के फूल निरंतर झड़ते रहते थे और उनकी अभिरुचियां
भी कुछ ज़्यादा ही टेक्नीकलर हुआ करती थीं. हमारे उसूलों के पक्के, सादा जीवन-उच्च विचार तथा कबीर जैसी खरी-खरी सुनाने वाले बाबा ने, उन्हें कुल-कलंक दरोगा का नाम दे रक्खा था और उनकी सख्त हिदायत थी कि उस
नालायक को उनके पास फटकने भी नहीं दिया जाए.
हमारी अम्मा की मृत्यु के बाद हमारे बाबा काफ़ी बीमार रहने
लगे थे. अक्सर लोग उनकी मिजाज़पुर्सी के लिए आते रहते थे. एक बार मैं और मुझसे बड़े
भाई साहब बाबा से मिलने के लिए गए थे.
बाबा को हम बच्चों को पुराने किस्से सुनाना बहुत अच्छा लगता
था. बाबा के रूड़की के इंजीनियरिंग कॉलेज के किस्सों के बाद जब तक फर्स्ट वर्ड वार
के किस्से शुरू हों तब तक हमारे बड़े चाचाजी ने बाबा को एक धमाकेदार खबर सुना दी.
वो धमाकेदार खबर थी कि बाबा के पसंदीदा दामाद - कुल-कलंक दरोगा उनकी
मिजाज़-पुर्सी के लिए घर में पधार चुके थे.
यह खबर सुनते ही बाबा बिस्तर पर लेटे-लेटे ही उछल पड़े. बाबा
अपने प्रिय दामाद के लिए चुने हुए विशेषण इस्तेमाल करें, उस से
पहले ही चाचाजी ने हाथ जोड़कर उनसे अरदास की कि वो खानदान की इज्ज़त का ख़याल करके सिर्फ़
पांच मिनट तक उस कुल-कलंक दरोगा को बर्दाश्त कर लें. इसके बाद खाना खिलाने के
बहाने उन्हें बाबा से दूर कर दिया जाएगा.
बाबा ने खा जाने वाली नज़रों से चाचा जी को देखा फिर हम
दोनों भाइयों का लिहाज़ करके दामाद जी से मिलने के लिए अपनी सहमति दे दी.
बाबा के तथाकथित कुल-कलंक दामाद अर्थात् हमारे फूफाजी
पधारे. उन्होंने बड़े अदब से बाबा की तबियत के बारे में पूछा. ये एक ऐसा विषय था
जिस पर बाबा दुश्मन से भी घंटों बोल सकते थे. विस्तार से हाई ब्लड प्रेशर, एंजाइना पेन के बाद बाबा
अनिद्रा रोग पर आए तो फूफाजी भी अपने अनिद्रा रोग का रोना रोने लगे. उन्होंने बाबा
से कहा –
‘मामा जी, आपकी तो उम्र हुई. इस
उम्र में भला किसको नींद आती है? पर इन दिनों तो हमारी भी
रातों की नींद हराम हो गयी है.’
बाबा ने हैरान होकर पूछा –
‘तुमको क्या परेशानी हो गयी? जवान हो, हट्टे-कट्टे हो, दाब कर खाते हो.’
फूफाजी ने अपने अनिद्रा रोग का रहस्य खोला –
‘अरे मामाजी, हमारी नींद तो इस कमबख्त हेलेन ने छीन
ली है. आप हेलेन को तो जानते ही होंगे?’
बाबा ने जवाब दिया –
‘जानने का क्या मतलब? हेलेन ऑफ़ ट्रॉय के बारे में पढ़ा
ज़रूर है. वो लकड़ी के बने बड़े से घोड़े में सिपाहियों को छुपा कर ले जाने वाली कहानी
!’
फूफाजी बाबा की इस नादानी पर जोर से हँसे फिर उन से बोले –
क्या मामाजी हम आज की बात कर रहे हैं और आप हजारों साल पहले
की कहानी पर पहुँच गए. आप एक बार हमारी इस हेलेन ऑफ़ बॉलीवुड को डांस करते हुए देख
लीजिए. उस हेलेन ऑफ़ ट्रॉय को आप भूल न जाएं तो हज़ार रूपये आपके क़दमों में रख
दूंगा.
क्या नाचती है? क्या कमर हिलाती है? और उसकी तो नज़र भी ऐसी कातिलाना है कि कोई पहलवान भी गश खाकर गिर पड़े.’
हम दोनों भाई इस इंतज़ार में थे कि कब बाबा अपनी चप्पल उठाकर
दामाद जी की श्रेष्ठ अभिरुचि की दाद देंगे पर ऐसी कोई हिंसक घटना नहीं हुई.
