मुफ़लिसी पर रोने वालों के
जवाब में -
चायपान तक सीमित नशा,
शाकाहार,
दो कमरों का किराए का महल,
कभी शानदार बस की तो कभी आरामदेह सेकंड स्लीपर में ट्रेन की, और लखनऊ में अपने घर जाकर, पुराने स्कूटर की सवारी,
अधिकतर कुली और मेट की ज़िम्मेदारी खुद सम्हाल लेने की अक्लमंदी,
सेल में खरीदे हुए डिस्काउंट वाले सामान को फ्रेश सामान के सामने तरजीह.
रेस्तरां से ज़्यादा चाट के ठेलों से प्यार,
शादी में सिले सूटों को अगले 25 साल तक आल्टर करा के और ड्राईक्लीन करा के ठाठ से इस्तेमाल करना,
श्रीमतीजी और बच्चों को सादगी की प्रतिमूर्ति बनाये रखने का आग्रह,
अल्मोड़ा में रहते हुए घर के सभी सदस्यों को प्रदूषण-मुक्त 11 नंबर की बस मुहैया करना,
इन बातों को देखकर कोई भी मानेगा कि हम तो जी, राजाओं की तरह ऐश से रहे.
फिर भी हमको कभी किसी बात की कमी नहीं रही.
हाँ, एक किस्सा याद आ गया -
सिर्फ़ कच्छा पहने, चने फांकते हुए एक साहब कह रहे थे -
'अपुन के तो बस दो ही शौक़ हैं - अच्छा खाना और अच्छा पहनना.'
चायपान तक सीमित नशा,
शाकाहार,
दो कमरों का किराए का महल,
कभी शानदार बस की तो कभी आरामदेह सेकंड स्लीपर में ट्रेन की, और लखनऊ में अपने घर जाकर, पुराने स्कूटर की सवारी,
अधिकतर कुली और मेट की ज़िम्मेदारी खुद सम्हाल लेने की अक्लमंदी,
सेल में खरीदे हुए डिस्काउंट वाले सामान को फ्रेश सामान के सामने तरजीह.
रेस्तरां से ज़्यादा चाट के ठेलों से प्यार,
शादी में सिले सूटों को अगले 25 साल तक आल्टर करा के और ड्राईक्लीन करा के ठाठ से इस्तेमाल करना,
श्रीमतीजी और बच्चों को सादगी की प्रतिमूर्ति बनाये रखने का आग्रह,
अल्मोड़ा में रहते हुए घर के सभी सदस्यों को प्रदूषण-मुक्त 11 नंबर की बस मुहैया करना,
इन बातों को देखकर कोई भी मानेगा कि हम तो जी, राजाओं की तरह ऐश से रहे.
फिर भी हमको कभी किसी बात की कमी नहीं रही.
हाँ, एक किस्सा याद आ गया -
सिर्फ़ कच्छा पहने, चने फांकते हुए एक साहब कह रहे थे -
'अपुन के तो बस दो ही शौक़ हैं - अच्छा खाना और अच्छा पहनना.'
मुफलिसी पर रोने वाले तो रोते ही रहेंगे। बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंप्रोफ़ेसर पैदल की ओर से 'बहुत खूब' लिखने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंकुछ पैदल इधर
हटाएंऔर
कुछ पैदल उधर
कुछ पैर से पैदल
कुछ दिमाग से पैदल
क्या नहीं है
पैर ऊपर कर हवा
में हो लेने से अच्छा
पैर से पैदल हो लेना ? :)