अंगने लाल (मुख्यमंत्री) –
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी ! एक इतिहासकार की हैसियत से तुमने पूरे भारत में नाम रौशन किया है, खास कर के नए-नए राजवंशों का इतिहास लिख कर.
अब तुमको हमारे राजवंश का भी इतिहास लिखना है.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
हुज़ूर, आपके राजवंश ने हमारे प्रदेश की स्वर्ण-युग में फिर से वापसी कराई है. इस सुनहरे दौर की दास्तान लिखने का फ़ख्र अगर मुझे हासिल हो जाए तो मैं इसे अपनी खुशकिस्मती समझूंगा.
अंगने लाल –
ऐसा फ़ख्र तो हम तुमको हासिल करने देंगे पर एक शर्त है –
तुम्हारे बारे में सुना है कि तुम राजवंशों का इतिहास लिखते समय झूठ का बहुत सहारा लेते हो लेकिन हमारे राजवंश का इतिहास लिखते समय तुम कुछ भी सरासर झूठ नहीं लिखोगे.
हाँ, बढ़ा-चढ़ा कर लिखे जाने पर या अर्ध-सत्य लिखे जाने पर हमको कोई ऐतराज़ नहीं होगा.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
अन्नदाता ! आपके खानदान के सारे कच्चे-चिट्ठे मैं आप से ही जानना चाहूँगा.
इस कच्चे-चिट्ठे को मैं इतिहास के पन्नों में अर्ध-सत्य का मुलम्मा चढ़ा कर ऐसे पेश करूंगा कि आपका राजवंश, मौर्य राजवंश, गुप्त राजवंश, और मुगलिया खानदान को भी, महानता की दौड़ में पछाड़ दे.
हाँ तो माई-बाप पहले आप अपने पुरखों के बारे में बताएं.
अंगने लाल –
हमारे पुरखे तो ज़रायम-पेशा (आपराधिक गतिविधियाँ कर अपना जीवन-यापन करने वाले) लोग थे.
सुनसान सड़कों पर काफ़िले लूटने में उन्हें महारत हासिल थी.
अंग्रेज़ी राज में तो ज़रायम-पेशा क़बीलों में हमारा कबीला टॉप टेन में हुआ करता था.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
अगर अंग्रेज़ आपके क़बीले को अपराधी मानते थे तो फिर उसे अंग्रेज़ सरकार के ख़िलाफ़ क्रांति का बिगुल बजाने वाला राज-परिवार कहने से भला मुझे कौन रोक सकता है?
अंगने लाल –
क्रांतिकारी ! वाह क्या दूर की कौड़ी लाए हो प्रोफ़ेसर !
लेकिन हमारे दादा जी का क्या करोगे?
वो तो बटमारी का अपना खानदानी पेशा छोड़ कर कलेक्ट्रेट में चपरासी हो गए थे.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
दयानिधान ! 'खानसामा' को - 'खानेखाना' में बदलना तो मेरे बाएँ हाथ का खेल है.
आपके दादाजी कलेक्ट्रेट में मुलाज़िम थे तो मैं यह लिख दूंगा कि वो कलेक्टर थे.
इसमें कलक्ट्रेट में काम करने वाली बात तो झूठी नहीं होगी.
अब आप अपने माता-पिता के बारे में बताएं.
अंगने लाल –
अपनी माता जी के खानदान के बारे में तो हमको कुछ ख़ास पता नहीं.
हाँ, इतना पता है कि वो हमारे पिताजी के साथ भागने से पहले तीन-चार अन्य प्रेमियों के साथ भी भागी थीं.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
तो फिर आपकी माता जी को मैं ख्यातिप्राप्त धाविका दिखा दूंगा.
और आपके पूज्य पिताजी क्या करते थे?
अंगने लाल –
हमारे दादा जी तो पिता जी को पंखा कुली की नौकरी दिलवाना चाहते थे लेकिन उनका मन तो सिर्फ़ मन्दिर की चौखट पर रखे हुए जूते-चप्पल चुराने में ही रमता था.
अब बताओ हिस्टोरियन बाबू ! इस सत्य पर तुम अर्ध-सत्य का मुलम्मा कैसे चढ़ाओगे?
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
मालिक ! मैं आपके पिताजी के पेशे के बारे में कुछ नहीं लिखूंगा.