फूफाजी आधे घंटे तक हेलेन की कातिल अदाओं का ज़िक्र करते
रहे. फ़लां फ़िल्म में उसका कैबरे कमाल का था, फ़लां फ़िल्म में तो वो अपनी
अदाओं से हीरोइन को भी खा गयी थी. ‘हावड़ा ब्रिज’ में तो उसने मधुबाला को टक्कर दी थी ‘ज्वेल थीफ़’ में तो उसने हमको मार ही डाला था, ‘गुमनाम’ में ऐसा और ‘दस लाख’ में वैसा – फूफाजी का हेलेन पुराण चलता रहा
और हमारे बाबा निर्विकार होकर शांत होकर बिस्तर पर पड़े पड़े उसे सुनते रहे.
हम दोनों भाई सोच रहे थे कि हमारे बाबा के भेस में विनोबा
भावे आकर लेट गए हैं. खैर फूफाजी की कथा का अंत हुआ चाचाजी ने उन्हें खाने के लिए बुला लिया और
फूफाजी ने हमारे बाबा से बहुत श्रद्धा के साथ साष्टांग प्रणाम कर के उन से विदा
ली.
फूफाजी चले गए हम दोनों भाई भी जब खाने के लिए जाने लगे तो
बाबा ने अपनी हियरिंग एड में कुछ एडजस्टमेंट कर के हम से पूछा –
तुम्हारा ये दरोगा फूफा हेलेन ऑफ़ ट्रॉय के बारे में इतनी
देर तक क्या बता रहा था?
मैंने हैरान होकर पूछा –
‘बाबा, हेलेन ऑफ़ ट्रॉय की कहानी किसने सुनाई थी? आपने क्या फूफाजी की सारी बातें नहीं सुनीं?
बाबा ने फ़रमाया –
‘अब पढ़ी-पढ़ाई कहानी को बार-बार क्या सुनना? मैंने तो
अपनी हियरिंग एड की बैटरी ऑफ़ कर दी थी. अब फिर से इसकी बैटरी ऑन की है.’
पहली बार बाबा के ऊंचा सुनने पर और अपनी हियरिंग एड की
बैटरी खर्च न करने की उनकी कंजूसी पर हमको प्यार आया था.
बाबा की कोठी से दरोगा फूफाजी सकुशल और बा-इज्ज़त लौट गए
इसका सारा श्रेय हमने बाबा की हियरिंग एड की बंद बैटरी को दिया. लेकिन हमको इस बात
का अफ़सोस भी रहा कि हमारे बाबा को आजीवन सिर्फ़ एक हेलेन – ‘हेलेन ऑफ़
ट्रॉय’ के बारे में ही जानकारी रही और हम सबकी प्यारी, दरोगा फूफाजी की महा-दुलारी हेलेन ऑफ़ बॉलीवुड के बारे में वो सदा अनजान
ही रहे.
वाह। जय जय हो हेलेन की।
जवाब देंहटाएंजय हो हम सब कला-प्रेमियों की और हेलेन की कला के पारखियों की !
हटाएंआदरणीय गोपेश जी -- आज आपकी पोस्ट से मुझे मेरी हंसी थम नही रही है | बाबा जी हेलन के बारे में अनजान रहे और उसका कारण और आपका अंदाजे बयाँ !!! उस बात कल्पना भी खौफनाक है यदि वे असली हेलन के बारे में जान जाते तोउस पल फूफा जी का क्या हश्र होता ? सराहना से परे आपका ये रोचक अंदाज और बाबा जी ,फूफा जी लोगों का सुंदर चरित्र - चित्रण आपसे बेहतर कौन कर सकता है ? इस अनुपम वार्तालाप का तो कोई जवाब ही नहीं | आपके ब्लॉग पर आकर मन से उदासी तो कोसों दूर चली जाती है | आपकी ये शैली ब्लॉग जगत में हंसी -मुस्कान का प्रसार - प्रसार कर अतुलनीय भूमिका निभा रही है | आपका ये हंसमुख अंदाज कभी ना बदले यही दुआ है |सादर -
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेनू जी, आपके द्वारा ऐसी सराहना मेरे लिए किसी ज्ञानपीठ पुरस्कार से कम नहीं है. शायद भगवान ने हमारी सुन ली होगी तभी बाबा ने हेलेन पुराण सुनते समय अपनी हियरिंग एड की बैटरी ऑफ़ कर दी होगी. अब मन करता है कि इन संस्मरणों को जन-जन तक पहुँचाने के लिए कोई प्रकाशक खुद मुझ तक पहुंचे. देखें, मेरी यह मुराद कब पूरी होती है.
