पुलिस एनकाउंटर ???????????
हैदराबाद में दिशा के बलात्कार और उसकी हत्या के चारों आरोपी पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए फिर उन सभी को कल रात के तीन बजे मौक़ा-ए-वारदात पर अपराध की घटना को रिेक्रियेट करने के लिए ले जाया गया, जैसे ही इस प्रक्रिया के लिए अभियुक्तों की हथकड़ियाँ खोली गईं, वो मौक़ा पाकर भाग निकले. हमारी तेलंगाना की जांबाज़ पुलिस ने उन चारों भाग रहे आरोपियों को 10 से 20 फ़ुट की दूरी से मार गिराया.
आज देश भर में तेलंगाना पुलिस की जय-जयकार हो रही है. मृत दिशा के परिवार वाले इन वहशी दरिंदों की ऐसी मौत पर संतोष व्यक्त कर रहे हैं. सभी राजनीतिक दल भी इस पुलिस एनकाउंटर का स्वागत कर रहे हैं. उमा भारती ख़ुश हैं, मायावती ख़ुश हैं, बरखा रानी ख़ुश हैं और आम नागरिक तो बहुत ही ज़्यादा ख़ुश हैं.
लेकिन मेरी दृष्टि में तेलंगाना पुलिस का यह कृत्य उसके निकम्मेपन का द्योतक है. अपराध की घटना के रिक्रिएशन के समय यह तो तय है कि सभी आरोपी निहत्थे होंगे और चारों तरफ़ से पुलिसकर्मी उन्हें घेरे होंगे. ऐसी स्थिति में अगर वो भागे तो क्या उनमें से एक को भी ज़िन्दा नहीं पकड़ा जा सकता था? और अगर फ़रार होने की कोशिश में उनके गोली लग भी जाती तो क्या यह ज़रूरी था कि वह उन सब के लिए प्राण-घातक ही सिद्ध होती?
इन सवालों को देर-सवेर उठाया ज़रूर जाएगा, मैं ज़रा जल्दी ही इन सवालों को उठा रहा हूँ. लेकिन इन सवालों पर विचार-विमर्श करना बहुत ज़रूरी है. फ़ेक-एनकाउंटर्स के इतिहास में इस से ज़्यादा लचर दलील वाला एनकाउंटर मैंने तो आज तक न तो कभी देखा और न ही कभी सुना.
वैसे मरने वाले चारों आरोपियों के मारे जाने पर कौन आंसू बहाएगा? मैं भी उनके इस अंजाम से दुखी नहीं हूँ. लेकिन उन्हें ख़त्म किए जाने का तरीका मुझे क़तई स्वीकार्य नहीं है? मेरे दिमाग में चंद सवालात और उठ रहे हैं-
1. 'यह कैसे सिद्ध हो गया कि ये चार आरोपी ही असली मुजरिम थे?
2. क्या कोई और इस जघन्य कृत्य के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकता था? 3. अब चूंकि ये चारों मारे जा चुके हैं तो इनके साथ और कोई था या नहीं, यह कैसे पता चलेगा?
4. पुलिस कहेगी कि ये चारों इकबाल-ए-जुर्म कर चुके थे. इस पर सवाल उठाया जा सकता है कि क्या पुलिस अपने डंडे के जोर पर आरोपियों से अक्सर इकबाल-ए-जुर्म नहीं करवा लेती है?
5. ऐसे एनकाउंटर आसाराम, कुलदीप सेंगर या चिन्मयानन्द जैसे बलवानों के विरुद्ध क्यों नहीं होते?
2. क्या कोई और इस जघन्य कृत्य के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकता था? 3. अब चूंकि ये चारों मारे जा चुके हैं तो इनके साथ और कोई था या नहीं, यह कैसे पता चलेगा?
4. पुलिस कहेगी कि ये चारों इकबाल-ए-जुर्म कर चुके थे. इस पर सवाल उठाया जा सकता है कि क्या पुलिस अपने डंडे के जोर पर आरोपियों से अक्सर इकबाल-ए-जुर्म नहीं करवा लेती है?
5. ऐसे एनकाउंटर आसाराम, कुलदीप सेंगर या चिन्मयानन्द जैसे बलवानों के विरुद्ध क्यों नहीं होते?
हमको भावना के रेले में बहना नहीं चाहिए. कैसी भी स्थिति हो, पुलिस को क़ानून को अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए. जया बच्चन ने संसद में बलात्कार के अपराधियों को भीड़ के हवाले किए जाने का सुझाव दिया था. हैदराबाद में पुलिस द्वारा कुछ-कुछ मॉब-लिंचिंग जैसा ही किया गया है. मैं झूठ के इस पुलिंदे की घोर भर्त्सना करता हूँ.
देश की दिशा बदल रही है हर चीज बदलेगी। आदत डालिये।
जवाब देंहटाएंहम नहीं सुधरेंगे. वारंगल में एक विवादस्पद एनकाउंटर कर चुका पुलिस कमिश्नर कमान संभालता है और पहले से पकडे गए सभी आरोपी एनकाउंटर में मारे जाते हैं, कोई भी घायल नहीं होता. ऐसी गप्प तो हम 5-6 साल की उम्र में भी नहीं सुनाते थे.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-१२-२०१९ ) को "पुलिस एनकाउंटर ?"(चर्चा अंक-३५४२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
'पुलिस एनकाउंटर' (चर्चा अंक - 3542) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.
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