बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

आगे बढ़ो बाबा

एक हाथ में लाठी ठक-ठक,
और एक में,
सत्य, अहिंसा तथा धर्म का,
टूटा-फूटा, लिए कटोरा.
धोती फटी सी, लटी दुपटी,
अरु पायं उपानहिं की, नहिं सामा,
राजा की नगरी फिर आया,
बिना बुलाए एक सुदामा.
बतलाता वो ख़ुद को, बापू,
जिसे भुला बैठे हैं बेटे,
रात किसी महफ़िल में थे वो,
अब जाकर बिस्तर पर लेटे.
लाठी की कर्कश ठक-ठक से,
नींद को उनके, उड़ जाना था,
गुस्ताख़ी करने वाले पर,
गुस्सा तो, बेशक़ आना था.
टॉमी को, खुलवा मजबूरन,
उसके पीछे, दौड़ाना था,
लेकिन एक भले मानुस को,
जान बचाने आ जाना था.
टॉमी को इक घुड़की देकर,
बाबा से फिर दूर भगाया,
गिरा हुआ चश्मा उसका फिर,
उसके हाथों में थमवाया.
बाबा लौटा ठक-ठक कर के,
नयन कटोरों में जल भर के,
अपने सब अब हुए बेगाने,
उसे खोजने और ठिकाने.
राष्ट्रपिता कहलाता था वह,
राष्ट्र-शत्रु पर अब कहलाए,
बहुत दिनों गुमराह किया था,
कलई खुल गयी वापस जाए.
ट्रम्प उसे जानता नहीं है,
पुतिन उसे मानता नहीं है,
उसकी राह पे चलने का प्रण,
अब कोई ठानता नहीं है.
बाबा अति प्राचीन हो गया,
पुरातत्व का सीन हो गया,
उसे समझना मुश्किल है अब,
भैंस के आगे बीन हो गया.
नई शक्ति मिल गई राष्ट्र को,
नई दिशा मिल गयी राष्ट्र को,
नव-भारत का उदय हुआ है,
नया पिता मिल गया राष्ट्र को.

20 टिप्‍पणियां:

  1. अद्भुत प्रस्तुति।
    मन द्रवित हो गया और नैन नम, कैसी विडम्बना है इस देश की ,
    यहां बस चलती का नाम गाड़ी
    पुरानी हई बापू तेरी लाठी ।
    यथार्थ चित्रण करती हृदय स्पर्शी रचना।

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    1. धन्यवाद मन की वीणा.
      यह कविता मैंने बहुत दुखी होकर, बहुत निराश होकर और बहुत कुंठित होकर लिखी है.
      हम और आप जैसे उस बूढ़े बाबा के मुट्ठी भर प्रशंसक उसे याद करने के लिए कभी न कभी दण्डित अवश्य किए जाएंगे.
      इस से पहले ही हम अपना घर खुद ही फूँक कर, अपना सीस उतार कर, भूमि पर क्यों न धर दें?
      देशभक्तों को ऐसा करने की फिर कोई ज़हमत नहीं उठानी पड़ेगी.

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  2. उत्तर
    1. कल से नाटक बंद होगा और सब कुछ बदल जाएगा.
      राजघाट पर मॉल बनेगा.
      नोटों पर से एक बूढ़े का चित्र हटा कर किसी ऊर्जावान महामानव का चित्र छापा जाएगा.
      चर्खा कातते हुए किसी और की तस्वीर छपेगी.
      गाँधी-मार्ग' 'नाथू-मार्ग' में तब्दील होगा
      और
      सत्य-अहिंसा-प्रेम का राग अलापने वाले गाँधी-दर्शन पर प्रतिबंध लगेगा.

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  3. मुझे तो 1969 में बनी फिल्म बालक का यही गीत याद आ रहा आपकी पोस्ट पढ़कर -
    काला धन काला व्यापार, रिश्वत का है गरम बाज़ार
    सत्य अहिंसा करें पुकार टूट गया चरखे का तार
    तेरे अनशन सत्याग्रह के बदल गये असली बर्ताव
    एक नई विद्या उपजी जिसको कहते हैं घेराव
    तेरी कठिन तपस्या का ये कैसा निकला अंजाम...