जवाब देंहटाएंसर,बहुत आनंद आया संस्मरण पढ़कर..।
जवाब देंहटाएंआपके लिखने का अंदाज़ सच में कमाल का है चलचित्र की तरह सारे शब्द आँखों के सामने छा गये।
ऐसे किस्से और भी लिखिए।
सर आज्ञा हो तो आपका यह संस्मरण अपने कुछ परिचितों को शेयर करें हम।
धन्यवाद श्वेता जी. इस संस्मरण को शेयर करने के लिए आप जैसे सभी कद्रदानों का स्वागत है. मेरे ऐसे चटपटे 100 संस्मरण किसी मेहरबान प्रकाशक के इंतज़ार में हैं. आप जैसे कलम के धनी लोगों का प्रोत्साहन मुझे और कुछ नया लिखने की प्रेरणा देता है और आगे भी देता रहेगा.
हटाएंआपके रोचक अन्दाज में किसी भी याद का अन्दाजे बयां की बात ही कुछ और है । बचपन में चाचियों और भाभियों के साथ देखी हेलेन के नृत्य वाली फिल्में और फिल्म देखने से पूर्व माँ से अनुमति लेने के प्रयास जो पासपोर्ट से लेकर आधार कार्ड बनवाने से अधिक दुसाध्य हुआ करते थे ...., सब की याद दिला दी । फर्क इतना ही रहा कि दादाजी हियरिंग एड की बैट्री बन्द कर अपने मनपसन्द कैरेक्टर की कल्पना में खोये रहे और फिल्मों के शौकीन हम जैसे पात्र माँ से श्रमसाध्य अनुमति के बाद औरों की पसंदीदा फिल्में देख कर सन्तुष्ट होते रहे ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीना जी. हेलेन को हमारे फूफाजी की ऐसी दीवानगी का पता चले तो वो बहुत खुश होंगी. हमारे बाबा ने हेलेन का डांस तो नहीं देखा लेकिन गौहर जान के रिकार्ड्स लाकर उन्हें सुनना बहुत अच्छा लगता था. अपने ज़माने में सब टैक्नीकलर ही होते हैं. आप लड़कियों पर बंदिशें कुछ ज़्यादा होती होंगी. हम तो घर में बाग़ी माने जाते थे. पिताजी कहते थे - 'ये तो डाका डालता है, चोरी करने की इसको क्या ज़रुरत है ?'
हटाएंसब कुछ अद्भुत। बाबाजी, कुल कलंक दरोगा फूफाजी, यंत्र शिरोमणि hearing aid और आपका लेखन, बस हेलेन को छोड़कर।
जवाब देंहटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंत्र' संवाद मंच के माध्यम से अनेक श्रेष्ठ साहित्यकारों से और सुधी पाठकों से मेरा परिचय हुआ है. इस मंच से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिलता है. आप लोगों का स्नेह मेरे लिए अमूल्य है.
हटाएंविश्वमोहन जी. आपने मेरे लेखन, बाबा, कुल-कलंक दरोगा फूफाजी और यंत्र-शिरोमणि हियरिंग एड की तारीफ़ की, इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद लेकिन इस फ़ेहरिस्त में आपने हेलेन को शामिल न कर के कितनों का दिल तोड़ा है इसका आप हिसाब भी नहीं लगा सकते. खैर हमारी गुज़ारिश है कि पुनर्मूल्यांकन कर देवी हेलेन को भी इस फ़ेहरिस्त में शामिल करें और हमारी कथा को पूर्णतया सुखांत बनाएं.
जवाब देंहटाएंवाह सर बहुत मजेदार संस्मरण है, यूं दैनिक जीवन की खट्टी मीठी नोकझोंक और खुशनुमा घटनाओं को अपने शब्दों की जादूगरी से बेमिसाल बनाकर पेश करते हैं आप, बहुत अच्छा लगा, क्षमा करें बस इतना कहूंगी फूंफाजी के माध्यम से बतगोई में देवी हेलन के प्रति आपकी आस्था भी झलक रही है साफ साफ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद कुसुम जी. देवी हेलेन में हमारी आस्था तब से है जब हमने उनकी पहली फ़िल्म देखी थी और 'इन्तक़ाम' तक यह आस्था अपने परवान पर चढ़ती रही. किन्तु समय बदला, हम इतिहास पढ़ाने लगे और देवी हेलेन प्राचीन इतिहास बन गईं. अब नृत्य के दृश्य हमको लुभाते नहीं हैं, उनकी जगह हमारे नाती-नातिन की किलकारियों ने ले ली है.
हटाएंसही पकड़ें हैं प्रिय कुसुम बहन और सबसे बड़ी बात आदरणीय गोपेश जी ने बड़ी सरलता से इस आस्था को स्वीकार भी कर लिया है |
हटाएंरेनू जी, बी. ए. करने के दौरान 100 और एम. ए. करने के दौरान 200 फ़िल्में देखने वाला यह खाक़सार सिनेमा हॉल में कीर्तन करने तो जाता नहीं होगा.
