बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

जश्न-ए-मातम


राजीव गाँधी के शासनकाल में लिखी गयी मेरी यह कविता आज के शहीदों की विधवाओं को समर्पित है -

जश्न-ए-मातम -

अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई !

अखबारों में चित्र छपेंगे, पत्रों से घर भर जाएगा,
मंत्री स्वयम् सांत्वना देने, आज तिहारे घर आएगा।
सरकारी उपहार मिलेंगे, भाग्य कमल भी खिल जाएगा,
पिता गए हैं स्वर्ग जानकर, पुत्र गर्व से मुस्काएगा।।

विधवा ! रोती इसीलिए क्या, तेरी माँग उजड़ जाएगी?
जल्दी ही सूने माथे की, तुझको आदत पड़ जाएगी।
यह उदार सरकार, दया के बादल तुझ पर बरसाएगी,
थैली भर रुपयों के बदले, तेरी बिंदिया ले जाएगी।।

छाती पीट रही क्यों पगली, अभी कर्ज़ यम के बाकी हैं,
यहाँ मौत का जाम पिलाने पर आमादा, सब साक़ी हैं।
बकरों की माँ खैर मना ले, यहाँ भेड़िये छुपे हुए हैं,
कुछ ख़ूनी जामा पहने हैं, पर कुछ के कपड़े ख़ाकी हैं।।

मृत्यु सभी की अटल सत्य है, फिर क्यों छलनी तेरा सीना?
बाट जोहने की पीड़ा से मुक्ति मिली, क्यों आँसू पीना?
बच्चों की किलकारी का कोलाहल भी अब कष्ट न देगा,
शांत, सुखद, श्मशान-महीषी, बन, आजीवन सुख से जीना।।

अरे मृतक की बेवा तुझको, इस अवसर पर लाख बधाई,
आम सुहागन से तू, बेवा ख़ास हुई है, तुझे बधाई।।

3 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी कविता को 'पाँच लिंकों का आनंद में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. मैं इसके आगामी अंक की उत्कंठा से प्रतीक्षा करूंगा.

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  2. बेहद हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय।

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  3. धन्यवाद श्वेता जी. इतने सवेरे आपने मेरी कविता पढ़ी, जानकर अच्छा लगा. हमारे जवानों की बेबस शहादत हम सब के लिए शर्म की बात है लेकिन हमारे हुक्मरान तो रस्मी तौर पर मगमच्छ के आंसू बहाकर अपनी फ़र्ज़ अदायगी कर लेते हैं, ऐसे हादसों को रोकने की कभी कोशिश तो नहीं करते.

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