सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

फिर से बदलो मुन्ना भाई




फिर से बदलो मुन्ना भाई -
सच का दामन जब से थामा,
मुन्ना पानी भरता है.
जिसका खौफ़ ज़माने को था,
साए से भी डरता है.
मेहनत कर के भी मुफ़लिस है,
निस-दिन फाके करता है.
हसरत लिए मकानों की पर,
किसी सड़क पर मरता है.
गांधीगिरी छोड़ कर मुन्ना,
बेक़सूर को मारेगा.
श्राद्ध, अहिंसा का कर के वो,
अपना कुनबा तारेगा.
क्या अफ़सर, क्या नेता-मंत्री
उसके पीछे भागेगा.
दुःख की बदली छट जाएगी,
भाग्य-सूर्य फिर जागेगा.

2 टिप्‍पणियां:

  1. आज क्या तिरछी नज़र इसी शीर्षक से हमें रहस्य और कुतूहल में बनाये रखेगी क्योंकि रचना के स्थान पर केवल ख़ाली स्थान !

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  2. क्षमा चाहता हूँ रवीन्द्र सिंह यादव जी. कविता दुबारा पोस्ट की है. मुझे उम्मीद है कि अब आप तक मेरी कविता पहुँच गयी होगी. आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है.

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