असत्यमेव जयते –
नाभि पे अपनी, कवच चढ़ा कर,
उतरा रावण, आज समर में,
लंकापति बनने का सपना,
भाई का अब, हुआ अधर में.
छुप कर बाली, भले मार लो,
किन्तु दशानन, बड़ा सजग है,
साम-दाम औ दंड-भेद से,
जीता उसने, सारा जग है.
राम लौट जाओ, फिर वन को,
बिना जानकी, बन सन्यासी,
आजीवन तप-ध्यान-मनन से,
दूर करो, नैराश्य, उदासी.
हर बस्ती, हर शहर-गाँव में,
पापी, सत्ता में, रहते हैं,
भक्त किन्तु हनुमान सरीखे,
दर्द गुलामी का, सहते हैं.
फिर न दशहरे का, उत्सव हो,
फिर न कहीं, पुतलों का दहन हो,
पाप, अधर्म, असत्य, अमर हैं,
इसी मन्त्र का, जाप गहन हो.
पाप, अधर्म, असत्य, अमर हैं,
इसी मन्त्र का, जाप गहन हो.
वाह वाह
जवाब देंहटाएंवाह, वाह के लिए शुक्रिया दोस्त.
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द रविवार 13 अक्बटूर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को 'पांच लिंकों का आनंद' के 13 अक्टूबर, 2024 के अंक में सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद दिग्विजय जी.
हटाएंछुप कर बाली, भले मार लो,
जवाब देंहटाएंकिन्तु दशानन, बड़ा सजग है,
साम-दाम औ दंड-भेद से,
जीता उसने, सारा जग है.
बहुत सटीक...
दशानन तो अब सचमुच बहुत सजग है
इतना कि अब तो विभीषण को भी उसका राज नहीं मालूम...
घर का भेदी भी अब किसी काम का नहीं रहा...आज के राम को कोई नयी युक्ति सोचनी होगी !
लाजवाब सृजन ।
मेरी काव्य-रचना की प्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सुधा जी.
हटाएंआज हर कहीं रावण मुखपृष्ठ पर है और राम हाशिये पर हैं.
बेचारा विभीषण राम-राज्य में संविदा पर काम करने वाला चपरासी है.