शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

जश्न-ए-मातम

जश्न-ए-मातम (मेरी 32 साल पुरानी कविता )
अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई !
अखबारों में चित्र छपेंगे, पत्रों से घर भर जाएगा,
मंत्री स्वयम् सांत्वना देने, आज तिहारे घर आएगा.
सरकारी उपहार मिलेंगे, भाग्य कमल भी खिल जाएगा,
पिता गए हैं स्वर्ग जानकर, पुत्र गर्व से मुस्काएगा.
विधवा ! रोती इसीलिए क्या, तेरी माँग उजड़ जाएगी?
जल्दी ही सूने माथे की, तुझको आदत पड़ जाएगी.
यह उदार सरकार, दया के बादल तुझ पर बरसाएगी,
थैली भर रुपयों के बदले, तेरी बिंदिया ले जाएगी.
छाती पीट रही क्यों पगली, अभी कर्ज़ यम के बाकी हैं,
यहाँ मौत का जाम पिलाने पर आमादा, सब साक़ी हैं.
बकरों की माँ खैर मना ले, यहाँ भेड़िये छुपे हुए हैं,
कुछ ख़ूनी जामा पहने हैं, पर कुछ के कपड़े ख़ाकी हैं.
मृत्यु सभी की अटल सत्य है, फिर क्यों छलनी तेरा सीना?
बाट जोहने की पीड़ा से मुक्ति मिली, क्यों आँसू पीना?
बच्चों की किलकारी का कोलाहल भी अब कष्ट न देगा,
शांत, सुखद, श्मशान-महीषी, बन, आजीवन सुख से जीना.
अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई,
आम सुहागन से तू, बेवा ख़ास हुई है, तुझे बधाई !

23 टिप्‍पणियां:

  1. झन्नातेदार तमाचा! निःशब्द!!!

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    1. विश्वमोहन जी, हर साल, दो-तीन बार, इस कविता को उद्धृत करने की ज़रूरत क्यों पड़ती है? क्या कोई हाकिम और कोई पहरेदार इसको बताने की ज़हमत करेगा?

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  2. बेवाएं बनवाने वाला पाँच साल में पेंशन पायेगा।

    श्रद्धाँजलि।

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    1. पांच साल ही क्यों? बेवा बनाने वाला तो आजीवन पेंशन पाएगा.

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 17 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को 'पांच लिंकों का आनंद' में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद यशोदा जी.

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  4. गज़ब...सर...एकदम सटीक रचना है ऐसा थप्पड़ बहुत जरूरी है..प्रणाम सर।

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    1. धन्यवाद श्वेता ! मुझे आतंकवादियों से ज़्यादा गुस्सा अपने काहिल, जाहिल और नाकारा हुक्मरानों पर आता है. कितनी बेहयाई से एक ही जुमला बार-बार दोहराते रहते हैं !

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  5. मन दुखी है कल से ..., क्षोभ और दुख के अतिरिक्त क्या शेष बचता है मन मे ।

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  6. मीना जी, हमारा क्षोभ, हमारा दुःख यह सोच कर और भी बढ़ जाता है कि इन्हीं चोरों-लुटेरों और कायरों में से हमको अपना हिफ़ाज़तदां बार-बार चुनना है.

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  7. वहशियत की हद पार थप्पड़ जरूरी है...वीर शहीदों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि,

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  8. संजय भास्कर जी, वहशी को तो हमको नेस्तनाबूद ही करना होगा लेकिन उस से पहले अपने नाकारा ख़ुफ़ियातंत्र को और अपने बड़-बोले हुक्मरानों को झन्नाटेदार थप्पड़ लगाना बड़ा ज़रूरी है.

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  9. निःशब्द हूँ ...
    इतना करारा थप्पड़ सच कहो तो मेरे, आपके सब के गाल पे लगना चाहिए ... पूरे समाज, पूरे संसार के इंसानों पे लगना चाहिए ...

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  10. सही बात है मित्र !हम लोग त्रासदी को भी नौटंकी में बदल देते हैं. सरकार हो, मीडिया हो या हम जैसा कोई आम आदमी हो, हर कोई गाल बजाने को ही देशभक्ति मानता है. जिसका घर उजड़ा, उसके लिए दो शब्द सहानुभूति के बोले और हो गया हमारा फ़र्ज़ पूरा ! इन बातों के लिए सब के गाल पर एक-एक करारा तमाचा तो लगना ही चाहिए.

