मंगलवार, 8 मार्च 2022

स्वयंसिद्धा

बेटी हूँ, पत्नी हूँ, माँ हूँ,
यह मेरी पहचान नहीं है.
कठपुतली सा कोई नचाए ,
क्या मेरा कुछ मान नहीं है?
उड़ने की है कब से चाहत,
पंख कटे, संज्ञान नहीं है,
पिंजड़े की मैना बन रहना,
यह मेरा अरमान नहीं है.
अपने पौरुष पर गर्वित हो,
पर इसका भी ज्ञान नहीं है,
किसी अहल्या जैसी बेबस,
अब उसकी संतान नहीं है.
रावणअसुर-मर्दिनी सीता,
लंका पर अभियान करेगी.
अग्नि-परीक्षा के पोषक का,
साहस धर अपमान करेगी.
नहीं द्रौपदी चीर हरण पर,
किसी मदद की आस करेगी.
स्वयं दुशासन-दुर्योधन का,
असि से शर-संधान करेगी.
कृपा-दृष्टि को क्यूँ कर तरसूँ?
भिक्षा में सम्मान नहीं है,
जब तक ख़ुद को सिद्ध न कर लूं,
पल भर का विश्राम नहीं है.

14 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! युग के साथ बदलते नारी स्वरूप का सशक्त चित्रण।🙏🙏🙏

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    1. मित्र, तुम्हारी कविता पढ़ कर ही अपनी पुरानी कविता में कुछ पंक्तियाँ जोड़ने का ख़याल आया है इसके लिए धन्यवाद देना तो तुम्हें बनता है.

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  2. आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (09-03-2022) को चर्चा मंच       "नारी  का  सम्मान"   (चर्चा अंक-4364)     पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'   

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    1. 'नारी का सम्मान' (चर्चा अंक - 4364) में मेरी कविता को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !

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  3. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति आदरनीय गोपेश जी! अपने चिरपरिचित अंदाज से भिन्न अंदाज की सार्थक रचना।यदि मानवी को सम्पूर्ण मानव बनकर जीने की इच्छा हो,तो युग नारियों द्वारा की गई गलतियों से बचकर अपने अस्तित्व को तराशना होगा। आज की द्रोपदी को किसी गोविंद की प्रतीक्षा नहीं।वह अपनी रक्षा करना जानती है।

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    1. मेरी कविता की प्रशंसा के लिए धन्यवाद रेणुबाला.
      वैसे तुम्हारे ये विचार किसी भी शोषित-दमित में विद्रोह की भावना का संचार कर उसे स्वयं-सिद्ध अथवा स्वयं-सिद्धा बना सकते हैं.

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  4. गोपेश भाई, सहीं कहा आपने कि आज की नारी सशक्त है। और जो नहीं है उन्हें भी सशक्त बनना होगा तभी वो अपनी रक्षा कर पायेगी। क्योंकि अब कोई कान्हा उनकी रक्षा के लिए नहीं आनेवाला। सुंदर प्रस्तुति।

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    1. मेरी कविता की प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति. महिषासुर मर्दिनी की पूजा करने वाले देश में स्त्री को उपभोग की वस्तु समझने वालों को सबक़ तो कोई स्त्री ही रणचंडी बन कर सिखा सकती है.

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  5. आज की नारी की शक्ति और सार्थकता को परिभाषित करती आपकी लेखनी वंदनीय है । आपने सही कहा कि आज की नारी को किसी के सहारे की जरूरत नहीं है ।
    महिला दिवस पर आपने स्त्री को उसकी शक्ति का अहसास कराया आपको नमन करती हूं।

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    1. जिज्ञासा, अल्लामा इक़बाल ने यह शेर शायद इन स्वयं-सिद्धाओं के लिए ही कहा होगा -
      ख़ुदी को कर बुलंद इतना, कि हर तकदीर से पहले,
      ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे, बता, तेरी रज़ा क्या है.

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  6. अत्यंत सशक्त सृजन। काश! विकृत दृष्टि वाले को भी शक्ति का ये रूप दिखाई दे जाता।

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  7. मेरी कविता की प्रशंसा के लिए धन्यवाद अमृता तन्मय !
    जहाँ पुरुषों की विकृत मानसिकता, स्त्रियों की दयनीय स्थिति के लिए ज़िम्मेदार है, वहां ख़ुद स्त्रियों की पुरुष की छाया बन कर रहने की मानसिकता भी इसके लिए उत्तरदायी है.
    आत्म-बल के भरोसे ही स्त्री स्वयं अपना और समस्त स्त्री-जाति का उत्थान-उद्धार कर सकती है.

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