गुरुवार, 29 सितंबर 2022

भाषणनामा

 1.

ख़्वाब में भाषण तेरा सुन कर मुझे गश आ गया

दिन में भाषण कम रहे क्या रात भी जो, खा गया

2.

त्याग और बलिदान हमेशा भाषण में जपना होता है

कुर्सी पर दम तोड़ सकूं मैं एक यही सपना होता है 

3.

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

दुष्यंत कुमार

हद के पार ग़लतफ़हमी -

वो भाषण सुन के पत्थर को उठाने झुक गया होगा

वो सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

4.

उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पे रौनक

वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

मिर्ज़ा ग़ालिब

बहरे ही ख़ुशकिस्मत –

उनके भाषण से चली जाती है मुंह की रौनक

जो भी बहरा है यहाँ उसका ही हाल अच्छा है 

रविवार, 25 सितंबर 2022

एक सच्चा स्वतंत्रता सेनानी

 1976 की बात है. माता इंदिरा गांधी की कृपा से तब देश में इमरजेंसी लगी हुई थी.

उन दिनों पिताजी हरदोई में चीफ़ जुडिशिअल मजिस्ट्रेट थे.

1972 में भारत की स्वतंत्रता के 25 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन दिए जाने की घोषणा की गयी थी लेकिन इस योजना का कार्यान्वयन इमरजेंसी के दौरान ही हो पाया था.

एक बार पिताजी अपने रूटीन चेकअप के लिए हरदोई के डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल गए थे जहाँ पर उनकी मुलाक़ात सी० एम० ओ० (चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर) से हो गयी.

पिताजी को चाय पिलाने के लिए सी० एम० ओ० अपने कमरे में ले गए.

कुछ देर बाद गैरिक वस्त्रधारी, त्रिपुंडधारी, त्रिशूलधारी , जटाधारी, दाढ़ीधारी और कमंडलधारी, एक नौजवान बाबा जी उस कमरे में पधारे.

सी० एम० ओ० ने बाबा जी को ससम्मान कुर्सी पर बिठाया और फिर उन

से उनके पधारने का कारण पूछा.

बाबा जी ने पहले सी० एम० ओ० साहब को और पिताजी को हरद्वार से लाया हुआ प्रसाद दिया फिर अपने पधारने का कारण बताए हुए बिना ही देश के लिए, धर्म के लिए और समाज के लिए, अपने त्याग-बलिदान की गौरव-गाथा का बखान करना शुरू कर दिया.

कैसे दिव्य-आत्मबोध के बाद उन्होंने गृह-त्याग किया, कैसे उन्होंने हिमालय की कंदराओं में एक सिद्ध योगी के निर्देशन में तप-साधना की, कैसे वो गांधी जी की पुकार पर स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े और कैसे उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेते समय अपने कंधे पर पुलिस की एक गोली खाई.

इस गौरव-गाथा को सुनने के बाद सी० एम० ओ० ने किंचित आश्चर्य से बाबा जी से पूछा –

आपने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था? आप तो मुश्किल से 40 साल के लगते हैं बाबा जी.

बाबा जी ने मुस्कुराते हुए रहस्योद्घाटन किया –

बच्चा ! हमने योग साधना से अपने यौवन को स्थायी बना लिया है. वैसे हमारी आयु 60 साल की है.

सी० एम० ओ० ने हाथ जोड़ कर बाबा जी से पूछा –

बाबा जी, आप मुझ से क्या चाहते हैं?’

बाबा जी ने अपने कंधे पर एक गहरी चोट का सा निशान दिखाते हुए कहा –

आप हमको यह प्रमाणपत्र दे दीजिए कि हमने 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में गोली खाई है.’

नादान सी० एम० ओ० ने पूछा –

मैं आपको ऐसा प्रमाणपत्र कैसे दे सकता हूँ और ऐसा प्रमाणपत्र मिलने से आपको क्या लाभ हो सकता है?’

