शनिवार, 30 जुलाई 2022

रजिस्ट्रार गुरु जी

 रजिस्ट्रार गुरु जी से मेरा आशय उन गुरुजन से नहीं है जो कि अध्यापक और रजिस्ट्रार का दायित्व एक साथ सम्हालते हैं बल्कि उन विभूतियों से है जो कि क्लास में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति दर्ज करने के लिए या तो अपना अटेंडेंस रजिस्टर खोलते हैं या फिर पढ़ाते समय अपने नोट्स वाले रजिस्टर से उनको इमला लिखाते रहते हैं.

ऐसे सभी गुरुजन के लिए रजिस्टर, जीवन-दायिनी ऑक्सीजन के समान होता है.

अपनी ख़ुद की अक्ल को ताक पर रख कर, दूसरों की बुद्धि के सहारे, आजीवन ज्ञान-बांटने वाली ऐसी नमूना विभूतियों को मैं रजिस्ट्रार गुरु जी कहता हूँ.

जो विद्वान गुरुजन कक्षा में अपने रजिस्टर से अथवा अपनी फ़ाइलों से, नोट्स लिखाने के स्थान पर पॉइंट्स लिखी पुर्चियों पर चोरी-छुपे या खुलेआम निगाह डालते हुए, अटक-अटक कर, छोटे-मोटे लेक्चर देते हैं, उन्हें मैं आदरपूर्वक डिप्टी रजिस्ट्रार कहता हूँ.

 अपने छात्र जीवन में मुझे कई रजिस्ट्रार गुरुजन और कई डिप्टी रजिस्ट्रार गुरुजन से ज्ञान (?) प्राप्त हुआ है.

गवर्नमेंट इंटर कॉलेज, इटावा में मैं कक्षा 6 में पढ़ता था.

हमारे साइंस के मास्साब को ज़बर्दस्ती हमको संस्कृत पढ़ाने की ज़िम्मेदारी भी दे दी गयी.

हमारे इन मास्साब को संस्कृत का ’, ‘’, ‘भी नहीं आता था.

वो बेचारे संस्कृत गद्य का पाठ भी गा कर करते थे और उसका अर्थ बिना किसी झिझक के, एक रजिस्टर में कुंजी से उतारे हुए नोट्स देख कर हमको लिखवाते थे.

इस प्रकार बचपन में ही मुझे एक रजिस्ट्रार गुरु जी मिल गए थे.

अब मैं कक्षा छह से सीधे अपने बी० ए० के दिनों में आता हूँ.

झाँसी के बुंदेलखंड कॉलेज में इतिहास के हमारे विभागाध्यक्ष डॉक्टर बी० डी० गुप्ता प्रसिद्द विद्वान थे. उनके पढ़ाने के अंदाज़ का मैंने आजीवन अनुकरण किया है पर हमारी बदकिस्मती से बी० ए० फ़ाइनल में उनकी जगह कोई गोलमटोल काली माई नहीं, बल्कि ताड़का जैसी कोई महा-खूंखार मिस तिवारी हमको यूरोप का इतिहास पढ़ाने आ गईं.

मिस तिवारी बहन मायावती की तरह हमेशा बोलते समय रजिस्टर अपने सामने रखती थीं और हमको लेक्चर देने के बजाय सिर्फ़ नोट्स लिखाती रहती थीं.

सबसे दुखदायी बात यह थी कि उनके नोट्स '’राजहंस प्रकाशनकी एक मेड इज़ी की हूबहू कॉपी हुआ करते थे.

हम पीड़ित विद्यार्थी बड़ी हिम्मत कर के राजहंस प्रकाशन की यूरोपीय इतिहास विषयक मेड इज़ी और मैडम तिवारी के इमला कराए नोट्स ले कर डॉक्टर गुप्ता के पास उनकी शिकायत करने गए पर गुरु जी ने मेड इज़ी का और मैडम तिवारी के इमला कराए नोट्स का मिलान करने के स्थान पर हमको डांट कर भगा दिया और साथ में हमको ये चेतावनी भी दे डाली कि अगर हमने मैडम के क्लास में कोई भी और कैसा भी हंगामा किया तो वो हमारे खिलाफ़ एक्शन भी लेंगे.

