रविवार, 20 अक्तूबर 2024

व्यावहारिक ज्ञान की बातें

सीता जी को माता अनसूया का उपदेश -
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी,
आपद काल, परिखि अहिं चारी.
चुनाव-प्रत्याशियों को हमारा उपदेश -
छल, प्रपंच, चोरी, मक्कारी,
सफल सियासत के गुण, चारी.
चोर, दस्यु, तस्कर, व्यभिचारी,
ये चुनाव में, सब पर भारी.
हमारे ऐसे विद्यादान की निरर्थकता -
हम से पढ़, पंडित भया,
बेघर, निर्धन होय,
बिश्नोई लॉरेन्स का,

चेला सुख से सोय. 

शनिवार, 12 अक्तूबर 2024

असत्यमेव जयते

 असत्यमेव जयते –

नाभि पे अपनी, कवच चढ़ा कर,
उतरा रावण, आज समर में,
लंकापति बनने का सपना,
भाई का अब, हुआ अधर में.
छुप कर बाली, भले मार लो,
किन्तु दशानन, बड़ा सजग है,
साम-दाम औ दंड-भेद से,
जीता उसने, सारा जग है.
राम लौट जाओ, फिर वन को,
बिना जानकी, बन सन्यासी,
आजीवन तप-ध्यान-मनन से,
दूर करो, नैराश्य, उदासी.
हर बस्ती, हर शहर-गाँव में,
पापी, सत्ता में, रहते हैं,
भक्त किन्तु हनुमान सरीखे,
दर्द गुलामी का, सहते हैं.
फिर न दशहरे का, उत्सव हो,
फिर न कहीं, पुतलों का दहन हो,
पाप, अधर्म, असत्य, अमर हैं,
इसी मन्त्र का, जाप गहन हो.
पाप, अधर्म, असत्य, अमर हैं,
इसी मन्त्र का, जाप गहन हो.
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बुधवार, 2 अक्तूबर 2024

गांधी जयन्ती

आज की ख़बर –
तेरी छाती पे गोलियां बरसा,
तेरी समाधि पे जाते हैं, फूल बरसाने,
तू अमन और अहिंसा की, बात करता है,
वो चल पड़े, तुझे बम की ज़ुबान सिखलाने.
आगे बढ़ो बाबा -
एक हाथ में लाठी ठक-ठक,
और एक में,
सत्य, अहिंसा तथा धर्म का,
टूटा-फूटा, लिए कटोरा.
धोती फटी सी, लटी दुपटी,
अरु पायं उपानहिं की, नहिं सामा,
राजा की नगरी फिर आया,
बिना बुलाए एक सुदामा.
बतलाता वो ख़ुद को, बापू,
जिसे भुला बैठे हैं बेटे,
रात किसी महफ़िल में थे वो,
अब जा कर बिस्तर पर लेटे.
लाठी की कर्कश ठक-ठक से,
नींद को उनके, उड़ जाना था,
गुस्ताख़ी करने वाले पर,
गुस्सा तो, बेशक़ आना था.
टॉमी को, खुलवा मजबूरन,
उसके पीछे, दौड़ाना था,
लेकिन एक भले मानुस को,
जान बचाने आ जाना था.
टॉमी को इक घुड़की दे कर,
बाबा से फिर दूर भगाया,
गिरा हुआ चश्मा उसका फिर,
उसके हाथों में थमवाया.
बाबा लौटा ठक-ठक कर के,
नयन कटोरों में जल भर के,
जीते जी कब चैन मिला था,
दुःख ही झेला उसने मर के.
भारत दो टुकड़े करवाया,
शत्रु-देश को धन दिलवाया,
नाथू जैसे देश-रत्न को,
मर कर फांसी पर चढ़वाया.
राष्ट्रपिता कहलाता था वह,
राष्ट्र-शत्रु पर अब कहलाए,
बहुत दिनों गुमराह किया था,
कलई खुल गयी वापस जाए.
विश्व उसे जानता नहीं है,
देश उसे मानता नहीं है,
उसकी राह पे चलने का प्रण,
अब कोई ठानता नहीं है.
बाबा अति प्राचीन हो गया,
पुरातत्व का सीन हो गया,
उसे समझना मुश्किल है अब,
भैंस के आगे बीन हो गया.
दो अक्टूबर का अब यह दिन,
उसे भुलाने का ही दिन है,
त्याग-तपस्या को दफ़ना कर,
मधुशाला जाने का दिन है.
आओ उसकी लाठी ले कर,
इक-दूजे का हम सर फोड़ें,
विघटित, खंडित, आहत, भारत,
नए सिरे से, फिर हम तोड़ें.
विघटित, खंडित, आहत, भारत,
नए सिरे से, फिर हम तोड़ें.