रविवार, 17 मार्च 2019

क़ौमी फ़साना


सारे जहाँ में चर्चा, होता यही, हमारा.

अब बुलबुलें न दिखतीं, सहरा, वतन हमारा.

रो-रो सिसक रही हैं, इसकी हज़ारों नदियाँ,

परबत भी खौफ़ से अब, है काँपता हमारा. 

मज़हब-धरम सिखाता, आपस में, बैर रखना,

घर उनके,  हम जलाएं, वो फूंके घर,  हमारा.

हर शाख पर कुल्हाड़ा या फिर चलाया, आरा,

नादानियों से ख़ुद की, उजड़ा चमन, हमारा.

क्या बात है, जहालत, मिटती नहीं हमारी,

सदियों पिछड़ गया है, हिन्दोस्तां, हमारा.  

किस्मत ने साथ छोड़ा, रूठा ख़ुदा, हमारा,

अब फिर जनम न लें हम, इसमें कभी, दुबारा.

सारे जहाँ में चर्चा ---

10 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. धन्यवाद सुशील बाबू ! किन्तु - 'बहुत ख़ूब !' की जगह - 'बहुत सच !' कहो.

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    2. सच = झूठ मतलब आज झूठ सबसे बड़ा सच हो गया है अब बहुत झूठ हम तो कह नहीं सकते । राजा कहे तो कहे प्रजा सुने तो सुने। फिर भी बहुत सच एक ही है भगवान जी जो कुछ टाईम पहले ही धरती पर उतरे हैं और सुना है सत्तर साल तक रहेंगे ।

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    3. अवतार ले के भगवन, इस देश को बचा ले,
      इन देश-रक्षकों को, अपने यहाँ, बुला ले.

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  2. गज़ब गज़ब गज़ब ...
    सुर में सुर हमारा भी ... सच में कहाँ से कहाँ तक आ गए हैं हम ...
    जबरदस्त व्यंग की धार जो सीधे उतर जाती है अन्दर तक ... बधाई इस तराने पर ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर नसवा जी. अल्लामा इक़बाल के क़ौमी तराने की जितनी विकृत कल्पना की जा सकती थी, उसकी उस से कहीं अधिक विकृत प्रस्तुति हमारे लीडरान ने कर दी है. और हम मूरख उनके इशारों पर अपनी क़ब्रें ख़ुद ही खोदते चले आ रहे हैं.
      वक़्त का तकाज़ा है कि हम अपने इन नेताओं को और अपनी इस बीमार सोच को बदलें.

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  3. जन्म तो यहीं लेंगे । आस पर दुनिया कायम है । सुन्दर और तीखा सृजन ।होली के पावन अवसर पर आपको अशेष व अनन्त शुभकामनाएं 🙏🙏

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    1. मीना जी, यह निराशा भरा क़ौमी फ़साना मैंने इसीलिए होली से काफ़ी पहले पोस्ट किया था ताकि होली के रंग में भंग न पड़े. हम-आप दुबारा जन्म तो ज़रूर लें अपने भारत में, लेकिन बदले हुए स्वस्थ वातावरण में.
      होली के शुभ अवसर पर पर आप सबको भी हार्दिक शुभकामनाएँ !

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  4. गोपेश जी, आज के हालात का सटिक विश्लेषण किया हैं आपने। लेकिन कुछ ज्यादा ही नकारात्मक लग रहा हैं। अभी भी हमारे हिंदुस्थान के हालात इतने गए बीते नहीं हैं कि हम यहां दोबारा जन्म लेना नहीं चाहेंगे। मैं तो हिंदुस्थान में ही जन्म लेना चाहूंगी!

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    1. ज्योति जी, सुनार की चोटें तो हमारे लिए लोरी का काम करती हैं इसलिए मैंने अपने साथ, समस्त देशवासियों को जगाने के लिए लुहार वाली चोट दी है और लुहार की चोट में नकारात्मकता तो अधिक होगी ही. आप हिन्दोस्तान में बार-बार जन्म लीजिए और उसका उद्धार करने के प्रयास में सतत संलग्न रहिए. इस भागीरथ-प्रयास के लिए मेरी शुभकामनाएँ. वैसे मेरा जैसा निराशावादी और कटु-सत्य बोलने वाला अगर हिन्दोस्तान में दुबारा जन्म न ले तो इसमें तो सबका भला है.

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