बुधवार, 5 सितंबर 2018

गुरुवे नमः


'गुरुवे नमः'
की सनातन नीति को को बदलकर सभी सरकारों की बेरहम नीति -
गुरु बे फुटः! (अबे गुरु ! फूट ले !)

मेरे सभी शिक्षक साथियों को शिक्षक दिवस की सांत्वना !

और साथ में अगस्त, 1987 में शिक्षक-हड़ताल के दौरान लिखी गयी मेरी एक कविता -

वन में कुटिया छानी होगी, दो कमरे भी मिल न सकेंगे,
सत्ता-भत्ता, दूध-मलाई, सपनों में भी मिल न सकेंगे.
ढाई आखर कभी प्रेम के, सुनने को भी मिल न सकेंगे,
हनुमत् बनकर करो गुज़ारा, बीबी,बच्चे, मिल न सकेंगे.

वेतन-दर में वृद्धि, प्रमोशन, युगों-युगों तक मिल न सकेंगे.
नभ में लटके हैं त्रिशंकु से, टंगे रहेंगे, हिल न सकेंगे.
पहन लंगोटी करें गुज़ारा, कपड़े भी अब सिल न सकेंगे,
टूट गए ये फूल डाल से, जीवन में अब खिल न सकेंगे.

जो रस था, वह निचुड़ गया है, अब हड्डी है, मांस नहीं है,
सालों भर हड़ताल करो पर, शासक का रिस्पान्स नहीं है.
शिलाखण्ड हो गए गुरूजी, अब कोई रोमांस नहीं है,
किसी राम की चरण-धूलि से, तरने का भी चांस नहीं है.

26 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ब...सर आज हम निःशब्द हैं आपकी रचना,
    पढ़कर। एक शिक्षक से बेहतर एक शिक्षक का दर्द कौन उकेर सकता है।
    शिक्षक दिवस पर औपचारिक नहीं पूरे मन से
    मेरा सादर नमन स्वीकार करें सर।🙏
    आज हम भी लिखे है "शिक्षक" आप के विचार सादर आमंत्रित हैं मेरी पोस्ट पर।

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    1. इतनी ज़्यादा तारीफ़? ज़्यादा ख़ुशी से उछलूंगा तो गिरकर चोट लगने का ख़तरा हो जाएगा. श्वेता जी, विश्वविद्यालय का शिक्षक सुविधा-संपन्न माना जाता है पर 36 साल के अपने कार्य-काल में मैंने उसे हमेशा हाशिये पर ही पड़ा देखा है. शादी के बाज़ार में नायब तहसीलदार, दरोगा, जूनियर इंजीनियर तो छोड़िये पेशकार और इनकम टैक्स का बाबू भी हमसे ऊपर रक्खा जाता है. नौकरी के 25 साल मैंने 2 कमरे के मकान में बिताए हैं. खैर, ये तो चलता ही रहेगा. अब तो हर शिक्षक यही कहता होगा - 'अगले जनम, मोहे शिक्षक न कीजो.'

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    2. अपनी पोस्ट का लिंक भेजिए श्वेता जी.

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    3. https://swetamannkepaankhi.blogspot.com/2018/09/blog-post_5.html?m=1

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  2. ना सर अगले जनम मोहे शिक्षक ही कीजो। कुछ भी है फिर कुछ तो है। आप जैसे शिक्षक भी हैं जो सही मायने के एक शिक्षक का मोरल डाउन नहीं होने देते हैं। बाकी तो ओखली में सभी के सर होते है। मेरी ओर से आप जैसे गुरुओं को नमन। मैं भी लिखने की सोच रहा हूँ बाकि बचे गुरु घंटालों पर अभी कुछ आदतन ;)

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    1. सुशील बाबू, तुमने तो देखा था कि 1987 की शिक्षक हड़ताल के दौरान ही मेरा कवि-रूप जागृत हुआ था. पीड़ा और कुंठा हमको-तुमको कवि बना देती हैं. तुम तो हमेशा बहुत साहस के साथ खरी-खरी सुनाते रहे हो. तुम मुझसे उम्र में बहुत छोटे हो पर अभिव्यक्ति के क्षेत्र में तुम मुझसे सीनियर हो. शिक्षक दिवस पर तुमको हार्दिक बधाई !

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  3. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 6 सितम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1147 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  4. धन्यवाद रवींद्र सिंह यादव जी. 'पांच लिंकों का आनंद' तो हम सबके लिए आनंद का श्रोत है. कल के अंक को देखने की उत्सुकता है.

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  5. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन शिक्षक दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  6. धन्यवाद हर्षवर्धन जी. 'ब्लॉग बुलेटिन' के माध्यम से हम शिक्षकों की कठिनाइयाँ और कुंठाएं जन-जन तक पहुंचेंगी तो हो सकता है कि सोए हुक्मरान कभी जाग जाएं.

