सज़ा-ए-मौन
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( 'पूछो न कैसे मैंने रैन बिताई' गीत की तर्ज़ पर )
पूछो
न कैसे, मैंने
बैन बिताया,
इक
जुग जैसे इक पल बीता, जुग बीते मोहे चैन न आया,
मरघट
जैसे सन्नाटे में, रहना हरगिज़ रास न आया.
दाल-ए-सियासत
फीकी लागे, गाली का नहिं छौंक लगाया,
मुनि
दुर्वासा की संतति को, मधुर बचन, कब कहाँ, सुहाया.
मुंह
सिलवाया, कपड़ा ठूंसा, सम्मुख चौकीदार बिठाया,
गाली-गायन
रीत पुरानी, मुझ पर ही क्यों सितम है
ढाया.
कोयल
कुहुक करे तो अच्छा, श्वान जो भोंके, तो वो सच्चा,
मेरी
सहज प्रकृति पर बंधन ! ओ निष्ठुर ! तोहे, रहम न आया.
पूछो
न कैसे, मैंने बैन बिताया -----
वाह.., बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंमेरी इस खुराफ़ात की प्रशंसा के लिए धन्यवाद मीना जी.
हटाएंगाली के छौंके लगने पे राजनीति का उबाल आ जाता है ...
जवाब देंहटाएंमस्त पैरोडी है ... मज़ा आ गया ...
धन्यवाद दिगंबर नासवा जी.
हटाएंहमारे नेतागण अपनी लीलाओं से समस्त देशवासियों का मनोरंजन करते हैं और हमको सर्कस, ज़ू, नौटंकी आदि पर पैसा लुटाने से बचाते हैं.
हमको उनका कृतज्ञ होना चाहिए लेकिन भूलकर भी उनका अनुकरण करके डार्विन के सिद्धांत की पुष्टि नहीं करनी चाहिए.
बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अंकुर जी.
हटाएंगाली जरूरी है। सीखिये अब तो कम से कम देना।
जवाब देंहटाएंसुशील बाबू, गाली देना तो हम ज़्यादा नहीं सीख पाए किन्तु उनको खाया थोक में है और अपनी व्यंग्य-रचनाओं के कारण अब भी यदा-कदा खाते रहते हैं.
हटाएंमेरी रचना को दिनांक 17-04-19 के 'बेचारा मत बनाओ (चर्चा अंक- 3308) धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक. मैं कल इस अंक की सामग्री पढ़ने का अवश्य आनंद उठाऊँगा.
जवाब देंहटाएं'सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन' में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद शिवम् मिश्राजी.
जवाब देंहटाएंगज़ब..आपका व्यंग्य लेखन सर्वश्रेष्ठ है सर..धार.दिनोंदिन पैनी होती जा रही है..👌👌👌
जवाब देंहटाएंतारीफ़ कर धनिए के पेड़ पर चढ़ाने के लिए धन्यवाद श्वेता ! तुम्हारी जैसी बहु-मुखी प्रतिभा की प्रशंसा मेरे लिए हमेशा मूल्यवान होती है लेकिन अगर तुम खुलकर आलोचना भी करोगी तो वह भी मेरे लिए महत्वपूर्ण होगी.
हटाएंवाह!बैन पीड़ितों की कराह को वाजिब ज़ुबान दी आपने। उनकी ओर से हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंविश्वमोहन जी 48 घंटे के लिए या 72 घंटे के लिए आप नदी का प्रवाह रोक सकते हैं किन्तु किसी नेता के अनर्गल प्रलाप को नहीं रोक सकते. इस से तो बेहतर होता कि चुनाव-आयोग इनको सजा-ए-मौत दे देता.
हटाएंबहुत ही सुंदर पैरोडी आदरनीय गोपेश जी | सराहना से कहीं परे | इस व्यंग में भी एक दर्द अनायास छलक आया है | सस्नेह सादर |
जवाब देंहटाएंरेणु जी, किसी नेता के ऐसे दर्द पर हर भलामानुस हंसेगा और उसका उपहास उड़ाएगा. मैंने भी भलामानुस बनने की कोशिश की है.
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