हमारे ग्रेटर नॉएडा के गौड़ सिटी में एक फ्लैट में माँ और बेटी की कैंची और क्रिकेट बैट से हत्या हो गयी. इस हत्या के बाद घर से सत्रह वर्षीय लड़का लापता पाया गया. पुलिस ने सीसी टीवी के फुटेज में देखा कि वह लड़का दीवाल पर बैट टांग रहा है. बाथरूम से उस लापता लड़के के खून से सने कपड़े भी बरामद हुए. कहानी शीशे की तरह साफ़ थी. उस किशोर ने ही अपनी माँ और बहन का खून किया था. इस परिवार के पड़ौस में रहने वालों ने बताया कि यह लड़का बिगड़ा हुआ था और पढ़ाई से ज़्यादा वीडियो गेम खेलने में मस्त रहता था.
पुलिस को इस फ़रार लड़के को खोजने में कोई दिक्कत नहीं हुई और वह बनारस में पकड़ा
भी गया.. टीवी पर हमने देखा कि लड़का यह स्वीकार कर रहा
है कि उसने गुस्से में अपनी माँ और अपनी बहन का खून कर दिया.
यहाँ बात अपराध की नहीं, पुत्र-प्रेम
की हो रही है. अख़बारों में
उस फ़रार लड़के के परिवार वालों की ओर से इश्तहार दिए गए कि वह घर लौट आए, कोई उस से कुछ नहीं कहेगा. पुलिस ने जब उस लड़के और उसके परिवार वालों
के बीच हुई फ़ोन वार्ता को tap किया तब उसको
धर पकड़ने में उसे कोई मुश्किल नहीं हुई. अब इस किशोर
पर कानूनी कार्रवाही होगी और उसके परिवार वाले उसे जी-जान से बचाने की कोशिश करेंगे. माँ और बहन की निर्मम हत्या करने वाले इस
शैतान को कोई भी सज़ा मिले, यह उन्हें
हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं होगा.
हम सबको गुरुग्राम के रियान इंटरनेशनल के सात वर्षीय विद्यार्थी प्रद्युम्न की
स्कूल में हुई हत्या की याद है. इस हत्या में
पहले तो बस कंडक्टर अशोक ने उस बच्चे की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया पर बाद में
पता चला कि उसे इस इक़बाल-ए-जुर्म के लिए पुलिस और शायद स्कूल वालों ने
मजबूर किया था. सीबीआई ने इस
स्कूल के ही एक सत्रह वर्षीय किशोर को प्रद्युम्न की हत्या के गिरफ्तार किया. पता चला कि आगामी परीक्षा में फ़ेल हो जाने
से डरकर इस किशोर ने स्कूल में उस मासूम की हत्या कर दी ताकि इस हादसे की वजह से
परीक्षा टल जाए. रियान स्कूल
के सीसी टीवी कैमरे में यह किशोर प्रद्युम्न के कंधे पर हाथ रख कर चलते हुए दिखाई
भी दे रहा है. इस किशोर ने
पुलिस के सामने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया है पर अब इसके करोड़पति बाप सीबीआई पर आरोप लगा रहे
हैं कि उसने उनके बेक़सूर बेटे को फंसाया है.
जेसिका लाल मर्डर केस में और नितीश कटारा मर्डर केस में बड़े बड़े नेता अपने
अपने बेटों को बेक़सूर सिद्ध करने के लिए करोड़ों रूपये बहा चुके हैं और फुटपाथ पर
सो रहे लोगों पर अपनी बेशकीमती कार चढ़ाने वाले अरबपति नंदा परिवार के किशोर को
बचाने के लिए किस तरह अनाप शनाप बहाया गया, यह सबको पता
है.
कोशिशें कोशिशें की गईं, हम सब जानते हैं कि सलमान खान
के पिता, मशहूर लेखक सलीम खान, बहुत ही शरीफ़ और नेक इन्सान हैं पर उन्हें
भी फुटपाथ पर सो रहे मजदूरों को कुचलने वाला अपना बेटा बेक़सूर नज़र आता है. जिस तरह उन्होंने चश्मदीद गवाहों को अपने
पक्ष में किया है, उस पर तो एक
क्राइम थ्रिलर फ़िल्म बन सकती है.