हम बेचारे खून का घूँट पी कर मिस गोलमटोल तिवारी द्वारा बोली गयी इमला को लिखने को मजबूर हो गए.

कुछ समय पहले मैंने रीतिकालीन कवि आलम और उनकी रंगरेजन प्रेमिका द्वारा संयुक्त रूप से रचित प्रश्नोत्तरनुमा यह दोहा पढ़ा था

कनक छरी सी कामिनी, काहे को कटि छीन,

कटि को कंचन काटि के, कुचन मध्य, धर दीन.

(स्वर्ण-दंड सी सुन्दरी हमारी नायिका की कटि अर्थात कमर इतनी पतली क्यों है?

विधाता ने हमारी नायिका की स्वर्ण-कटि का स्वर्ण निकाल कर उसके कुचों में अर्थात उसके स्तनों में, डाल कर उन्हें पुष्ट कर दिया है)

 ताड़का रूपी मिस तिवारी के ज़बर्दस्ती नोट्स लिखाने के अत्याचार के फलस्वरुप मेरे अन्दर का सोया हुआ कवि जाग उठा और मैंने आलम-रंगरेजन के दोहे की तर्ज़ पर एक दोहा लिख मारा

लौह-घटक सी बाम्हनी, काहे को मति हीन,

मेड इज़ी से नोट्स दे, सब फ़ाइल भर दीन.

मित्रों, मेरी इस धृष्टता को रंगभेदी, जातिवादी और ब्राह्मण-विरोधी मत समझिएगा. यह तो एक प्रसिद्द दोहे को एक अधकचरे कवि द्वारा नया मोड़ देने का निहायत बचकाना और शरारती प्रयास मात्र था.

मेरे इस शरारती दोहे की भनक पता नहीं कैसे हमारे डॉक्टर बी० डी० गुप्ता तक पहुँच गयी.

उन्होंने मिस तिवारी की उपस्थिति में अपने कक्ष में मुझे बुला कर मुझ से मेरा दोहा सुना, फिर मुझे कस कर डांटा पर पता नहीं क्यों मुझे डांटते हुए उनकी खुद की हंसी फूट पड़ी.

दुखी, नाराज़ और भौंचक्की खड़ी मैडम तिवारी के सामने - खी, खी, खीकरते हुए गुप्ता गुरुदेव ने मुझ से भाग जाने को कहा तो फिर मैं वहां से मिल्खा सिंह की स्पीड से अपनी जान बचा कर भाग आया.

लखनऊ विश्ववियालय में मध्यकालीन एवं भारतीय इतिहास में एम० ए० करते समय भी एक रजिस्ट्रार गुरु जी ने हमको बहुत दुखी किया था. हम लोगों ने आन्दोलन कर के उनके नोट्स लिखवाने की आदत पर अंकुश लगवा दिया था. यह बात दूसरी है कि हमारे ये गुरु जी बिना नोट्स देखे जब लेक्चर देते थे तो न तो वो बहादुर शाह प्रथम और बहादुर शाह द्वितीय में कोई फ़र्क करते थे, न बाजीराव प्रथम और  बाजीराव द्वितीय में. यहाँ तक कि वो कई बार असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन को भी आपस में गड्डम-गड्ड कर देते थे.  

कुमाऊँ विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर के इतिहास विभाग में जब मेरी नियुक्ति हुई तो मैंने पाया कि मेरे अधिकांश सहयोगी रजिस्ट्रार की भूमिका निभा रहे हैं. मैंने अपने साथियों से उनकी रजिस्ट्रार-प्रवृत्ति का पूर्णतया परित्याग करने का अनुरोध किया.

चंद सहकर्मियों ने तो मेरे प्रस्ताव का स्वागत करते हुए उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया पर प्रतिष्ठित रजिस्ट्रार गुरुजन ने मेरे सुझाव को अपनी शान में गुस्ताख़ी समझ, मेरे ख़िलाफ़ जिहाद छेड़ दिया.

अल्मोड़ा में मेरे एक सहयोगी थे, अगर वो भूल से अपना पढ़ने वाला चश्मा घर पर ही छोड़ आते थे तो उनके अनुरोध पर या तो मुझे उनकी जगह उनका क्लास लेना पड़ता था या फिर वो विद्यार्थियों के बीच उस दिन फ़िल्मी अन्त्याक्षरी करवा देते थे.

