शोक
व्यक्त करने की औपचारिकता –
अटल
जी नहीं रहे. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे. आज के एक-दूसरे पर कीचड़
उछालने वाले ज़माने में वो नेताओं की जमात में एक ऐसे नेता थे जिन्हें अपने
अनुयायियों का ही नहीं, अपितु अपने विरोधियों का भी प्यार और सम्मान मिला था.
टीवी
के हर न्यूज़ चैनल पर, हर समाचार पत्र में, यह मुख्य खबर है कि अपने प्रिय नेता से
बिछड़ने के कारण आज सारा देश शोकाकुल है.
लेकिन
अटल जी के निधन से मैं दुखी नहीं हूँ. 93 वर्ष से भी अधिक की परिपक्व आयु में और लम्बी
असाध्य बीमारी के बाद उनका निधन कोई हादसा नहीं है. हमको तो इस बात का संतोष होना
चाहिए कि उनको अपने कष्टों से मुक्ति मिली.
वो
ओजस्वी वक्ता, वो हाज़िर जवाब विनोदी व्यक्ति, वो कवि-ह्रदय राजनीतिज्ञ जिसके हम सब
प्रशंसक थे, वो तो हमसे लगभग एक दशक पहले ही बिछड़ गया था. 2009 के बाद से तो अटल
जी अपने बंगले में ही रहने के लिए मजबूर हो गए थे. उनके सार्वजनिक जीवन पर पूर्ण
विराम लग गया था.
लाइफ़
सपोर्ट सिस्टम के सहारे सिर्फ़ साँसें लेना वाला एक बेबस इन्सान, अगर अपने कष्टों
से मुक्ति पा गया तो हमको आंसू बहाने की क्या ज़रुरत है?
हम
अटल जी को अगर सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो उनकी तरह स्वच्छ राजनीति का
निर्वाहन करने वालों को अपना नेता चुनें. प्रति-पक्षी की आलोचना करते समय उनकी तरह
शालीनता का व्यवहार करें. अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपनी गंगा-जमुनी विरासत पर
गर्व करें और दुश्मन को भी गले लगाने की उदारता दिखाएं.
हाल
ही में साहित्य के देदीप्यमान नक्षत्र नीरज और भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह करुणानिधि
के निधन पर भी शोक संवेदना के बनावटी आंसू बहाने वाले हज़ारों की संख्या में दिखाई
पड़ रहे थे.
हमारे
देश में आंसू बहाने का इतना नाटक क्यों होता है?
कितनों
ने लाइफ़ सपोर्ट सिस्टम के सहारे अटक-अटक कर सांस लेते हुए किसी मरीज़ को देखा है?
मैंने
अपनी बड़ी बहन को अपने जीवन के अंतिम तीन दिन ऐसी दुखद स्थिति में देखा है. जब वो
72 वर्ष से भी कम आयु में चल बसीं तो मैंने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया कि
उन्होंने मेरी बहन को उनके असह्य कष्टों से मुक्ति दिला दी.
हमको
इस शोक प्रकट करने की बनावटी औचारिकताओं से बचना चाहिए.
यदि
दिवंगत विभूति के प्रति हमारे ह्रदय में आदर और प्रेम की भावना है तो हमको उसके
द्वारा छोड़े गए अधूरे कामों को पूरा करना चाहिए और उसका अनुकरण करके उसकी
विचारधारा को, उसके जीवन-दर्शन को आगे बढ़ाना चाहिए.
बिना
बात के आंसू बहाने के लिए मगरमच्छ और किराए की रुदालियाँ काफ़ी हैं, हम सबको उनका
जैसा नाटक कर, उनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया छीनने की क्या ज़रुरत है?
आइए,
हम सब अटल जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें.
ॐ
शांतिः, शांतिः, शांतिः !
ऊँ शान्ति। श्रद्धांंजलि। फोंट का रंग बदलिये।
जवाब देंहटाएंवैसे रंग बदलना हमारी प्रकृति में नहीं है पर फॉण्ट का रंग हम बदल रहे हैं. अब पढ़ने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
हटाएंबहुत खूब !!जी आपकी बात सौ फीसदी सही है ,मगरमच्छी आँसू बहाने में हर कोई पारंगत है यहाँ ...रही बात विचारधारा का अनुकरण करने की, वो नही होगा ....।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शुभ्रा जी. कल शाम को ही चाटुकार टीवी पर आकर इस बात का गुणगान करने लगे कि हमारे साहब अपनी श्रद्धांजलि देने के लिए कितना पैदल चले. 'जियत पिता पर दंगई-दंगा, मरे पिता पहुंचाए गंगा'. और हमारे अधिकांश नेताओं ने तो 'अनुकरण' केवल भेड़ियों का किया है, किसी अच्छे इन्सान का अनुकरण भला वो क्यों करेंगे?
