शनिवार, 30 दिसंबर 2017

महाकवि दिनकर से थोड़ा हटकर



·
चुनाव के समय महाकवि दिनकर से थोड़ा हटकर –
दो राह, समय के रथ का, घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है.
अब नए सिरे से नए चोर, ठग, चुनकर वह,
इक नया झुनझुना बजा-बजा,
दिल को अपने बहलाती है.
धोखा खाएगी फिर से वह,
इस सच को क्यों वह,
जानबूझ झुठलाती है?
ख़ुद पैर कुल्हाड़ी मारें, उसकी संतानें,
भारत माता की देख, फटे तब छाती है,
फिर से आकर नादिर कोई,
मेरी अस्मत को लूटेगा,
यह सोच के दिल्ली, बार-बार,
दिल ही दिल में, थर्राती है.
दो राह, समय के रथ का, घर्घर नाद सुनो,

खुद लुटने, पिटने, मिटने, जनता आती है,
खुद क़बर खोदने, अपनी, जनता आती है,    
ख़ुदकुशी दुबारा करने, जनता आती है.
.

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

कहाँ हो दुष्यंत कुमार?

कहाँ हो दुष्यंत कुमार?
हो गयी है भीड़,
नेताओं की,
छटनी चाहिए,
बन गए जो ख़ुद, ख़ुदा,
औक़ात,
घटनी चाहिए.

माटी (जनता) कहे कुम्हार (नेता) ते -

ज़ुल्म की काली, अँधेरी, रात,
ढलनी चाहिए,
मुझको अब छाती पे तेरी,
दाल दलनी चाहिए.

शुक्रवार, 22 दिसंबर 2017

नामकरण

नामकरण -
आज ग्रेटर नॉएडा में एक प्राइवेट बस में बैठा. टिकट के लिए बस कंडक्टर को मैंने दस रुपये की रेजगारी दे दी. बस कंडक्टर मुझसे बड़े रौब से बोला -
'ताऊ ! रेजगारी नहीं, दस का नोट दो.'
मैंने पूछा - 'क्यों भतीजे, रेजगारी का चलन क्या सरकार ने बंद कर दिया है?'
भतीजा बोला - 'सरकार की मैं ना जानता. मैंने तो जी अपनी बस में रेजगारी लेना बंद कर दिया है.'
मैंने प्यार से पूछा - 'ये बता, तेरा नाम क्या है?'
उसने जवाब दिया - 'सुरिंदर भाटी.'
मैंने कहा - ' सुरिंदर ! तू अपना नाम बदलकर छोटा मोदी रख ले.'
सुरिंदर भाटी ने हैरानी से पूछा - 'वो क्यों ताऊ?'
मैंने उसे समझाया - ' मोदी जी ने देश में नोटबंदी की थी और तूने अपनी बस में सिक्काबंदी की है. इसलिए वो बड़े मोदी और तू छोटा मोदी.'

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

राष्ट्रकवि से क्षमा-याचना के साथ

'हम कौन थे, क्या हो गए,
और क्या होंगे अभी,
आओ विचारें, बैठ कर के,
ये समस्याएं सभी.
(राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त)

राष्ट्रकवि से क्षमा-याचना के साथ -

हम चोर थे, डाकू हुए,
फिर हो गए, नेता सभी,
निज देश को, हम लूटना,
क्या भूल सकते हैं कभी?

जन-जन की प्रार्थना -

अवतार ले के भगवन,
इस देश को बचा ले,
चील और गिद्ध जैसे,
नेता सभी, उठा ले.

रविवार, 10 दिसंबर 2017

मेरा बेटा निर्दोष है



हमारे ग्रेटर नॉएडा के गौड़ सिटी में एक फ्लैट में माँ और बेटी की कैंची और क्रिकेट बैट से हत्या हो गयी. इस हत्या के बाद घर से सत्रह वर्षीय लड़का लापता पाया गया. पुलिस ने सीसी टीवी के फुटेज में देखा कि वह लड़का दीवाल पर बैट टांग रहा है. बाथरूम से उस लापता लड़के के खून से सने कपड़े भी बरामद हुए. कहानी शीशे की तरह साफ़ थी. उस किशोर ने ही अपनी माँ और बहन का खून किया था. इस परिवार के पड़ौस में रहने वालों ने बताया कि यह लड़का बिगड़ा हुआ था और पढ़ाई से ज़्यादा वीडियो गेम खेलने में मस्त रहता था.
पुलिस को इस फ़रार लड़के को खोजने में कोई दिक्कत नहीं हुई और वह बनारस में पकड़ा भी गया.. टीवी पर हमने देखा कि लड़का यह स्वीकार कर रहा है कि उसने गुस्से में अपनी माँ और अपनी बहन का खून कर दिया.