बाबा जी ने फ़रमाया –

इस प्रमाणपत्र के आधार पर हमको स्वतंत्रता सेनानी वाली पेंशन मिल जाएगी और आपको धर्म-लाभ मिलेगा.

सी० एम० ओ० ने बाबा जी के कंधे पर उस गहरी चोट के जैसे निशान का बाकायदा मुआयना किया फिर अपनी असमर्थता जताते हुए उन से कहा –

बाबा जी इस घाव के निशान को देख कर न तो यकीनी तौर पर यह कहा जा सकता है कि यह ठीक 34 साल पुराने घाव का निशान है और

न ही यह बताया जा सकता है कि यह निशान गोली लगने से ही हुआ है. हाँ, अगर गोली अभी भी आपके कंधे में अटकी हुई है तो एक्स रे कर के उसका पता लगाया जा सकता है.

वैसे अगर आपको गोली लगी भी हो तो कोई डॉक्टर यह प्रमाणपत्र कैसे दे सकता है कि गोली आपको भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लेते वक़्त लगी है?’

फिर सी० एम० ओ० ने पिताजी की तरफ़ इशारा करते हुए बाबा जी से कहा –

ये साहब हरदोई के चीफ़ जुडिशिअल मजिस्ट्रेट हैं. आपके मामले में ये आपको सही सलाह दे सकते हैं.

बाबा जी ने पिताजी की तरफ़ अपना मुंह मोड़ कर उन से कहा –

बच्चा ! तुम ही हमको ऐसा प्रमाणपत्र दिलवा दो.’

बाबा जी के शेखचिल्लीनुमा वृतांत से और अपनी 40 साल की उम्र को बढ़ा कर 60 साल बताने के उनके अंदाज़ से पिताजी पहले ही उनको पक्का फ्रॉड मान चुके थे.

पिताजी को यह भी पता था कि स्वतंत्रता सेनानी वाली पेंशन के लिए लोगबाग कैसे-कैसे झूठे दावे और कैसे-कैसे फ़र्जी प्रमाणपत्र पेश कर रहे थे. उन्होंने फ़ौरन बाबा जी की तफ़्तीश शुरू कर दी –

बाबा जी, आप भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान जेल तो ज़रूर गए होंगे. क्या उसका कोई रिकॉर्ड आपके पास है?

आन्दोलन में गोली लगने के बाद आप इलाज के लिए अस्पताल भी गए होंगे. क्या उस अस्पताल की मेडिकल रिपोर्ट और उसका डिस्चार्ज सर्टिफ़िकेट आपके पास है?’

बाबा जी ने पिताजी को बताया –

हम जेल-वेल नहीं गए और आन्दोलन में गोली लगने के बाद हमारा इलाज भी किसी अस्पताल में नहीं, बल्कि हमारे आश्रम में ही हुआ था.  आश्रम में ही आ कर वैद्य जी ने हमारे कंधे में लगी गोली निकाल दी थी.

लेकिन हमने भारत छोड़ो आन्दोलन में भाग लिया था और उसमें गोली भी खाई थी, इसकी गवाही तो हमारे आश्रम का बच्चा-बच्चा भी दे देगा.

पिताजी ने बेरहमी के साथ कहा –

34 साल पहले हुए वाकए की गवाही, आप अपने आश्रम के बच्चे-बच्चे से दिलवा रहे हैं.

अव्वल तो आपको गोली लगी नहीं है और अगर लगी भी हो तो क्या पता कि वो आपको पुलिस वालों ने तब मारी हो जब आप चोरी कर के या डाका डाल के, भाग रहे हों.

पिताजी की बात सुन कर सी० एम० ओ० तो हंसने लगे लेकिन बाबा जी की भ्रकुटियाँ तन गईं. उन्होंने दहाड़ते हुए कहा –

बाबा के श्राप से डर बच्चा ! बाबा में तुझे भसम करने की ताक़त है.

पिताजी ने व्यंग्य-भरी मुस्कान के साथ बाबा जी से पूछा –

भस्मासुर जी, जब आप इतने ताक़तवर हैं कि किसी को भी भसम कर सकते हैं तो फिर एक अदने से प्रमाणपत्र के लिए इधर-उधर क्यों भटक रहे हैं?

