1976 की बात है. माता इंदिरा गांधी की कृपा से तब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी.
उन दिनों पिताजी हरदोई में चीफ़ जुडिशिअल मजिस्ट्रेट थे.
1972 में भारत की स्वतंत्रता के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता
सेनानियों को पेंशन दिए जाने की घोषणा की गयी थी लेकिन इस योजना का कार्यान्वयन
इमरजेंसी के दौरान ही हो पाया था.
एक बार पिताजी अपने रूटीन चेकअप के लिए हरदोई के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल गए थे
जहाँ पर उनकी मुलाक़ात सी० एम० ओ० (चीफ़ मेडिकल
ऑफ़िसर) से हो गयी.
पिताजी को चाय पिलाने के लिए सी० एम० ओ० अपने कमरे में ले गए.
कुछ देर बाद गैरिक वस्त्रधारी, त्रिपुंडधारी, त्रिशूलधारी , जटाधारी, दाढ़ीधारी और कमंडलधारी, एक नौजवान बाबा जी उस कमरे में पधारे.
सी० एम० ओ० ने बाबा जी को ससम्मान कुर्सी पर बिठाया और फिर उन
से उनके पधारने का कारण पूछा.
बाबा जी ने पहले सी० एम० ओ० साहब को और पिताजी को हरद्वार से लाया हुआ प्रसाद
दिया फिर अपने पधारने का कारण बताए हुए बिना ही देश के लिए, धर्म के लिए और समाज के लिए, अपने त्याग-बलिदान की गौरव-गाथा का बखान
करना शुरू कर दिया.
कैसे दिव्य-आत्मबोध के बाद उन्होंने गृह-त्याग किया, कैसे उन्होंने हिमालय की कंदराओं में एक
सिद्ध योगी के निर्देशन में तप-साधना की, कैसे वो
गांधी जी की पुकार पर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े और कैसे उन्होंने 1942 के भारत
छोड़ो आन्दोलन में भाग लेते समय अपने कंधे पर पुलिस की एक गोली खाई.
इस गौरव-गाथा को सुनने के बाद सी० एम० ओ० ने किंचित आश्चर्य से बाबा जी से
पूछा –
‘आपने भारत छोड़ो
आन्दोलन में भाग लिया था? आप तो
मुश्किल से 40 साल के लगते हैं बाबा जी.’
बाबा जी ने मुस्कुराते हुए रहस्योद्घाटन किया –
‘बच्चा ! हमने
योग साधना से अपने यौवन को स्थायी बना लिया है. वैसे हमारी आयु 60 साल की है.’
सी० एम० ओ० ने हाथ जोड़ कर बाबा जी से पूछा –
‘बाबा जी, आप मुझ से क्या चाहते हैं?’
बाबा जी ने अपने कंधे पर एक गहरी चोट का सा निशान दिखाते हुए कहा –
‘आप हमको यह
प्रमाणपत्र दे दीजिए कि हमने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में गोली खाई है.’
नादान सी० एम० ओ० ने पूछा –
‘मैं आपको ऐसा
प्रमाणपत्र कैसे दे सकता हूँ और ऐसा प्रमाणपत्र मिलने से आपको क्या लाभ हो सकता है?’
बाबा जी ने फ़रमाया –
‘इस प्रमाणपत्र
के आधार पर हमको स्वतंत्रता सेनानी वाली पेंशन मिल जाएगी और आपको धर्म-लाभ मिलेगा.’
सी० एम० ओ० ने बाबा जी के कंधे पर उस गहरी चोट के जैसे निशान का बाकायदा
मुआयना किया फिर अपनी असमर्थता जताते हुए उन से कहा –
‘बाबा जी इस घाव
के निशान को देख कर न तो यकीनी तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह ठीक 34 साल पुराने
घाव का निशान है और
न ही यह बताया जा सकता है कि यह निशान गोली लगने से ही हुआ है. हाँ, अगर गोली अभी भी आपके कंधे में अटकी हुई है
तो एक्स रे कर के उसका पता लगाया जा सकता है.
वैसे अगर आपको गोली लगी भी हो तो कोई डॉक्टर यह प्रमाणपत्र कैसे दे सकता है कि
गोली आपको भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेते वक़्त लगी है?’
फिर सी० एम० ओ० ने पिताजी की तरफ़ इशारा करते हुए बाबा जी से कहा –
‘ये साहब हरदोई के चीफ़ जुडिशिअल मजिस्ट्रेट हैं.
आपके मामले में ये आपको सही सलाह दे सकते हैं.’
बाबा जी ने पिताजी की तरफ़ अपना मुंह मोड़ कर उन से कहा –
‘बच्चा ! तुम ही हमको ऐसा प्रमाणपत्र दिलवा दो.’
बाबा जी के शेखचिल्लीनुमा वृतांत से और अपनी 40 साल की उम्र को बढ़ा कर 60 साल
बताने के उनके अंदाज़ से पिताजी पहले ही उनको पक्का फ्रॉड मान चुके थे.
पिताजी को यह भी पता था कि स्वतंत्रता सेनानी वाली पेंशन के लिए लोगबाग
कैसे-कैसे झूठे दावे और कैसे-कैसे फ़र्जी प्रमाणपत्र पेश कर रहे थे. उन्होंने फ़ौरन बाबा
जी की तफ़्तीश शुरू कर दी –
‘बाबा जी, आप भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल तो ज़रूर गए
होंगे. क्या उसका कोई रिकॉर्ड आपके पास है?