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  11. सादर नमस्कार सर ,आप की रचना हर एक हृदय का आक्रोश है ,जब कूप में ही भांग पड़ी हो तो दूध से धुला कहाँ से ढूढ़े।

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    1. धन्यवाद कामिनी सिन्हा जी. इन नाकारा हुक्मरानों को अपनी बेकार सी जानों की सुरक्षा के लिए अरबों खर्च करने में लाज नहीं आती पर हमारे जवानों की सुरक्षा पर खर्च करना इनके लिए फ़िज़ूलखर्ची है. आए दिन ऐसे हादसे होते रहते हैं और हम कुछ दिन आंसू बहाकर और कुछ देर अपना गुस्सा जता कर शांत हो जाते हैं. हमको अब अपने जवानों की खून की और उनकी शहादतों की कीमत इन भांग के कुएं में पड़े हुक्मरानों से वसूलनी होगी और अगर ये नहीं चेते तो इन्हें हमको कुर्सी से हटाना होगा.

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  12. काफ़ी बार पढ़ी सर आप की रचना | पता नहीं कितना समझ पाई |यही कहुगी अगले जन्म में फौजी की पत्नि बनना |सुहागन होते हुए |तन पर विधवा का लबाज़ देखना |कितना लड़ पाते हो समाज से अपनी ताकत का कमाल देखना | समाज को क्या बदलना,अपनों के बदलते तेवर देखना | जिंदगी नहीं रुकती किसी के जाने से, पल -पल अपनी ही सासों को जनाजा देखना |नमन
    सादर

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    1. अनीता जी, अगले जनम में आप फ़ौजी की पत्नी नहीं, बल्कि ख़ुद फ़ौजी बनिएगा और दहशतगर्दों को जहन्नुम पहुंचाइएगा लेकिन उसके लिए आपको और बाकी जवानों के लिए आत्म-रक्षा का समुचित प्रबंध किया जाना ज़रूरी है.

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  13. तमाचा तो बहुत ही जोरदार है पर अफसोस कि देश के हुक्मराने न पढते हैं न सुनते हैं...और दूर भी हैं वहाँ तक किसी के हाथ कहाँ पहुँचते हैं...
    ये बड़बोले तो अपनी कहकर खिसकते हैं ।

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    1. सुधा जी, जिस लोकतंत्र में हमको एक ही थैली के मक्कार चट्टे-बट्टों में से अपने प्रतिनिधि और अपना शासक चुनने की विवशता हो, वह मुझे स्वीकार्य नहीं है. हमारी व्यवस्था में आमूल परिवर्तन हो तभी कुछ अच्छा हो सकेगा.

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    2. शुभ प्रभात सर |
      फ़िर आप के ब्लॉग पर पहुँच गई |आप से माफ़ी चाहती हूँ |आप की रचना के व्यग्य भाव को समझ न सकी | पर रचना में इतना सच्च था जो हलक से न उतार पाई | अब धीरे धीरे आप की रचना मन के कोने सोच से उपर अपनी जगह बनाने लगी |बहुत अच्छा लगा |आप का मार्गदर्शन और साथ मिला |
      आभार
      सादर

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  14. अनीता जी, बांगला देश बनने के बाद से पाकिस्तान द्वारा दहशतगर्दों की मदद से चलाई जाने वाली प्रॉक्सी वार का कोई तोड़ हमारी नाकारा सरकारे कोई तोड़ नहीं खोज पाई हैं. आए दिन हमारे जवान शहीद होते हैं लेकिन उनकी सुरक्षा का समुचित प्रबंध करने के प्रति हमारे हुक्मरान उदासीन रहते हैं. और उसका नतीजा होता है पुलबामा जैसा हत्याकांड. 32 साल पहले की मेरी यह व्यंग्यात्मक शिक़ायत आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है.
    दर्द, कुंठा और आक्रोश में लिखी यह कविता आपको अच्छी लगी, यह जानकार संतोष मिला.

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  15. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-02-2020) को "प्रेम दिवस की बधाई हो" (चर्चा अंक-3611) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    आँचल पाण्डेय

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