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  7. बहुत लाजवाब व्यंग है ... सटीक सामयिक और सार्थक ...
    आज के बदलते युग में यूँ तो सब कुछ बदल रहा है पर टीचर का तो हाल ख़राब ही है ... कोई दिशा दशा नहीं लगती ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर नसवा जी. कितने दुःख की बात है कि शिक्षकों की दुर्दशा पर 31 साल पहले लिखी गयी मेरी कविता आज भी सामयिक है.

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  8. वाह sir
    सुंदर सटीक लिखा हैं अपने।वो भी उस वक़्त का हैं जब हम लोगो ने कलम देखी भी नही थी।
    शत शत नमन।

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    1. धन्यवाद ज़फ़र भाई. भगवान से प्रार्थना है तुम नौजवानों को हम अध्यापकों जैसे दुर्दिन न देखने पड़ें. आज बच्चे सेटल हो जाने के बाद हाथ में चार पैसे हैं तो घूमने-फिरने, खाने-पीने को डॉक्टर मना करता है. मैंने तय कर लिया था कि अगर मेरा बस चला तो अपनी बेटियों की शादी किसी अध्यापक से नहीं करूंगा. और ख़ुशी की बात है कि मेरी दोनों बेटियां में से और मेरे दोनों दामाद, मुदर्रिसी में कोई नहीं हैं.

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  9. एक शिक्षक का दर्द बहुत ही खूबसूरती के साथ अभिव्यक्त किया है आपने ...। तब भी यही हालत थी ,आज भी वही ।

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    1. धन्यवाद शुभा जी. धीरे-धीरे शिक्षक वर्ग की गणना लुप्तप्राय प्रजातियों में की जाने लगेगी. शिक्षा-पद्धति कराह रही है और शिक्षक सुबक रहा है किन्तु इस से भी अधिक दुर्दशा विद्यार्थियों की है क्योंकि उन्हें अधूरे मन से कच्ची-पक्की विद्या परोसी जा रही है.

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  10. निशब्द शिक्षक जो देश के भविष्य का निर्माता है उनकी पीड़ा को व्यक्त किया आपने बहुत ही सार्थक रचना आदरणीय

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    1. धन्यवाद अनुराधा जी. हम पुरानी पीढ़ी के शिक्षक तो तब भी बेहतर हालात में थे, अब तो शिक्षण-संस्थाओं की और शिक्षकों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. और दावा किया जा रहा कि देश तरक्क़ी कर रहा है.

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  11. सदी सनातन गुरु महिमा की,
    भ्रम में हो! कभी धूसरित होगी.
    रचित भी सृष्टि हो जो पुनश्च!
    गुरु महिमा ही मुखरित होगी....... समस्त गुरुओं को सादर नमन!

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    1. हे कवि ! आपके मुंह में घी-शक्कर. गुरुजन की दुर्दशा-विषयक मेरी भविष्यवाणी ग़लत निकले तो सबसे अधिक प्रसन्नता मुझको ही होगी.

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  12. आदरणीय गोपेश जासवाल जी, आपकी पोस्ट पढ़कर यूँ लगा जैसे मेरे मन की सारी बातें ही लिख दी हैं आपने। हमारे विद्वान भाई बहनों की टिप्पणियों के जवाब जो आपने दिए हैं उनमें भी एक निष्ठावान शिक्षक की पीड़ा और व्यथा स्पष्ट दिख रही है। एक ईमानदार शिक्षक अपने लिए जो सम्मान और स्थान चाहता है वह उसे नहीं मिलने पर भी उसे इतना दुःख नहीं होता जितना तब होता है जब झूठे और मक्कार स्कूल प्रशासक शिक्षक दिवस के समारोह में शिक्षक के गुणगान करते हैं । सारे वर्षभर वे शिक्षक से एक नौकर की तरह पेश आते हैं। स्कूल के अच्छे रिजल्ट का सारा श्रेय प्रिंसिपल और स्कूल के प्रशासन को मिलता है। बच्चे फेल हों तो ठीकरा शिक्षक के सर पर फोड़ दिया जाता है। ऐसी शिक्षिका जिसने अपने कार्यकाल में कभी कुछ पढ़ाया ही नहीं,सब जानते हैं कि वह कक्षा में टाइमपास कराती थी,ऐसी शिक्षिका को प्रिंसिपल बना दिया जाता है। हमारे जैसे शिक्षक, जिनकी निष्ठा व्यक्ति के साथ नहीं, अपने काम और अपने विद्यार्थियों से जुड़ी होती है, उन पर दोहरी मार पड़ती है। इन सब बातों को कभी विस्तार से लिखूँगी। कुछ समय पहले अपनी पीड़ा और कुंठा को व्यक्त करते हुए एक कविता लिखी थी पर पोस्ट नहीं कर पाई। शिक्षा के क्षेत्र में अपने कटु अनुभवों को लिखकर सिलसिलेवार पोस्ट करने की योजना है, देखें यह कब पूरी होती है।

