हमारे बाबा स्वर्गीय श्री लाडली प्रसाद जैसवाल के लिए ग्रेट विशेषण का प्रयोग किया जाना सर्वथा आवश्यक है.
बाबा ग्रेट थे. भगवान ने उनका जैसा पीस न तो उन से पहले बनाया था और न ही उनके बाद बनाया.
हमारे बाबा पुख्ता रंग के गंजे प्राणी थे लेकिन उन्हें दूसरों के रंग-रूप की खिल्ली उड़ाने में बहुत मज़ा आता था.
किसी काली रंगत वाले को ही क्या, वो तो सांवली रंगत वाले को भी उल्टा तवा कहा करते थे.
बाबा जब पिताजी की बारात लेकर हमारी ननिहाल एटा पहुंचे तो समधियाने में उनके रूप का वर्णन कई गीतों में गुंजायमान हुआ.
बाबा ने –
‘मेरो समधी कित्तो कारो - - -‘
पर ख़ुद हंस-हंस कर ताल दी थी.
लेकिन जब महिलाओं ने हमारे सादाबादी (आगरा-अलीगढ़ के बीच एक क़स्बा) खानदान की शान में –
‘सादाबादी बड़े सवादी (खाने-पीने के शौक़ीन),
नोन-मिर्च पे, बेची दादी.’
गाया तो वो बाक़ायदा बुरा मान गए.
हमारे नाना जी के लाख माफ़ी मांगे जाने पर ऊपरी तौर पर तो उन्होंने समधिनों को उनकी इस गुस्ताख़ी के लिए माफ़ कर दिया लेकिन फिर उन्होंने समधियाने को नीचा दिखाने का कोई मौक़ा कभी छोड़ा नहीं.
हमारे नाना, मामा आदि आम तौर पर छोटे क़द के हुआ करते थे.
बाबा उनकी तुलना धनिए की और पोदीने की, झाड़ों से किया करते थे.
हमारे नाना जी एटा के प्रतिष्ठित मुख्तार (हाई स्कूल करने के बाद मुख्तारी का डिप्लोमा लेकर कोई भी व्यक्ति लोअर कोर्ट्स में पैरवी कर सकता था) थे.
उन्हें हिंदी-उर्दू आती थी. अंग्रेज़ी में नाना जी का हाथ तंग था और फ़ारसी उन्हें नहीं आती थी.
हिंदी, उर्दू, अंग्रेज़ी और फ़ारसी के जानकार हमारे बाबा, नाना जी को जब भी चिट्ठी लिखते थे तो वो या तो अंग्रेज़ी में होती थी या फिर फ़ारसी में.
नाना जी अटक-अटक के, अंग्रेज़ी की चिट्ठी तो पढ़ लेते थे लेकिन फ़ारसी की चिट्ठी पढ़वाने के लिए और उसकी व्याख्या करवाने के लिए, उन्हें एक मौलवी साहब को एक-एक चिट्ठी के दो-दो आने देने पड़ते थे.
बाबा के खानदान की तुलना में हमारी ननिहाल काफ़ी कमज़ोर हुआ करती थी.
हमारे नाना जी के बड़े भाई साहब यानी कि हमारे बड़े नाना जी, एटा के बारथर गाँव के पटवारी थे.
हमारे बाबा उन्हें व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ - ‘एस. डी. एम. बारथर’ कहा करते थे.
हाँ, हमारी माँ की ननिहाल बड़ी रईस हुआ करती थी.
हमारी माँ के नाना जी बरमाना गाँव के ज़मींदार थे.
बारह सौ बीघा तो उनके खेत थे.
महा-नाना जी के यहाँ गुलाब की खेती हुआ करती थी और उनके यहाँ का गुलाब का इत्र और गुलाब जल सारे ब्रज-क्षेत्र में मशहूर था.
समधियाने से भेंट में आने वाले गुलाब जल और गुलाब के इत्र का इंतज़ार तो हमारे बाबा भी बड़ी बेसब्री से किया करते थे.
माँ के नाना जी यूँ तो अपने इलाके की बहुत इज्ज़तदार हस्ती थे लेकिन उनके दामन पर एक ज़बर्दस्ती का दाग लग गया था.
1927 में उनके गाँव वालों का अपने पड़ौस के गाँव वालों से ज़बर्दस्त झगड़ा हो गया था.
इस झगडे में दोनों गाँवों के एक-एक शख्स की मौत भी हो गयी थी.
इस झगडे के वक़्त माँ के नाना जी बरमाना में थे भी नहीं लेकिन दोनों गाँवों के ज़मींदारों को भी इस झगड़े में भागीदार माना गया.
माँ के नाना जी को लोअर कोर्ट से सज़ा हो गयी. उन्हें जेल जाना पड़ा.
बाद में हाई कोर्ट से वो बा-इज्ज़त बरी हुए लेकिन तब तक जेल में वो पूरा एक बरस काट चुके थे.
बाबा को अपने समधियाने की इस दुखती रग पर हाथ रखना बहुत अच्छा लगता था.
