(1980 के दशक में लिखी गई मेरी यह रचना है तो मेरा एक संस्मरण ही लेकिन इसमें अपनी तरफ़ से मैंने मिर्च-मसाला कुछ ज़्यादा ही लगाया है इसलिए इसे पाठकगण एक कहानी ही समझें)
डील ही डील –
अल्मोड़ा में हमारे पड़ौसी, हमारे हम-उम्र, हमारे पक्के दोस्त, बिहारी बाबू एक केन्द्रीय शोध संस्थान में वैज्ञानिक थे.
‘मैं शहरे-अल्मोड़ा में ही क्या, पूरे कुमाऊँ में अपनी बिरादरी का मोस्ट एलिजिबिल बिहारी बैचलर हूँ.’
हमारे मित्र का शादी के बाज़ार में उस पुराने ज़माने में भी लाखों का भाव था.
चुंगी नाके के मुंशी के रूप में कार्यरत उनके बाबूजी एक अदद मोटी मुर्गी टाइप सुकन्या की तलाश में पिछले दो-तीन साल से लगे थे लेकिन लाख जतन करने पर भी उनके सारे सपने साकार करने वाली बहू उनको मिल नहीं रही थी.
बिहारी बाबू के बाबूजी को अपने सुपुत्र के दहेज में मिली रकम से अपनी एकमात्र कन्या का विवाह करना था लेकिन हमारे नायक ने अपने ही संस्थान की एक पंजाबी स्टेनोग्राफ़र से प्रेम की पींगे इतनी बढ़ा ली थीं कि बात शादी तक पहुँच गयी थी.
बिहारी बाबू के हम ख़ास मित्रगण तो उनकी प्रेमिका को बाक़ायदा ‘भाभी जी’ कह कर ही संबोधित करते थे.
हमारे दूरदर्शी मित्र ने अपनी कमाई का और अपनी भावी श्रीमती जी की कमाई का, जोड़ कर के एक से एक ऊंचे सपने बुन लिए थे लेकिन गरीब घर की इस स्टेनो-बाला के बाप के पास शादी में खर्च करने के लिए धेला भी नहीं था.
इधर बिहारी बाबू के बाबूजी को खाली हाथ आने वाली कमाऊ बहू भी क़तई स्वीकार नहीं थी क्योंकि सिर्फ़ उसकी तनख्वाह से बचे हुए पैसों के भरोसे तो उनकी बिटिया की शादी बरसों तक टल जानी थी.
आख़िरकार हमारे दोस्त के बाबूजी ने अपने सपूत के लिए एक मोटी मुर्गी फाँस ही ली.
अपने सपूत से बिना पूछे उन्होंने अपनी ही बिरादरी के एक महा-रिश्वतखोर इंजीनियर की कन्या से उनका रिश्ता पक्का कर दिया.
बिहारी बाबू ने मेरे घर आ कर अपने बाबूजी की इस तानाशाही के ख़िलाफ़ बग़ावत करने का ऐलान कर दिया.
उन्होंने यह भी तय कर लिया था कि वो और उनकी प्रेमिका आर्य समाज मंदिर जाकर शादी कर लेंगे.
मेरी शुभकामनाएँ अपने दोस्त के साथ थीं लेकिन मुझे तब उनका यह ऐलान बड़ा ढुलमुल सा लगा जब उन्होंने इस क्रांतिकारी क़दम को उठाने से पहले अपने बाबूजी का अप्रूवल और आशीर्वाद लेना ज़रूरी समझा था.
मैं तो ख़ुद आर्यसमाज मन्दिर में जा कर अपने दोस्त की शादी में उनके बाप का रोल करने को तैयार था पर लगता था कि अपने हम-उम्र इंसान का बाप बनना मेरे नसीब में नहीं था.
फिर क्या हुआ?
फिर वही हुआ जो कि क़िस्सा-ए-बेवफ़ाई में हुआ करता है.
हमारे बिहारी बाबू चुपचाप बिहार जा कर शादी कर आए और हमको इसकी खबर उनके द्वारा लाए गए मिठाई के डिब्बे और साथ में आई उनकी नई-नवेली दुल्हन से मिली.
हमारी भाभी जी सूरत क़ुबूल थीं लेकिन कुछ ज़्यादा सांवली थीं और ऐसे दोहरे बदन वाली थीं जिसमें कि बड़ी आसानी दो बिहारी बाबू तो निकल ही सकते थे.
बातचीत में पता चला कि वो पढ़ाई में पैदल हैं और दो साल बी० ए० में अपना डब्बा गोल करने के बाद उन्होंने पढ़ाई से सदा-सदा के लिए सम्बन्ध-विच्छेद कर लिया है.
इस नए जोड़े से पहली मुलाक़ात में तो मैं दोनों के सामने शराफ़त का पुतला बना रहा लेकिन अगली ही मुलाक़ात में एकांत पा कर मैं अपने ज़ुबान-पलट दोस्त की छाती पर चढ़ कर उन से इस सेमी-अनपढ़ मुर्रा भैंस के लिए अपनी क़ाबिल स्टेनोग्राफ़र प्रेमिका के साथ की गयी बेवफ़ाई का सबब पूछ रहा था.
दो-चार मुक्के खा कर दोस्त ने क़ुबूला कि उनके ससुर ने उनके बाबूजी को नक़द दो लाख रूपये भेंट किये थे ताकि उनकी बिटिया की शादी धूम-धाम से हो जाए.