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित और सधी श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्व मोहन जी. प्रसिद्द अभिनेता और रंगकर्मी उत्पल दत्त को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी धर्मपत्नी ने आंसू बहाने के स्थान पर जगह-जगह जाकर उनके नाटकों का मंचन कराया. हम भी अगर महान नेताओं के जाने के बाद आंसू बहाने के बजाय अगर उनके अधूरे कामों को पूरा कर उन्हें श्रद्धांजलि दें तो कितना अच्छा हो !
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २० अगस्त २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
धन्यावद ध्रुव सिंह जी. 'लोकतंतर' संवाद मच से जुड़ना मेरे लिए सदैव हर्ष और गर्व का विषय होता है. मैं इस अंक को पढ़ने के लिए अवश्य उपस्थित रहूँगा.
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जवाब देंहटाएंआदरणीय गोपेश जी -- यूँ तो हर नई रचना पढ़ जाती हूँ पर पिछले दिनों से कुछ ऐसा संयोग बना कि आपके ही ब्लॉग पर लिख नहीं पाई | आपके ये सटीक सार्थक लेख एक नये चिंतन से अवगत कराते हैं | आज आपने कितने साहस से लिखा मैं तो सोचने पर मजबूर हुई कि सचमुच ऐसा क्यों होता है ? अटल जी ही क्यों किसी भी बड़ी शख्सियत के निधन पर मीडिया तो कई दिनों के लिए इतना मसरूफ हो जाता है कि पता नहीं रूककर साँस भी लेता है या नहीं | अटल जी के निधन केबाद अचानक जी -उर्दू देखा तो वहां मैंने देखा कि रिपोर्टर शाही इमाम से इतनी ऊल - जुलूल प्रश्न कर रहा की पूछिए मत | वे कैमरे के सामने थे , पीछे होते तो शायद इस रिपोर्टर को क्या सजा देते भगवान जाने | कौन किसको क्या दिखा रहा था पता नहीं | श्रद्धान्जलियों की भीड़ में ये सच्ची श्रद्धान्जली बहुत ही वास्तविक है भले थोड़ी दुस्साहसी है | जब काया इतनी जर्जर हो जाए कि इंसान दूसरों पर आश्रित हो ,अपने मन की कहने सुनने से लाचार हो जाए तो उसका जाना ही बेहतर | अटल जी ने अच्छी आयु पाई और आदर्श जीवन जिया ये उनके जीवन की सार्थकता है |उनका सम्मान हर विरोधी ने भी किया | ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दे | आपके बेलाग लेखन को नमन |
जवाब देंहटाएंयद्यपि आपके ब्लॉग पर ये पुराने दरवाजे का चित्र मुझे अपने गाँव की बैठक के पुराने दरवाजों की याद दिलाता है पर सिर्फ लिखने की जगह साफ हो तो बेहतर अन्यथा काम तो बढिया चल ही रहा है | हमारे अक्षर तो धूमिल नजर नहीं आते |
जवाब देंहटाएंरेनू जी. मैं तकनीकी दृष्टि से निपट अनाड़ी हूँ. मेरी बड़ी बेटी गीतिका मेरी गल्तियों को सुधारती रहती है पर आजकल अपने दोनों बच्चों की सेवा में व्यस्त होने के कारण अपने पिता की गल्तियों को सुधारने का उसे पर्याप्त समय नहीं मिल पाता. वैसे आगे से आप लोगों को पढ़ने में कष्ट न हो, इसकी मैं पूरी कोशिश करूंगा.
हटाएंआपके ब्लॉग में कोई खास उल्लेखनीय त्रुटि नजर नहीं आती सबकुछ ठीक- ठाक लग रहा है |बस बीच का पेज थोड़ा सा ठीक हो जाए तो बेहतर -अन्यथा काम तो चल ही रहा है | आप परेशान ना हों | सादर
जवाब देंहटाएंअब प्रार्थना ही तो कर सकते हैं ...
जवाब देंहटाएंवो तो प्रकृति के नियम को मान कर चले गए ... नहीं आने वाले ...