यहाँ बात अपराध की नहीं, पुत्र-प्रेम की हो रही है. अख़बारों में उस फ़रार लड़के के परिवार वालों की ओर से इश्तहार दिए गए कि वह घर लौट आए, कोई उस से कुछ नहीं कहेगा. पुलिस ने जब उस लड़के और उसके परिवार वालों के बीच हुई फ़ोन वार्ता को tap किया तब उसको धर पकड़ने में उसे कोई मुश्किल नहीं हुई. अब इस किशोर पर कानूनी कार्रवाही होगी और उसके परिवार वाले उसे जी-जान से बचाने की कोशिश करेंगे. माँ और बहन की निर्मम हत्या करने वाले इस शैतान को कोई भी सज़ा मिले, यह उन्हें हर्गिज़ बर्दाश्त नहीं होगा.

हम सबको गुरुग्राम के रियान इंटरनेशनल के सात वर्षीय विद्यार्थी प्रद्युम्न की स्कूल में हुई हत्या की याद है. इस हत्या में पहले तो बस कंडक्टर अशोक ने उस बच्चे की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया पर बाद में पता चला कि उसे इस इक़बाल--जुर्म के लिए पुलिस और शायद स्कूल वालों ने मजबूर किया था. सीबीआई ने इस स्कूल के ही एक सत्रह वर्षीय किशोर को प्रद्युम्न की हत्या के गिरफ्तार किया. पता चला कि आगामी परीक्षा में फ़ेल हो जाने से डरकर इस किशोर ने स्कूल में उस मासूम की हत्या कर दी ताकि इस हादसे की वजह से परीक्षा टल जाए. रियान स्कूल के सीसी टीवी कैमरे में यह किशोर प्रद्युम्न के कंधे पर हाथ रख कर चलते हुए दिखाई भी दे रहा है. इस किशोर ने पुलिस के सामने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया है पर   अब इसके करोड़पति बाप सीबीआई पर आरोप लगा रहे हैं कि उसने उनके बेक़सूर बेटे को फंसाया है.

जेसिका लाल मर्डर केस में और नितीश कटारा मर्डर केस में बड़े बड़े नेता अपने अपने बेटों को बेक़सूर सिद्ध करने के लिए करोड़ों रूपये बहा चुके हैं और फुटपाथ पर सो रहे लोगों पर अपनी बेशकीमती कार चढ़ाने वाले अरबपति नंदा परिवार के किशोर को बचाने के लिए किस तरह अनाप शनाप बहाया गया, यह सबको पता है.
 कोशिशें  कोशिशें की गईं, हम सब जानते हैं कि सलमान खान के पिता, मशहूर लेखक सलीम खान, बहुत ही शरीफ़ और नेक इन्सान हैं पर उन्हें भी फुटपाथ पर सो रहे मजदूरों को कुचलने वाला अपना बेटा बेक़सूर नज़र आता है. जिस तरह उन्होंने चश्मदीद गवाहों को अपने पक्ष में किया है, उस पर तो एक क्राइम थ्रिलर फ़िल्म बन सकती है.