अपनी दिव्य-शक्ति से आवश्यक प्रमाणपत्र भी ले आइए और स्वतंत्रता सेनानी वाली पेंशन भी बनवा लीजिए.

अपनी धमकी को बे-असर होते देख अब बाबा जी ने भसम करने वाले अपने वक्तव्य के लिए पिताजी से माफ़ी मांगी और फिर उन्होंने ख़ुशामद का रास्ता अपना लिया.

सी० एम० ओ० साहब से और पिताजी से उन्होंने अनुरोध किया वो ही उन्हें पेंशन पाने का कोई सही रास्ता दिखाएं.

सी० एम० ओ० साहब तो बाबा जी को इस विषय में कोई राह नहीं दिखा पाए लेकिन पिताजी ने बाबा जी को एक अनमोल सलाह देते हुए कहा –

बाबा जी, इन दिनों इमरजेंसी में सरकार के ख़िलाफ़ कोई कुछ भी बोले या करे तो उसे मीसा (मेंटेनेंस ऑफ़ इंटरनल सीक्योरिटी एक्ट) के तहत जेल में चक्की पीसने के लिए डाल दिया जाता है.

आप चौराहे पर जा कर सरकार के ख़िलाफ़ ऐसा कुछ अनाप-शनाप बकिए कि आपको मीसा के तहत जेल में डाल दिया जाए.

कभी न कभी तो इंदिरा गांधी गद्दी से उतरेगी ही. फिर जब अपोज़ीशन की सरकार बनेगी तो हो सकता है कि मीसा-बंदियों को स्वतंत्रता सेनानियों के जैसी ही कोई पेंशन भी दे दी जाए. तो आप ऐसा करिए कि --- 

पिताजी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि बाबा जी ने कमरे से बाहर भागते हुए अपनी स्पीड से मिल्खा सिंह के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए.          

बुधवार, 21 सितंबर 2022

एक ही थैली के चट्टे-बट्टे की फ़ोर्जरी राइम

पापा: चट्टे--बट्टे !

चट्टे-बट्टे : जी पापा !

पापा: भारत खा रए?

चट्टे--बट्टे : ना पापा !

पापा: घपले कर रए

चट्टे-बट्टे : ना पापा ! 

पापा: झूठ बोल रए?    

चट्टे-बट्टे : ना पापा !

पापा: देश-प्रगति फिर रुकती क्यूँ

रोज़ गरीबी बढ़ती क्यूँ?  

चट्टे : बट्टे  चोर बड़ा पापा

मैं निर्दोष सदा पापा !  

बट्टे: चट्टे  चीट बड़ा पापा

दूध-धुला मैं हूँ पापा !  

पापा : राजमहल से बंगले क्यूं,

स्विस बैंकों में खाते क्यूँ?  

चट्टे : ये तो सब अफ़वाहें हैं !

बट्टे : सब दुश्मन की चाले हैं !

पापा: दोनों अपना मुंह खोलो !

चट्टे- : हा ! हा ! हा ! हा ! 

बट्टे : हा ! हा ! हा ! हा ! 

बुधवार, 14 सितंबर 2022

हिंदी-दिवस पर हिंदी प्रेमियों से एक अनुरोध

 मित्रों, आज हिंदी दिवस है. नेताओं के और आचार्यों के भाषण तैयार हैं

और विद्यार्थी भी वाद-विवाद, भाषण प्रतियोगिता, निबंध प्रतियोगिता तथा काव्य-पाठ आदि के लिए तैयार हैं.

पर आप लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप कहीं भी –

1.    अल्लामा इक़बाल के क़ौमी तराने की पंक्ति –

'हिंदी हैं हम, वतन है, हिन्दोस्तां हमारा'

का प्रयोग हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए नहीं करें, क्योंकि इस पंक्ति में 'हिंदी' से तात्पर्य हिंदी भाषा से नहीं बल्कि हिन्द के अर्थात् भारत के निवासियों से है.