बाबा और नाना जी की जब भी भेंट होती थी तो नाना जी के ससुर जी के जेल-गमन और जेल-प्रवास का ज़िक्र तो बाबा छेड़ ही दिया करते थे.
बेचारे नाना जी के पास विनम्र मुस्कान के साथ ऐसी चोटों को बर्दाश्त करने के अलावा कोई चारा भी नहीं होता था.
हमारे नाना जी की मृत्यु के बाद बाबा को समधियाने की इस दुखती रग पर हाथ रखने के लिए नए सुपात्रों की ज़रुरत पड़ी.
बाबा की ख़ुशकिस्मती से उन्हें हमारे जितेन्द्र मामा के रूप में ऐसा सुपात्र मिल गया.
पिताजी जब आगरा में पोस्टेड थे तब बाबा कुछ महीनों के लिए उनके पास रहने आए थे.
उन दिनों हमारे जितेन्द्र मामा हॉस्टल में रह कर आगरा कॉलेज से बी. ए. कर रहे थे.
जितेन्द्र मामा का अपना हर इतवार बहन-जीजा और बच्चों के साथ बीतता था.
बाबा के आगरा-प्रवास में जितेन्द्र मामा को बाबा के किस्सों का स्थायी श्रोता बनना पड़ता था.
बाबा के पास किस्सों का ख़ज़ाना हुआ करता था.
कभी उनके इंजीयनियरिंग कॉलेज के किस्से, तो कभी फ़र्स्ट वार के किस्से, तो कभी सेकंड वर्ड वार के किस्से !
इन सभी ऐतिहासिक किस्सों को हमारे बाबा हमारे महा-नाना जी के जेल-गमन से, जेल-प्रवास से या फिर जेल-रिहाई से, ज़रूर जोड़ दिया करते थे.
जैसे कि बाबा की कॉलेज लाइफ़ का कोई किस्सा हो तो वो जितेन्द्र मामा को संबोधित करते हुए वो कहते –
‘तुम्हारे नाना जी के जेल जाने से से क़रीब पंद्रह साल पहले की यह बात है - -‘
फ़र्स्ट वर्ड वार के दौरान गौंडा में अश्वेत सैनिकों की घघरिया पलटन
(सैनिको की इस पलटन की पोशाक टॉप और स्कर्ट हुआ करती थी) आई थी जिसका कि एक-एक फ़ौजी दो-दो मुर्गे खा जाता था.
बाबा घघरिया पलटन का कोई किस्सा जब सुनाना शुरू करते थे तो उसका कालक्रम निर्धारित करते हुए कहते थे –
‘तुम्हारे नाना जी के जेल जाने से क़रीब 11-12 साल पहले घघरिया पलटन जब गौंडा आई थी तब उसने सात दिन में गौंडा के सारे मुर्गे और बकरे डकार लिए थे ---- ’
सेकंड वर्ड वार के दौरान बढ़ी महंगाई का कोई किस्सा बाबा कुछ इस तरह शुरू करते थे –
‘तुम्हारे नाना जी के जेल से छूटने के करीब बारह साल बाद सोना रातों-रात दोगुनी कीमत का हो गया था -- - - -’
जितेन्द्र मामा की शक्ल में हमारे बाबा को एक विनम्र, धैर्यवान और सहनशील श्रोता मिल गया था.
अगर देखा जाए तो जितेन्द्र मामा समधियाने की वो अकेली शख्सियत थे जो कि हमारे बाबा को पसंद थे.
हमारे बाबा जन्म-कुंडली बहुत अच्छी बनाते थे.
यह बात और है कि उन पर आधारित उनकी भविष्यवाणियाँ अक्सर ग़लत निकला करती थीं.
एक दिन बाबा को हमारे जितेन्द्र मामा पर बड़ा प्यार आया. उन्होंने मामा से कहा –
‘चलो जितेन्द्र कुमार ! तुम्हारी कुंडली बनाते हैं !
हाँ, तुम ये बताओ कि तुम कब पैदा हुए थे !’
जितेन्द्र मामा ने हाथ जोड़ कर जवाब दिया –
‘नाना जी के जेल से छूटने के चार साल, तीन महीने और दो दिन बाद !’
बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र !
हटाएंबढिया पोस्ट है। बधाई।
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया नितीश तिवारी जी.
हटाएंजितेंद मामा का नहले पर दहला बहुत ही अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति !
हटाएंमुझे यह किस्सा जितेन्द्र मामा ने ही सुनाया था.
बहुत गुदगुदाती रचना। सादाबादी इतिहास को उकेटने वाली उन महान महिला इतिहासकारों को नमन!😀🙏
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद मित्र ! ब्रज-क्षेत्र के हमारे पुरखे वाक़ई महा-चटोरे और पेटू हुआ करते थे.
हटाएं....चार साल ,तीन महीने और २ दिन बाद. hahaha
जवाब देंहटाएंवाकई ग्रेट थे बाबा तो. बहुत सुंदर.