लेकिन मुझे पता था कि बहन की शादी की खातिर बिहारी बाबू अपने प्यार की क़ुर्बानी देने वाले नहीं थे.
मेरे द्वारा अपना गला दबाए जाने के बाद उन्होंने यह भी उगला कि उनके ससुर ने इस रिश्ते को क़ुबूल करने के लिए उन्हें अलग से एक लाख रूपये दिए थे और एक मोटर साइकिल भी दी थी.
इस तरह जब एक डील दोनों समधियों के बीच हुई और दूसरी डील ससुर-दामाद के बीच हुई, तब जाकर यह शादी संपन्न हुई.
एक बात अब भी मेरे समझ में नहीं आ रही थी कि हमारी इन भाभी जी ने हमारे उजबक बिहारी बाबू में ऐसा क्या देखा जो उन्होंने उनसे शादी करने के लिए अपनी रज़ामंदी दे दी.
हमारे बिहारी बाबू शक्लो-सूरत और पर्सनैलिटी से ऐसे लगते थे कि उन्हें देख कर कोई कह उठे –
‘आगे बढ़ो बाबा !’
बिहारी बाबू की ऐसी कबाड़ा शख्सियत और ऊपर से उनके परिवार की मुफ़लिसी, फिर अपने बाप की ऊपरी आमदनी पर दिन-रात ऐश करने वाली कोई लड़की कैसे इस बेमेल शादी के लिए राज़ी हो सकती थी?
जल्दी ही इस सवाल का जवाब भी मिल गया और इसका जवाब दिया हमारी भाभी जी की मम्मी जी ने जो कि पहली बार बेटी-दामाद का घर देखने अल्मोड़ा आई थीं.
आंटी जी बड़ी हंसमुख और बातूनी चीज़ थीं.
हमारी पहली मुलाक़ात में ही उन्होंने मेरे सामने अपने घर का पोल-खोल कार्यक्रम प्रारंभ कर दिया –
‘बेटा ! तुमको एक बात बताएं !
अपनी बिटिया की सादी का हमको आज तक बड़ा अफसोस है.
हमने तो मेहमान (दामाद) को देखते ही रिजेक्ट कर दिया था.
जितने लद्धड़ ये अब लगते हैं तब ये उस से भी ज्यादा लद्धड़ लग रहे थे और फिर इनकी फॅमिली का दलिद्दर तो इन सबके कपड़ों से भी दिखाई दे रहा था.
हम तो लरका वालों को बैरंग ही लौटा देते पर हमारे साहब को बिटिया की सादी का बहुत जल्दी था.
कई लरका लोग इसको मोटा और सांवला कह के रिजेक्ट कर चुका था.
आखिर साहब का रिक्वेस्ट हम मान लिए.
मेहमान से बिटिया की सादी के लिए हम हाँ कर दिए लेकिन तब जब हमारे और हमारे उनके बीच एक डील हो गया !
साहब जब हमको बीस तोले का सोने का करधनी बनवा दिए और हमको कस्मीर-ट्रिप कराने का प्रॉमिस किए, तब जा कर हम मेहमान के लिए हाँ किए.’
मैंने कहानी का अगला रहस्य जानने के लिए अब भाभी जी से पूछा –
‘भाभी जी, यह तो मालूम हुआ कि आंटी ने इस शादी के लिए कैसे अपनी रज़ामंदी दे दी पर यह तो बताइए कि आपने हमारे दोस्त में ऐसा क्या देखा जो फ़ौरन उसके गले में वरमाला डाल दी?’
भाभी जी ने बड़ा विस्फोटक जवाब दिया –
‘तुरतहिं (तुरंत) इन बिजूका (खेत में पक्षियों को डराने के लिए खड़ा किया गया पुतला) के गले में हम काहे को वरमाला डालते?
हम तो इन से तो सादी के लिए सौ-सौ बार ना किए थे.
रो-रो कर हम तो आंसुओं से तकिया-बिस्तर सब ही गीला कर दिया पर पापा समझाए कि हमको देख कर कोई और लड़का इतनी जल्दी हाँ नहीं करेगा.
फिर मम्मी की तरह पापा हमको भी खूब जेवर-पैसा दिए और हमारा पॉकेटमनी भी बाँधे. तब जा कर हम हाँ किए. ’
इधर पहले हमारे बिजूका भैया की सासू माँ और फिर उनकी श्रीमती जी, मुझको अपनी-अपनी दास्तान सुनाए चली जा रही थीं और उधर वो थे कि अपनी छीछालेदर होते देख कर ज़मीन में गड़े ही जा रहे थे, धंसे ही जा रहे थे और मैं बेचारा अपनी उँगलियों पर हिसाब लगा रहा था कि इस शुभ विवाह में किस-किस के बीच में कैसी-कैसी डील्स हुई हैं और दोनों परिवारों में ऐसा कौन अभागा है जो कि ऐसी किसी भी डील से नितांत अछूता रह गया है.
वाह
जवाब देंहटाएं'वाह' के लिए शुक्रिया दोस्त !
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंकमाल का संस्मरण
हमेशा की तरह मजेदार एवं लाजवाब।
तारीफ़ के लिए शुक्रिया सुधा जी.
हटाएं72 साल की उम्र में भी आध्यात्मिक-धार्मिक बातें करने के बजाय मुझे शरारत से भरपूर किस्सागोई करने में आनंद आता है.
😂😂😂😂😂मज़ेदार संस्मरण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आंचल.
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