2. हिंदी को हिंदुस्तान के माथे की बिंदी बताने वाला जुमला सुनते-सुनते हमारे कान पक चुके हैं और इसे पढ़ते-पढ़ते हमारी आँखें थक चुकी हैं. अगर हो सके तो इसको दोहराएं नहीं.

3. भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा कही गयी पंक्तियां -

'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,

बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न भव को सूल'

को भी यदि उद्धृत न किया जाय तो बड़ी कृपा होगी. क्योंकि इसको भी सबने असंख्य बार सुना होगा और अनगिनत बार पढ़ा होगा.

4. 14 सितम्बर, 1949 का महत्व और उसका इतिहास भी बार-बार बताए जाने की आवश्यकता नहीं है.

5. जाने में अथवा अनजाने में, हिंदी भाषा को तथा देवनागरी लिपि को, केवल हिन्दू धर्म से जोड़ने की धृष्टता और मूर्खता मत कीजिएगा.

यह याद रखिएगा कि आज राष्ट्रभाषा हिंदी जैसी बोली और लिखी जाती है, उसे विकसित करने में सबसे बड़ा योगदान - एक तुर्क, एक मुसलमान, अमीर ख़ुसरो का है. अगर आपको मेरी बात पर विश्वास न हो तो आज से सात सौ साल से भी अधिक पहले उसके द्वारा पूछी गयी इस पहेली को फिर से पढ़ लीजिएगा –

एक थाल मोती से भरा, सब के सर पर औंधा धरा,

चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उस से एक न गिरे.’

मलिक मुहम्मद जायसी नामक एक मुसलमान ने गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस से बहुत पहले पद्मावत के रूप में अवधी में महाकाव्य लिखा था.

हिंदी के विकास में अब्दुर्रहीम खानखाना और रसखान जैसे मुसलमानों के योगदान की चर्चा करते-करते तो एक युग बीत सकता है.

यह भी मत भूलिएगा कि

सब ठाठ पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा

कहने वाला जनकवि नज़ीर अकबराबादी एक मुसलमान था.

6.  याद रखिएगा - 'हिंदी दिवस' पर किसी भारतीय भाषा की और किसी भारतीय भाषा की लिपि की (विशेषकर उर्दू भाषा की और अरबी-फ़ारसी लिपि की) महत्ता कम करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए.

हिंदी भाषा को और देवनागरी लिपि को किसी पर थोपने से या किसी पर लादने से, अधिक यह आवश्यक है कि उन्हें मांज कर, उन्हें तराश कर, ऐसा बना दिया जाए कि वो दोनों, अहिन्दीभाषियों के दिल में स्वयं अपनी जगह बना लें.

7. यदि हो सके तो इस हिंदी दिवस पर हम हिंदी भाषियों को एक अन्य भारतीय भाषा सीखने का और देवनागरी लिपि के अतिरिक्त एक अन्य भारतीय लिपि सीखने का संकल्प करना चाहिए.

8.  यह दिन अंग्रेज़ी भाषा को या रोमन लिपि को, कोसने का नहीं है बल्कि हमको अपनी सैकड़ों साल से चली आ रही अपनी मानसिक दासता की और घोर आलस्य की प्रवृत्ति का परित्याग करने का है.

हमको हिंदी में साहित्य, विज्ञान, मानविकी, वाणिज्य, विधि, चिकित्सा, तकनीक ही नहीं, बल्कि हर विषय में, हर क्षेत्र में, प्रामाणिक, मौलिक तथा स्तरीय ग्रंथों की रचना करनी है.

हमें हिंदी को और देवनागरी लिपि को, अंग्रेज़ी भाषा के और रोमन लिपि के समान, विकसित, समर्थ, लोकप्रिय, सर्वग्राह्य तथा विश्वव्यापी बनाने के लिए अनथक प्रयास करना है और उन्हें हिमालय की बुलंदियों तक पहुँचाना है.

जय हिंदी ! जय भारत !