म·
चुनाव के समय महाकवि दिनकर से थोड़ा हटकर –
दो राह, समय के रथ का, घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है.
अब नए सिरे से नए चोर, ठग, चुनकर वह,
इक नया झुनझुना बजा-बजा,
दिल को अपने बहलाती है.
धोखा खाएगी फिर से वह,
इस सच को क्यों वह,
जानबूझ झुठलाती है?
ख़ुद पैर कुल्हाड़ी मारें, उसकी संतानें,
भारत माता की देख, फटे तब छाती है,
फिर से आकर नादिर कोई,
मेरी अस्मत को लूटेगा,
यह सोच के दिल्ली, बार-बार,
दिल ही दिल में, थर्राती है.
दो राह, समय के रथ का, घर्घर नाद सुनो,
खुद लुटने, पिटने, मिटने, जनता आती है,
खुद क़बर खोदने, अपनी, जनता आती है,
ख़ुदकुशी दुबारा करने, जनता आती है. .
चुनाव के समय महाकवि दिनकर से थोड़ा हटकर –
दो राह, समय के रथ का, घर्घर नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है.
अब नए सिरे से नए चोर, ठग, चुनकर वह,
इक नया झुनझुना बजा-बजा,
दिल को अपने बहलाती है.
धोखा खाएगी फिर से वह,
इस सच को क्यों वह,
जानबूझ झुठलाती है?
ख़ुद पैर कुल्हाड़ी मारें, उसकी संतानें,
भारत माता की देख, फटे तब छाती है,
फिर से आकर नादिर कोई,
मेरी अस्मत को लूटेगा,
यह सोच के दिल्ली, बार-बार,
दिल ही दिल में, थर्राती है.
दो राह, समय के रथ का, घर्घर नाद सुनो,
खुद लुटने, पिटने, मिटने, जनता आती है,
खुद क़बर खोदने, अपनी, जनता आती है,
ख़ुदकुशी दुबारा करने, जनता आती है. .
बहुत ख़ूब ! नमन आपकी को। परिवेश का ख़ाका उभारकर समाज को आइना दिखाती धारदार प्रस्तुति। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
जवाब देंहटाएंवाक्यांश नमन आपकी लेखनी को है। कृपया सुधारकर पढ़िएगा। धन्यवाद।
हटाएंधन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. प्रोफ़ेसर सुशील जोशी और आपने गलती पकड़कर मुझे सचेत कर दिया है. अब मैंने संशोधन कर दिया है.
हटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्व मोहन जी. महाकवि दिनकर मेरे सबसे प्रिय कवि हैं और 'सिंहासन खाली करो' मेरी मन-पसंद कविता है किन्तु उसके माध्यम से मैं भारतीय राजनीति की विकृतियों को दर्शाना चाहता था इसलिए इस कालजयी रचना के साथ छेड़-छाड़ करने का मैंने ऐसा दुस्साहस किया है.
हटाएंसुन्दर। दो दो बार कापी पेस्ट कर दिया आपने ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील, शायद तुम्हारी तारीफ़ दो बार प्राप्त करने की इच्छा के कारण ऐसा हो गया था. अब इसे सुधार दिया है.
हटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. धोखा देते नेता और धोखा खाती जनता, दोनों ही, इस अराजकता के लिए, इस अनाचार के लिए दोषी हैं.
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन विक्रम साराभाई और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हर्षवर्धन जी. 'ब्लॉग बुलेटिन' से जुड़ना मेरे लिए हमेशा सम्मान का विषय होता है. इसके माध्यम से मेरी रचनाएँ जन-जन तक पहुँच पाती हैं.
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 01-01-2018 को प्रकाशनार्थ 899 वें अंक ( नव वर्ष विशेषांक ) में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4:00 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक चर्चा हेतु उपलब्ध हो जायेगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी. 'पांच लिंकों का आनंद' के माध्यम से मेरी रचना सुधी पाठकों तक पहुंचेगी, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ. नव-वर्ष आप सबके लिए मंगलमय हो.
हटाएंतीखा व्यंग
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें.
तीखा व्यंग
जवाब देंहटाएंनव वर्ष की शुभकामनायें.
धन्यवाद राकेश सिंह जी. आप सबको भी नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.
हटाएंधारदार व्यंग.....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
धन्यवाद सुधाजी. व्यंग वही धारदार तलवार है जिस से हम ख़ुद पर ही वार करके खुश हो लेते हैं.
हटाएं