हाँ, इतना ज़रूर लिखूंगा कि वो बिना मन्दिर जाए कभी अन्न-जल ग्रहण नहीं करते थे.
अंगने लाल -
हमारे बारे में क्या लिखोगे? हम तो राजनीति में आने से पहले लाठी लेकर गाय-भैंस हांका करते थे.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
भगवान शंकर को पशुपति कहा जाता है.
कान्हा जी गाय चराते थे और ईसा मसीह, हज़रत मुहम्मद भेड़ें चराते थे.
मैं आपको इन सबका हम-पेशा बता कर आपको भी मसीहाई दर्जा दिला कर रहूँगा.
अंगने लाल – इतिहासकार बाबू ! हम लगभग अंगूठा-छाप हैं. इसका क्या करोगे?
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
मैं आपको कबीरपंथी कहूँगा.
वैसे गुरुदेव कहे जाने वाले रबीन्द्रनाथ टैगोर के पास भी कोई डिग्री नहीं थी.
अंगने लाल –
अपने नालायक लड़के का हम क्या करें? उस कमबख्त को तो राजनीति से ज़्यादा दिलचस्पी स्मगलिंग में है.
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
राजन ! मैं आपके राजकुंवर को आयात-निर्यात व्यापार के उभरते हुए सितारे के रूप में प्रस्तुत करूंगा.
वैसे भी राजनीति में उतरने से पहले इस प्रकार के साहसिक अभियानों का अनुभव तो उनके लिए लाभदायक होगा ही.
अंगने लाल –
ठीक है प्रोफ़ेसर ! लिखो हमारे राजवंश का इतिहास ! पर यह बताओ कि तुम पिछले दिनों किस राजवंश का इतिहास लिख रहे थे?
प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी –
हुज़ूर, वैसे ये बात टॉप सीक्रेट है पर मैं आपको बता देता हूँ.
पिछले दिनों मैं दाऊद इब्राहीम राजवंश का इतिहास लिख रहा था.
गोपेश भाई,आपका यह लेख इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करनेवालों पर करारा तमाचा है। बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए धन्यवाद ज्योति !
जवाब देंहटाएंऐसे ख़ुशामदी-टुकड़खोर इतिहासकारों को तो चौराहे पर पीटा जाना चाहिए.
लेकिन क्या करें, आज ज़माना तो इन्हीं का है !
किसी को तो पिटवा ही लीजिये :)
जवाब देंहटाएंमित्र, हम तो माटीरूपी इतिहासकार हैं और मुसाहिब इतिहासकार कुम्हार समान हैं.
जवाब देंहटाएंफ़िलहाल तो वही हमको रौंद रहे हैं.
अभी हमारा दिन नहीं आया है.
'ये कभी सत्य कहने से डरते नहीं' (चर्चा अंक - 4095) में मेरी कहानी को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएंवाह!गज़ब लिखा सर।
जवाब देंहटाएंसादर
प्रशंसा के लिए धन्यवाद अनीता !
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया ओंकार जी.
हटाएंलाजवाब कर दिया आपने सर,उत्कृष्ट लेखन ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा.
हटाएं😂😂😂सर आपकी लेखनी से एक शिकायत है हमे। ये जब हँसाना शुरू करती है तो रुकती ही नही। बाबा रे हँसा हँसाकर थका दी।
जवाब देंहटाएं.....बस अभी कुछ बरस पहले हमारे देश में कुछ अवतार हुए हैं। हमे पूरी उम्मीद है कि प्रोफ़ेसर चारण भाट जी ने उनका गुणगान करना भी आरंभ कर दिया होगा। ऐसे इतिहासकारों का तो जितना आभार माना जाए कम है। आख़िर इनके कारण ही तो भारत अबतक विश्वगुरु बना है।
आपकी लेखनी को बारंबार प्रणाम सर। आपकी हर रचना अविस्मरणीय है।..... और यह व्यंग तो सराहना से परे।🙏
इस व्यंग्य-कथा की सराहना के लिए धन्यवाद आँचल !
हटाएंअंगनेलाल जैसे नेता और प्रोफ़ेसर चारण भाट दरबारी जैसे साहित्यकारों ने हमारे देश को अन्धकार के युग में प्रविष्ट करा दिया है.
अब हम विश्वगुरु तो नहीं रहे किन्तु विश्व के अधिकांश नटवरलाल हमारे देश की ही देन होते हैं.