महाभारत में हम धृतराष्ट्र को कोसते हैं कि उसे दुर्योधन के बड़े से बड़े अपराध दिखाई नहीं पड़ते थे. बेटे के अपराध इस पिता को अपने अंधेपन के कारण न दिखाई देते हों, ऐसा नहीं था, बल्कि इसलिए था कि वो अपने पुत्र के मोह में उसके अपराधों को अनदेखा करता था.
आज भी अपराधी पुत्रों के माँ-बाप धृतराष्ट्र की ही तरह अपने-अपने दुर्योधनों के प्यार में अंधे होकर उनके गुनाहों को अनदेखा करते हैं और उनको ढकने-छुपाने की पुरज़ोर कोशिश भी करते हैं.
 बेटा चाहे सात खून भी कर दे, बलात्कार करे, अपहरण करे, उसे बेक़सूर सिद्ध करने के लिए उसके माँ-बाप जी जान एक कर देते हैं पर परिवार की अनुमति के बिना दूसरी बिरादरी या दूसरी जाति या दूसरे धर्म के लड़के से प्रेम विवाह करने वाली अपनी बेटी को वो कभी माफ़ नहीं करते और अक्सर तो वो स्वयं उसकी हत्या कर देते हैं.

हमने शायद ही किसी छोटे से छोटा अपराध करने वाली लड़की के माँ-बाप को यह कहते सुना होगा – मेरी बेटी बेक़सूर है.’
फ़र्ज़ कीजिए कि ग्रेटर नॉएडा में हुए दोहरे हत्याकांड में अपराधी लड़का न होकर लड़की होती और वह अपनी माँ तथा अपने भाई की हत्या करके फ़रार हो जाती तो क्या उसके परिवार वाले उसके लिए ऐसे इश्तहार छपवाते – घर वापस आ जाओ, कोई तुमसे कुछ नहीं कहेगा.’   
मेरा एक और सवाल है - लड़कियों के प्रेम-प्रसंग को लेकर ही क्यों हॉरर किलिंग्स या ऑनर किलिंग्स होती हैं?    

हम यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,  रमन्ते तत्र देवताःका जाप करते हैं और सती प्रथा का गुणगान करते हैं. हर शहर, हर कसबे और हर गाँव में, हम देवी के मंदिर बनाते हैं किन्तु अपनी पत्नी, अपनी बहन, या अपनी बेटी को अपनी मर्ज़ी के खिलाफ़ कुछ भी करने की अनुमति तक नहीं देते. और अगर वो हमारी इच्छा के विरुद्ध कोई क़दम उठाती है तो फिर उसका दमन करने में, उसको कुचलने में, हम एक क्षण की भी देरी नहीं करते.
सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि बेटे और बेटी में इतना अधिक फ़र्क करने के बावजूद हम खुद को नैतिकता, सभ्यता और धर्म का रक्षक समझते हैं, अपनी संस्कृति की महानता का ढिढोरा पीटते हैं.      
 