आन्दोलन में गोली लगने के बाद आप इलाज के लिए अस्पताल भी गए होंगे. क्या उस
अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट और उसका डिस्चार्ज सर्टिफ़िकेट आपके पास है?’
बाबा जी ने पिताजी को बताया –
‘हम जेल-वेल
नहीं गए और आन्दोलन में गोली लगने के बाद हमारा इलाज भी किसी अस्पताल में नहीं, बल्कि हमारे आश्रम में ही हुआ था. आश्रम में ही आ कर वैद्य जी ने हमारे कंधे में
लगी गोली निकाल दी थी.
लेकिन हमने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था और उसमें गोली भी खाई थी, इसकी गवाही तो हमारे आश्रम का बच्चा-बच्चा भी
दे देगा.’
पिताजी ने बेरहमी के साथ कहा –
‘34 साल पहले
हुए वाकए की गवाही, आप अपने आश्रम
के बच्चे-बच्चे से दिलवा रहे हैं.
अव्वल तो आपको गोली लगी नहीं है और अगर लगी भी हो तो क्या पता कि वो आपको
पुलिस वालों ने तब मारी हो जब आप चोरी कर के या डाका डाल के, भाग रहे हों.’
पिताजी की बात सुन कर सी० एम० ओ० तो हंसने लगे लेकिन बाबा जी की भ्रकुटियाँ तन
गईं. उन्होंने दहाड़ते हुए कहा –
‘बाबा के श्राप
से डर बच्चा ! बाबा में तुझे भसम करने की ताक़त है.’
पिताजी ने व्यंग्य-भरी मुस्कान के साथ बाबा जी से पूछा –
‘भस्मासुर जी, जब आप इतने ताक़तवर हैं कि किसी को भी भसम कर
सकते हैं तो फिर एक अदने से प्रमाणपत्र के लिए इधर-उधर क्यों भटक रहे हैं?
अपनी दिव्य-शक्ति से आवश्यक प्रमाणपत्र भी ले आइए और स्वतंत्रता सेनानी वाली
पेंशन भी बनवा लीजिए.’
अपनी धमकी को बे-असर होते देख अब बाबा जी ने भसम करने वाले अपने वक्तव्य के
लिए पिताजी से माफ़ी मांगी और फिर उन्होंने ख़ुशामद का रास्ता अपना लिया.
सी० एम० ओ० साहब से और पिताजी से उन्होंने अनुरोध किया वो ही उन्हें पेंशन
पाने का कोई सही रास्ता दिखाएं.
सी० एम० ओ० साहब तो बाबा जी को इस विषय में कोई राह नहीं दिखा पाए लेकिन पिताजी
ने बाबा जी को एक अनमोल सलाह देते हुए कहा –
‘बाबा जी, इन दिनों इमरजेंसी में सरकार के ख़िलाफ़ कोई कुछ
भी बोले या करे तो उसे मीसा (मेंटेनेंस ऑफ़
इंटरनल सीक्योरिटी एक्ट) के तहत जेल
में चक्की पीसने के लिए डाल दिया जाता है.
आप चौराहे पर जा कर सरकार के ख़िलाफ़ ऐसा कुछ अनाप-शनाप बकिए कि आपको मीसा के
तहत जेल में डाल दिया जाए.
कभी न कभी तो इंदिरा गांधी गद्दी से उतरेगी ही. फिर जब अपोज़ीशन की सरकार बनेगी
तो हो सकता है कि मीसा-बंदियों को स्वतंत्रता सेनानियों के जैसी ही कोई पेंशन भी
दे दी जाए. तो आप ऐसा करिए कि ---’
पिताजी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि बाबा जी ने कमरे से बाहर भागते हुए
अपनी स्पीड से मिल्खा सिंह के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.
सरकारी योजना की कैसे धज्जियाँ उड़ाई जाती हैं , इसका रोचक वर्णन ।
जवाब देंहटाएंइमरजेंसी ख़त्म हो गई चलो बाबा जी को ढूढ कर पेंशन दिलवाते हैं
जवाब देंहटाएंबाबा जी तो रामदेव की तरह से कहीं राज कर रहे होंगे.
हटाएंवाह वाह! अच्छी अभिव्यक्ति है।
जवाब देंहटाएंमेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार सिंह 'विवेक' जी.
हटाएं'सर्वमंगल मंगल लाए' (चर्चा अंक - 4564) में मेरे संस्मरण को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंहौसलाअफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया अनिता जी.
हटाएंबाबाओं की पोल खोलता ये संस्मरण आज भी कहीं न कहीं चलता फिरता दिख जाता है, ऐसे लोगों को
जवाब देंहटाएंहज़ार जज और सी एम ओ भी नहीं सुधार सकते । इनका धंधा ही है फ़्रॉड करना !
चिंतनपूर्ण विषय पर सराहनीय संस्मरण !
जिज्ञासा, इन बाबाओं के छल-कपट के सामने जज और डॉक्टर्स ही क्या, पूरा भारत और समस्त भारतीय मत्था टेक चुके हैं. इनके प्रकोप से तो हमको भगवान ही बचा सकता है या फिर हमारा अपना विवेक !
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