महाभारत में हम धृतराष्ट्र को कोसते हैं कि उसे दुर्योधन के बड़े से बड़े अपराध
दिखाई नहीं पड़ते थे. बेटे के
अपराध इस पिता को अपने अंधेपन के कारण न दिखाई देते हों, ऐसा नहीं था, बल्कि इसलिए
था कि वो अपने पुत्र के मोह में उसके अपराधों को अनदेखा करता था.
आज भी अपराधी पुत्रों के माँ-बाप धृतराष्ट्र
की ही तरह अपने-अपने
दुर्योधनों के प्यार में अंधे होकर उनके गुनाहों को अनदेखा करते हैं और उनको ढकने-छुपाने की पुरज़ोर कोशिश भी करते हैं.
बेटा चाहे सात खून भी कर दे, बलात्कार करे, अपहरण करे, उसे बेक़सूर सिद्ध करने के लिए उसके माँ-बाप जी जान एक कर देते हैं पर परिवार की
अनुमति के बिना दूसरी बिरादरी या दूसरी जाति या दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम विवाह
करने वाली अपनी बेटी को वो कभी माफ़ नहीं करते और अक्सर तो वो स्वयं उसकी हत्या कर
देते हैं.
हमने शायद ही किसी छोटे से छोटा अपराध करने वाली लड़की के माँ-बाप को यह कहते सुना होगा – ‘मेरी बेटी बेक़सूर है.’
फ़र्ज़ कीजिए कि ग्रेटर नॉएडा में हुए दोहरे हत्याकांड में अपराधी लड़का न होकर
लड़की होती और वह अपनी माँ तथा अपने भाई की हत्या करके फ़रार हो जाती तो क्या उसके
परिवार वाले उसके लिए ऐसे इश्तहार छपवाते – ‘घर वापस आ जाओ, कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा.’
मेरा एक और सवाल है - लड़कियों के प्रेम-प्रसंग को
लेकर ही क्यों हॉरर किलिंग्स या ऑनर किलिंग्स होती हैं?
हम ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः‘ का जाप करते हैं और सती प्रथा का गुणगान करते
हैं. हर शहर, हर कसबे और
हर गाँव में, हम देवी के
मंदिर बनाते हैं किन्तु अपनी पत्नी, अपनी बहन, या अपनी बेटी को अपनी मर्ज़ी के खिलाफ़ कुछ भी
करने की अनुमति तक नहीं देते. और अगर वो
हमारी इच्छा के विरुद्ध कोई क़दम उठाती है तो फिर उसका दमन करने में, उसको कुचलने में, हम एक क्षण की भी देरी नहीं करते.
सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि बेटे और बेटी में इतना अधिक फ़र्क करने के बावजूद
हम खुद को नैतिकता, सभ्यता और
धर्म का रक्षक समझते हैं, अपनी
संस्कृति की महानता का ढिढोरा पीटते हैं.
सटीक। सत्य है पर बचता है आदमी स्वीकार करने से ।
जवाब देंहटाएंसमय बदल ज़रूर रहा है पर समाज में पिछड़ी मानसिकता आज भी प्रगतिशीलता पर हावी है.
जवाब देंहटाएंबहुत ही यथार्थपरक लेख .समाज की कटु विसंगतियों पर प्रकाश डालता .
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंपुरुष-प्रधान भारतीय समाज बेटी की भावनाओं के प्रति इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है? और बेटे के हर अपराध को वो कैसे अनदेखा कर सकता है? और हम बेकार में ही पशुता कहीं और खोजते हैं.
जवाब देंहटाएंसत्य
जवाब देंहटाएंसत्य किन्तु बेरहम, निर्मम, क्रूर एवं अमानुषिक सत्य !
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