रूस-उक्रेन विवाद की पृष्ठभूमि में कश्मीर विवाद को युद्ध से सुलझाने की तजवीज़ करने वालों से मेरे कुछ सवाल -
आपस में दोऊ लड़ मूए -
जंग हुई फिर जीत गए,
कश्मीर का मसला हल होगा?
फिर न कहीं बमबारी होगी,
कहीं न फिर मातम होगा?
हिन्दू-मुस्लिम, गहरी खाई,
क्या इस से पट जाएगी?
और करोड़ों भूखों को,
हर दिन रोटी मिल जाएगी?
भटक रहे जो रोज़गार को,
रोज़ी उन्हें दिलाएगी?
माँ की कोख में सहमी कन्या,
जनम सदा ले पाएगी?
सूनी गोदें, उजड़ी मांगे,
क्या फिर से भर पाएंगी?
ताबूतों में रक्खी लाशें,
नहीं किसी घर आएंगी?
जंग जीत ली तो हाकिम के,
जल्वे कम हो जाएंगे?
किसे खरीदा, कहाँ बिके ख़ुद,
चर्चे कम हो जाएंगे?
चोरी, लूट, मिलावट, का क्या,
मुंह काला हो जाएगा?
जनता के सुख-दुःख में शामिल,
जन-प्रतिनिधि हो पाएगा?
मेहनतकश इंसान हमेशा,
मेहनत का फल पाएगा?
लोकतंत्र का रूप घिनौना,
क्या सुन्दर हो जाएगा?
राम-राज का सपना क्या,
भारत में सच हो जाएगा?
यह सब अगर नहीं हो पाया,
जीत-हार बेमानी है.
राजा सुखी, प्रजा पिसती है,
हरदम यही कहानी है.
वहशत, नफ़रत, खूंरेज़ी की
हर इक सोच, मिटानी है.
नहीं चाहिए जंग हमें अब,
शांति-ध्वजा फहरानी है.
'सूनी गोदें, उजड़ी मांगे, क्या फिर से भर पाएंगी/' (चर्चा अंक - 4356) में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने ।युद्ध ही किसी समस्या का हल नहीं, भावपूर्ण हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा. नफ़रत से कोई मसला हल नहीं होता.
हटाएंआपके हमारे जंग न चाहने से क्या जंग नहीं होगी?
जवाब देंहटाएंकाश कि यह निर्णय हम नागरिकों के अधिकार.क्षेत्र में आता।
बेहद विचारणीय प्रश्नों से युक्त मार्मिक अभिव्यक्ति सर।
सादर
प्रणाम।
श्वेता, हम नागरिकों की रीढ़ की हड्डी कमज़ोर है वरना हम अगर खड़े हो कर जंग के हिमायतियों की खिलाफ़त करें तो यकीनन उन्हें नफ़रत की सियासत-तिजारत करने से रोका जा सकता है.
हटाएंहिसाब की किताब का क्या होगा हजूर? हवाई जहाज में नारे कौन लगायेगा ? शांति हो गयी तो शोर का खजाना खाली हो जायेगा? हमारे भौंपू का गला चौक हो जायेगा :) :) :)
जवाब देंहटाएंआदरणीय भोंपू के खिलाफ़ मैं एक शब्द भी नहीं सुन सकता और तुम हो कि उन पर दोषारोपण किए ही जा रहे हो.
हटाएंअटल जी के अंदाज़ में कहना हो तो मैं कहूँगा - 'ये अच्छी बात नहीं है !'
यूद्ध में सिर्फ मौत जीतती है .. मानवता हारती है ... पर कौन और कितने समझते हैं इसे ... फिर कई बार शान्ति युद्ध के बिना नहीं आती ... क्योंकि शांति से शांति के अर्थ कहाँ समझ पाता है इंसान ...
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने दिगंबर नासवा जी.
हटाएंधर्म-संस्थापनार्थ कोई युद्ध नहीं लड़ा जाता.
महाकवि दिनकर की अमर रचना 'कुरुक्षेत्र' का पहला चरण -
'कौन वह रोता वहां इतिहास के अध्याय पर ---'
आपकी बात का समर्थन करता है.
युद्ध से अगर किसी का फायदा होता तो फायदों की दुकाने अब तक बंद हो जाती.
जवाब देंहटाएंविचारणीय अभिव्यक्ति.
Welcome to my New post- धरती की नागरिक: श्वेता सिन्हा
मित्र, युद्ध कराने वाले कभी भी युद्ध का शिकार नहीं होते.
हटाएंवो तो उन गिद्धों की तरह हैं जो लाशों को के गिरते ही उन्हें नोंच-नोंच कर खाने को झपट पड़ते हैं.
निशब्द हूँ आदरणीय इस रचना पर कुछ नहीं कह कर बस समर्थन का भाव रख रही हूं।
जवाब देंहटाएंकाश स्वार्थ के घिनौने अमानवीय लोगों को कहीं से सद्बुद्धि मिल जाए।
सादर।
मेरी दिल से कही गयी बात की प्रशंसा के लिए धन्यवाद कुसुम जी !
हटाएंदो-चार का वहशीपन, लालच और ख़ुद ख़ुदा बनने का सपना, सारी दुनिया पर भारी पड़ता है.
ऐसे दरिंदों को कभी सद्बुद्धि नहीं मिलने वाली. इनको तो इनके पनपने से पहले ही कुचल दिए जाने की ज़रुरत है.