रविवार, 3 दिसंबर 2017

राजेन्द्र बाबू

स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर मेरा एक पुराना आलेख -


राजेंद्र बाबू –
राजेंद्र प्रसाद को लोग प्यार और सम्मान से राजेंद्र बाबू पुकारा करते थे. राजेंद्र बाबू अपने ज़माने के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते थे. उनके वैभव और उनके ठाठ-बाट के चर्चे पूरे बिहार में मशहूर थे. 1917 में बिहार में, विशेषकर चंपारन में, ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक गहरा असंतोष पनप रहा था इस  का मूल कारण नील की खेती करने वाले किसानों का निलहे साहबों द्वारा अमानवीय शोषण था पर राजेंद्र बाबू को इस ओर देखने का समय ही कहाँ था वो तो अपनी फलती-फूलती वकालत के सुख भोगने में मगन थे. 
एक शाम उनके बंगले पर एक अजनबी आया और बाहर गेट पर खड़े दरबान से उसने राजेंद्र बाबू से मिलने की इच्छा व्यक्त की. दरबान ने गौर से उस अजनबी को देखा. धोती, छोटा सा कुरता, सर पर बड़ा सा पग्गड़, पैरों में देसी जूते पहने हुए यह आदमी उसे बाबूजी का कोई देहाती मुवक्किल लगा. दरबान ने उससे कहा –
‘बाबूजी शाम को किसी से नहीं मिलते. कल सुबह आना.’
अजनबी ने कहा –
‘मैं बड़ी दूर से आया हूँ. बाबूजी से मिलने दो, मैं उनका ज्यादा समय नहीं लूँगा.’
दरबान ने दृढ़ता के साथ उस अजनबी को वापस लौटा दिया. अगले दिन सुबह से ही वो अजनबी फिर बंगले के गेट पर बाबूजी से मिलने की अरदास लेकर खड़ा हो गया. दरबान ने उसे आश्वस्त किया कि वह बाबूजी के कोर्ट जाने से पहले उसे उनसे मिलवा देगा. राजेंद्र बाबू की कार जब बंगले के दरवाज़े पर पहुंची तो उस अजनबी को दरबान ने उनके सामने पेश कर दिया.
राजेन्द्र बाबू ने कार में बैठे-बैठे ही उस अजनबी से पूछा –
‘कहो भाई क्या बात है, तुम मुझसे क्यूँ मिलना चाहते हो?
अजनबी ने जवाब दिया –
‘मैं चंपारन के किसानों के बारे में आपसे बात करना चाहता हूँ.’
राजेंद्र बाबू ने उस अजनबी को उनसे अपना मुकदमा लड़ने की प्रार्थना लेकर आया हुआ कोई आम आदमी समझा था पर यहाँ तो बात कुछ और थी. उन्होंने उस अजनबी को गौर से देखा, उनको लगा कि इसको कहीं देखा है, पर कहाँ, यह उनके समझ में नहीं आ रहा था. अब राजेन्द्र बाबू के पूछने का लहजा बदल चुका था उन्होंने अपनी कार से उतरकर अजनबी से कहा –
‘मैंने आपको कहीं देखा है. मेहरबानी करके अपना परिचय दीजिये.’
अजनबी ने कहा –
‘मैं मोहनदास करम चंद गांधी हूँ. हो सकता है अख़बार में आपने मेरा कोई फोटो देखा हो. मेरा आपसे पत्र व्यवहार भी हो चुका है.’
यह सोचकर राजेन्द्र बाबू का चेहरा शर्म से लाल पड़ गया कि उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की अलख जगाने वाले इस महानायक के साथ कैसा व्यवहार किया था. उन्होंने गांधीजी से माफ़ी मांगते हुए पूछा –
‘आप सुबह कैसे यहाँ आ गए. आपकी तरफ से आनेवाली ट्रेन तो शाम को आती है?’
गांधीजी ने मुस्कुराकर जवाब दिया –
‘मैं तो कल शाम से ही आपसे मिलने की प्रतीक्षा कर रहा था.’
राजेन्द्र बाबू ने हैरानी से पूछा –
‘कल शाम ही से? फिर सुबह तक आप कहाँ थे?
गांधीजी ने जवाब दिया –
‘पता चला कि शाम को आप किसी से मिलते नहीं हैं इसलिए आपके बंगले के बाहर पडी एक बेंच पर रात गुज़ारकर अब आपकी सेवा में उपस्थित हूँ.’
राजेन्द्र बाबू ने गांधीजी के चरणों में अपना सर रख दिया और आँखों में आंसू भरकर, हाथ जोड़कर उनसे क्षमा मांगते हुए कहा –
‘मैं किस तरह अपने दरबान के और अपने अपराध के लिए आपसे माफ़ी मांग सकता हूँ?’
गांधीजी ने राजेन्द्र बाबू का हाथ पकड़कर हँसते हुए कहा –
‘माफ़ी तो आपको तभी मिलेगी जब चम्पारन आन्दोलन में आप मेरा साथ देंगे. आप जैसा प्रभावशाली स्थानीय नेतृत्व हमारे आन्दोलन को बहुत ताक़त देगा.’
राजेन्द्र बाबू ने दृढ़ता के साथ कहा –
‘आप आदेश दें. अब यह जीवन आपको समर्पित है.’
गांधीजी ने कहा –
‘सोच लीजिये राजेन्द्र बाबू, मेरे आन्दोलन में कूदेंगे तो आपको यह शानो-शौकत, यह फलती-फूलती वकालत भी छोड़नी पड़ सकती है.’
राजेन्द्र बाबू ने कहा –
‘आप तो बैरिस्टर हैं. आप अगर शानो-शौकत और वकालत छोड़ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं?’
उस दिन से राजेन्द्र बाबू ने अपना सम्पूर्ण जीवन गांधीजी के आंदोलनों और उनके आदर्शों के नाम कर दिया.