मैंने ऐसे विषय पर; जो आज की जरूरत है एक नया ब्लॉग बनाया है. कृपया आप एक बार जरुर आयें. ब्लॉग का लिंक यहाँ साँझा कर रहा हूँ- नया ब्लॉग नई रचना
अच्छा लगे तो फॉलो जरुर करियेगा.
मेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद रोहितास घोरेला.
हटाएंतुम्हारे ब्लॉग का लिंक अधूरा है. पूरा लिंक भेजो. मैं तुम्हारा ब्लॉग अवश्य देखूँगा.
कृपया रविवार को सोमवार पढ़े।
जवाब देंहटाएंसादर
'कुछ नई बातें नये ज़माने की सिखाना भी सीख (चर्चा अंक - 4102) में मेरे संस्मरण को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंरोचक रचना... रिश्तेदारी में ऐसे पीस बहुत मिल जाते हैं... मामा जी का नहले पर दहला बहुत अच्छा लगा..
जवाब देंहटाएंमेरी रचना की प्रशंसा के लिए धन्यवाद विकास नैनवाल जी.
हटाएं8 साल पहले 62 साल की उम्र में मैंने अपनी पहली कार (जो कि मेरे जीवन की आखिरी कार भी होगी) आल्टो -800 खरीदी तो मेरे अनेक आत्मीयजन मुझे बधाई देने के बजाय मेरी कार को माचिस की डिब्बी या चार पहिए वाला स्कूटर बताने लगे.
ऐसे महात्माओं के सामने मेरी स्थिति भी हमारे जितेन्द्र मामा जैसी ही हो जाती है.
आदरणीय सर,नमस्कार!
जवाब देंहटाएंआपका आज का ये संस्करण थोड़ा विलंब से पढ़ा,बहुत ही आनंद आया, जीवन रस से सजी आपकी ये कहानियां बिलकुल अपने जैसी लगती है, मैने भी ऐसी गालियों के गीत बहुत सुने,और मौका मिलते ही आज भी गा देती हूं, उसका जो मजा है,वो आपके इस लेख ने ताजा कर दिया,बहुत जल्दी आपको "सादाबादी वाला गीत"
मैं पूरा करके भेजूंगी या आपके पास हो तो भेज दें,बड़ी मेहरबानी होगी अन्यथा मुझे दिमाग लगाना पड़ेगा ।😀 मुझे अपने गीतों के ब्लॉग पर डालना है, आखिर आप जैसे विज्ञ का इस विधा में रुचि बहुत ही सार्थक ऊर्जा देती है,मेरे घर के सारे बड़े पिताजी,मामाजी,बड़े भाई लोग, चाचाजी इन लोकगीतों को बहुत पसंद करते हैं, हम लोग जब गाते हैं,तो उनकी फरमाइश बढ़ती जाती है ।
आपका कोटि कोटि आभार एवम वंदन 🙏🙏
संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा. ब्रज-क्षेत्र में बिना गाली गाए तो पुराने ज़माने में कोई शादी हो ही नहीं सकती थी.
हटाएंरामभक्त तुलसीदास तक ने विवाह के अवसर पर गाई जाने वाली गालियों की रचना की है. मुझे दुःख है कि मेरे पास ऐसी गालियों की अमूल्य निधि बिलकुल भी नहीं है. मुझे तो जो एकाद पंक्ति याद थीं, वो मैंने लिख दी हैं.
तुम इन गालियों को एकत्रित कर हमारी लोक-संस्कृति के पुनरुत्थान का सराहनीय कार्य कर रही हो. इस अभियान में सफलता के लिए तुम्हें शुभकामनाएँ.
हाँ, पहले आकाशवाणी लखनऊ पर एक गाली वाला लोकगीत आता था - '
'तेरी जात न जानी रे, जसोदा के ललना --'
तुम यू ट्यूब पर इसे खोज सकती हो.
तुमको ब्रज के लोक-गीतों के संग्रहों में भी गाली-गीत मिलने चाहिए.
बहुत आभार आदरणीय सर 🙏 देखती हूं यू ट्यूब पे,वैसे मैं, कुछ मेरे खानदान की,कुछ मेरे रचे रोचक गाली गीत पढ़ने को मिलेंगे आपको। आपसे एक सुझाव चाहिए,मैने भी एक यूट्यूब चैनल बनाया है क्या उस पर इन गीतों को डाला जा सकता है। अपना सुझाव जरूर दीजिएगा।
हटाएंजिज्ञासा, यू ट्यूब पर अपने गाली-गीतों की वीडियो-रिकॉर्डिंग तुम ज़रूर डालो.
हटाएंअपने यू ट्यूब चैनल का लिंक भेजना.
बहुत बढ़िया संस्मरण आदरणीय।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद अनुराधा जी. दरअसल यह किस्सा मैंने अपने जितेन्द्र मामा से सुना था. यह घटना तो मेरे जन्म से भी पहले की थी.
हटाएंदिलचस्प पोस्ट...
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर कुमारी शरद सिंह.
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