हटाएंवाह! मनोरंजक ज्ञानवर्धक उत्कृष्ट संस्मरण। इसे पढ़ते-पढ़ते अंत में हँसी थम न सकी और मुँह से निकला -"वाह, क्या लिखते हैं सर आप !" सच में आपकी लेखनी का प्रवाह हमें जीवन के विभिन्न अनछुए पहलुओं से परिचित कराता है। व्यंग ने अपना असर पूरा दिखाया है साथ ही जीवन मूल्यों की प्रभावशाली चर्चा भी मन के कोनों को टटोलती है।
जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।
धन्यवाद रवीन्द्र सिन यादव जी. मैं यह मानता हूँ कि अपने गुरुजन की मज़ेदार बातों को स-सम्मान प्रस्तुत किया जा सकता है. इस तनाव भरी ज़िन्दगी में हास्य-व्यंग्य के चंद छींटे मेरे लिए तो ऑक्सीजन का काम करते हैं. आप लोगों का स्नेह मेरी गुस्ताखियों को और अधिक हिम्मत देता है.
हटाएंवाह!!बहुत ही मनोरंजक संस्मरण । पढकर मन खुश हो गया ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभाजी.
हटाएंआप जैसे सुधी पाठक जो कि स्वयं कलम के धनी हों, यदि मेरी रचना पढ़कर खुश हों तो मैं धन्यवाद तो दूंगा ही और साथ में कहूँगा - 'इति सिद्धं!'
किस्सागोई कला में आप प्रवीण है इसमें कोई संदेह नहीं है परन्तु कोई प्रकाशक आपके किस्सागोई में फंस जाए बिना अर्थ के आदान-प्रदान के इसमें थोड़ा संदेह हैं. प्रकाशक भी अपनी ही सुनाता है और बाबा की तरह हियरिंग एड की बैटरी बंद कर आपकी बात सुनता है. बहुत ही रोचक अंदाज में लिखा है आपने. ऐसे ‘हेलेन ऑफ़ ट्रॉय’ का सौन्दर्य का बखान "हेलेन ऑफ़ बॉलीवुड" की अदाओं से ज्यादा कातिल है.
जवाब देंहटाएंकिस्सागोई की कला की प्रशंसा के लिए धन्यवाद राही जी. आप सही कह रहे हैं. लगता है कि अपनी बात सुनाने के लिए किसी प्रकाशक को अपने पैसों से ही हियरिंग एड और उसके साथ कई बैटरी भी दिलानी पड़ेंगी. हमारे बाबा को हेलेन ऑफ़ बॉलीवुड के नृत्य देखने का सौभाग्य तो नहीं मिला लेकिन गौहर जान के रिकॉर्ड सुनने का अवसर वो अक्सर खोज लेते थे. समय ज़रूर बदल जाता है लेकिन आदमी की फ़ितरत कुछ कम ही बदलती है.
हटाएंहम दोनों भाई सोच रहे थे कि हमारे बाबा के भेस में विनोबा भावे आकर लेट गए हैं.....
जवाब देंहटाएंबलिहारी जाऊँ आपके अंदाजे बयां की !!!
सर, अब जब भी मन उदास होगा तो नजर "तिरछी नजर" को ढूँढ़ा करेगी। आपका ब्लॉग भीड़ से हटकर अपनी पहचान बना रहा है। मैं टिप्पणी नहीं कर पा रही किंतु हर पोस्ट पढ़ती हूँ आपकी.... सादर अभिवादन।
धन्यवाद मीना जी.
हटाएंमेरी निगोड़ी कलम मेरे बस में नहीं है. मैं उसे लाख समझाता हूँ कि अपने बुज़ुर्गों की किसी भी बात पर हँसना नहीं चाहिए लेकिन वह यह मानती है कि अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करते हुए भी उनकी मज़ेदार बातों पर हंसा जा सकता है.
कलम की गुस्ताखियों का ही यह नतीजा है कि मेरी हास्य-व्यंग्य की रचनाओं में, मेरे संस्मरणों में, अम्मा, बाबा, नानी नाना, और मम्मी, पापा भी मज़े लगाते रहते हैं.
'तिरछी नज़र' ब्लॉग बनाने का श्रेय मेरी बड़ी बेटी गीतिका को जाता है. उसने दुबई में बैठे-बैठे ही आज से करीब 6 साल पहले मेरा ब्लॉग बना दिया था.
मुझे भी लगा कि जब नौजवान पीढ़ी की एक सदस्या मेरे कलम की गुस्ताखियाँ पसंद करती है तो फिर हो सकता है कि और लोग भी पसंद करें. अब आपकी प्यार भरी टिप्पणी मेरे इस निर्णय को सही ठहरा रही है.