शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

संशोधित दोहे

 कबीर -

पानी केरा बुलबुला, अस मानस की जात,
देखत ही छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात.
संशोधित दोहा
पानी केरा बुलबुला, अस भक्तन की जात,
प्रभु हारे, छुप जाएंगे, ज्यों तारा परभात.
रहीम -
बड़े बड़ाई नहिं करें, बड़े न बोलें बोल,
हीरा मुख ते कब कहे, लाख टका मेरो मोल.
संशोधित दोहा
बड़े तभी तक हैं बड़े, खुले न जब तक पोल,
पोल खुले तो फिर बिकें, दो कौड़ी के मोल.
एक बार फिर कबीर -
माली आवत देखि के, कलियाँ करीं पुकारि,
फूलन-फूलन चुन लिए, काल्हि हमारी बारि.
चुनाव की वेला -
नेता आवत देखि के, वोटर करी पुकार,
पांच साल सुधि भूलि के, अब लौटा मक्कार.

अंत में एक बार फिर रहीम -
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गयी सुरग-पताल,
आप तो कहि के घुस गयी, जूता खाय कपाल,
संशोधित दोहा -
अर्नब जिह्वा बावरी, धन बटोर कर लाय,
गाली के अनुपात में, टीआरपी बढ़ि जाय.

10 टिप्‍पणियां:

  1. आज के समय पर सटीक बिठाये है आपने दोहों को

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    1. मेरे दोहों के उदार आकलन के लिए धन्यवाद कविता जी.

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१०-१०-२०२०) को 'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक-३८५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. 'सबके साथ विकास' (चर्चा अंक - 3850) में मेरे दोहे सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद अनीता.

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  3. उत्तर
    1. मेरी गुस्ताख़ी के उदार आकलन के लिए धन्यवाद बलबीर सिंह राणा 'अडिग' !

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  4. वर्तमान संदर्भ में भावपूर्ण व सटीक बिठाए गए शब्दविन्यास

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  5. उदार आकलन के लिए धन्यवाद सधु चन्द्र जी.

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