उनके रजिस्टर प्रेम की एक कथा बड़ी प्रसिद्द है.

एक दिन हमारे विद्वान रजिस्ट्रार गुरु जी अपने मुगल इतिहास वाले रजिस्टर से बाबर और राणा सांगा के मध्य हुए खनवा के युद्ध के बारे में विद्यार्थियों को लिखवा रहे थे पर कथा उस दिन पूरी नहीं हो पाई थी. अगले दिन मान्यवर गलती से यूरोपियन हिस्ट्री वाला रजिस्टर ले आए और उन्होंने वॉटरलू के मैदान में राणा सांगा को ड्यूक ऑफ़ वेलिंगटन से हरवा दिया.

मुझे आजीवन अपने रजिस्ट्रार गुरुजन के कोप का भाजन होना पड़ा था, ख़ास कर कि तब, जब कि उनमें से कोई मेरा विभागाध्यक्ष बन कर, मेरी छाती पर मूंग दलने के लिए बैठ गया हो.

पर मैं अपनी आदत से मजबूर ख़ुद को कैसे सुधारता?

लाख प्रताड़ना के बाद भी रजिस्ट्रार गुरुजन को मैं काहिल, जाहिल और गुरु के नाम पर कलंक मान कर उनका पुरज़ोर विरोध करने से कभी बाज़ नहीं आया.

अवकाश-प्राप्ति के एक दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी रजिस्ट्रार गुरुजन के खिलाफ़ मेरी यह मुहिम, मेरी यह जंग, आज भी जारी है.

यह बात और है कि अब यह जंग फ़ेसबुक तक या फिर मेरे ब्लॉग तक ही सीमित रह गयी है और अब इस से मेरी जान जाने का या मेरी पेंशन रोक दिए जाने का, कोई ख़तरा नहीं रह गया है.


 

14 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्त, ऐसे ही गुरुजन की जय-जय होती है और ऊंची कुर्सी भी उन्हें ही मिला करती है.

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  2. ऐसे गुरुओं से शायद सभी का पाला पड़ा होगा ।
    रोचक संस्मरण । दोहा तो वाकई गज़ब का बनाया । बस डर है तो ये कि कहीं कोई मायावती जी का समर्थक मानहानि का दावा पेश न कर दे ।

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    1. मेरे दुस्साहसी संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद संगीता जी.
      बहन मायावती का समर्थक तो अब उनका साया भी नहीं रह गया है इसलिए मेरी गुस्ताख़ी पर मेरे विरुद्ध मानहानि का मुक़द्दमा दायर किये जाने का फ़िलहाल कोई ख़तरा नहीं है.

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  3. अहा 😃😃
    इतना बढ़िया और मजेदार... राणा सांगा को ड्यूक ऑफ वेलिंगटन.. से हरवा दिया ।
    देखा,सुना और लोगों के बहुत से संस्मरण से परिचय हुआ पर आपके संस्मरण का कोई सानी नहीं ।

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    1. मेरे संस्मरण की ऐसी तारीफ़ के लिए शुक्रिया जिज्ञासा.
      विद्या माता की जड़ें खोदने वाले आचार्यों से मुझे सख्त चिढ़ है और मैंने उनके ख़िलाफ़ हमेशा ही जंग छेड़ी है.
      तुमको इस संस्मरण को पढ़ कर आनंद मिला होगा पर इसे लिखते समय भी मेरा मन अपने उन निकम्मे मित्रों की पिटाई करने का ही कर रहा था.

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  4. बहुत ही बढ़िया संस्मरण, गोपेश भाई। ऐसे गुरुओं के कारण ही तो भारत का बेड़ा गर्क हुआ है।

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    1. संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति !
      मुझे ऐसे जाहिल अध्यापकों से कम शिकायत है और उन से ज़्यादा शिकायत है जो कि इनका अध्यापक के रूप में चयन करते हैं.

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  5. रजिस्ट्रार गुरुजन की आपने बहुत अच्छी खबर ली है। मजेदार संस्मरण के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई।

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    1. मेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद !
      वास्तव में शिक्षा के इन भस्मासुरों के उन्मूलन के लिए हम सब जागरूक व्यक्तियों को एक जुट हो जाना चाहिए.

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    1. मेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद मनोज कायल जी.

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