    प्रांत प्रांत से टकराता है भाषा पर भाषा की लात
    मैं पंजाबी तू बंगाली कौन करे भारत की बात
    तेरी हिंदी के पाँव में अंग्रेजी न डाली डोर
    तेरी लकड़ी ठगों ने ठग ली, तेरी बकरी ले गये चोर
    साबरमती सिसकती तेरी तड़प रहा है सेवाग्राम....
    ये गीत उस समय लिखा गया था जब आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाली पीढ़ी जिंदा थी। तब का ये हाल बयान किया गया तो अब का.... आपने जो लिखा उसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं लग रही।

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    1. मीना जी, यह पुराना गीत आज की वास्तविकता का ही चित्रण करता है.
      गाँधी जी का जितना अपमान आज हो रहा है, उतना कभी नहीं हुआ. मौका-परस्त और स्वार्थी नेता तो हमको भारत की आज़ादी के बाद से ही मिलने लगे थे लेकिन आज जितने बेशर्म, बेईमान, घमंडी, हांकू और बेरहम नेता हमको पहले कभी नहीं मिले थे.
      पहले गाँधी जी हाशिये पर लाए गए थे, अब वो आधिकारिक तौर पर कूड़ेदान में डाल दिए गए हैं.

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 03 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. 'पांच लिंकों का आनंद' के 3 अक्टूबर के अंक में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. मैं इस अंक की रचनाएं पढ़ने का अवश्य आनंद उठाऊंगा.

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  6. बाबा अति प्राचीन हो गया,
    पुरातत्व का सीन हो गया,
    उसे समझना मुश्किल है अब,
    भैंस के आगे बीन हो गया.
    सच में मीना बहन और कुसुम बहन ने सब कह दिया जो मैं कहना चाहती थी | आपकी रचना गाँधीवाद की निरंतर सिद्ध होती निरर्थकता [ जो है नहीं पर छद्म गाँधीगिरी ने ऐसा माहौल बना दिया है] पर मार्मिक व्यंग है | मुखौटों में छिपे ये नये गांधी कैसे पहचाने जनता ये बड़ी प्रश्न है | सादर -

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    1. रेणु जी, मेरे ब्लॉग पर आप बहुत दिनों बाद पधारीं हैं.
      गांधी जी इस घोर भौतिकतावादी युग में, लोकतान्त्रिक व्यवस्था के पीछे छिपे हुए अधिनायक तंत्र में और आत्मश्लाघा की पराकाष्टा के युग में सिंगल यूज़ प्लास्टिक की भांति त्याज्य हो गए हैं.
      जनता धूर्त पाखंडियों के बहकावे में आ रही है और खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रही है.
      पछताने की वेला आएगी, गाँधी जी के आदर्श हमारा फिर से मार्ग-दर्शन करेंगे लेकिन डर है कि तब तक कहीं बहुत देर न हो जाए.

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  7. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-10-2019) को   "नन्हा-सा पौधा तुलसी का"    (चर्चा अंक- 3478)     पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।  
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. मेरी कविता को 'चर्चा मंच - 3478' में सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'.

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  8. उत्तर
    1. धन्यवाद ज्योति जी.
      महान व्यक्तियों पर दिल से लिखो तो अपने आप कुछ अच्छा बन जाता है.

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  9. सादर प्रणाम सर
    आज के दौर पर आपका व्यंग बहुत सार्थक है | फ़ादर ऑफ़ इंडिया और फ़ादर ऑफ़ नेशन का फ़र्क़ स्पष्ट करती आपकी रचना गाँधी जी को सच्चे अर्थों में याद करती हुई हमें सोचने पर मज़बूर करती है |
    सादर

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    1. धन्यवाद अनीता जी.
      राष्ट्रपिता की पहुँच सिर्फ भारतीयों के दिल तक होती है लेकिन फ़ादर ऑफ़ इंडिया की पहुँच भारतीयों की जेबों से लेकर अमेरिकनों की जेबों तक होती है.
      अब होशियार लोग तो इन दोनों में से फ़ादर ऑफ़ इंडिया को ही चुनेंगे.

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  10. गोपेश भाई, गांधी जी अमर हैं। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। वे ही हमारे राष्टपिता थे, हैं और रहेंगे। लेकिन आज की वर्तमान स्थिती देखते हुए दिल को छुती बहुत ही सुंदर रचना।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति जी.
      आपके और हमारे विचार अब लुप्त होने की कगार पर हैं. नए फ़ादर ऑफ़ इंडिया को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिल चुकी है.

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