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    1. धन्यवाद मीना जी. अल्मोड़ा में हमारे घर के पास सरकारी पाठशाला थी. वहां की अध्यापिकाओं से हम दोनों मियां-बीबी के मधुर सम्बन्ध थे. मेरी माँ उस पाठशाला में प्रतिवर्ष पिताजी की स्मृति में 10-12 बच्चों को कपड़े, बैग, जूते, किताब-कॉपी आदि भेंट करती थीं. पाठशाला की अध्यापिकाएं चपरासी, क्लर्क से लेकर कुक तक के सारे काम करती थीं. प्राइवेट स्कूलों में तो 1000-1200 में शिक्षक रक्खे जाते हैं. आप अपनी पीड़ा, अपनी शिकायतें दिल में ही मत रखिए, उन्हें शब्दों में व्यक्त करके हमारे साथ साझा कीजिए. गुरुजन की दीन दशा तो देश को दरिद्र बनाए रखने का एक प्रमुख कारण है किन्तु हमारे हुक्मरानों को इस बात का एहसास कहाँ होने वाला है?

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  13. सर आज आपकी लेखनी से शिक्षकों के दर्द को बखूबी महसूस किया और जो काफी अलग सा अहसास है, ये क्योंकि गाहे बगाहे यही सुनने में आता है शिक्षा व्यवसाय हो गई और शिक्षक व्यवसायी, सुनने में आता है स्कूल कालेज में औपचारिक कोर्स पुरे कर टीचर ट्यूशन पर जौर देते हैं जगह जगह मंहगे कोचिंग सेंटर जगह जगह विज्ञापन 8वीं 9वीं में फैल आयें गारन्टेड सीधा बोर्ड में दाखिला, कोटा जैसी जगह में शिक्षा व्वसायिक हब... ये सब मन में एक दुराग्रह सा अंकुरित था, पर सच को देखने की कोशिश भी नही की कि आज देश में शिक्षकों के प्रति बहुत दारुण नीति है उनको इतना कम वेतन मिलता है कि उन्हे अपने परिवार पालन के लिये ये सब करना पड़ता है कमोबेस और वे चाह कर भी निष्ठा के साथ विद्या दान नही कर पाते।
    बहुत बहुत आभार आपने सत्य को कम शब्दों में बखूबी उजागर किया, मेरी पिछली धारणाएं बदल गई और शिक्षकों के प्रति कम होते सम्मान को फिर स्थापित कर गई।
    मेरे बेबाक उद्गारों से कोई भी आहत हुवा हो या किसी भी वर्ग को क्लेश उत्पन्न हुवा हो तो क्षमा प्रार्थी हूं।
    सादर।

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    1. धन्यवाद कुसुम जी. यह सही है भ्रष्टाचार से शिक्षक वर्ग भी मुक्त नहीं है और धन-संचय के लिए अनैतिक कार्य-कलापों में वह भी संलग्न है किन्तु इसके लिए मुख्य रूप से समाज में शिक्षकों के साथ सौतेला व्यवहार ज़िम्मेदार है. योग्यता का शिक्षण-संस्थाओं में सम्मान नहीं है. मैं लखनऊ विश्वविद्यालय का गोल्ड मेडलिस्ट था, 5 साल से वहां लेक्चरर था, फिर मेरी पीएच. डी. का वाइवा दो साल रोक कर मेरी जगह प्रो-वाईस चांसलर का हकला, थर्ड डिवीज़नर बेटा नियुक्त कर दिया गया. फिर कुछ दिन बेरोज़गार रहकर, 5 साल जूनियर होकर मुझे पहाड़ में दुबारा नौकरी मिली. पहाड़ पर मैंने और मेरे परिवार ने क्या-क्या पापड़ बेले, इसका ट्रेलर मैं यदा-कदा अपने ब्लॉग पर देता रहता हूँ. विश्वविद्यालयों में तो अब पढ़ने-पढ़ाने का माहौल रहा ही नहीं है. गुंडे छात्र और गुंडे अध्यापकों का ही वहां आम तौर पर बोल बाला होता है. शिक्षा जाए, भाड़ में, यहाँ परवाह किसको है?

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  14. बहुत सुंदर| शिक्षक दिवस की शुभकामनायें |

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    1. धन्यवाद सुमन जी. मुझ अवकाश-प्राप्त शिक्षक का आपको शुभाशीर्वाद !

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