चोरी
न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
चूल्हे
पे क्या उसूल पकाएँगे शाम को
अदम
गौंडवी
प्रगति-मार्ग
–
चोरी
न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
कुर्सी-तलक
यही हमें पहुँचाएं सीढ़ियाँ
इक
बार मौक़ा जो मिले इतना बटोर लो
अम्बानी-अडानी
सी जियें सात पीढ़ियाँ
यहाँ हर शख्स
बस ये चाहता है
मिलाएं सब घड़ी
मेरी घड़ी से
दानिश ज़ैदी
जनतंत्र के
संरक्षकों का सपना –
ये है जनतन्त्र पर दिल चाहता है
मिलाएं सब घड़ी
मेरी घड़ी से
इबादत ही मेरी
काफ़ी नहीं है
मुहब्बत भी करें मेरी छड़ी से
वाह !
जवाब देंहटाएंमुहब्बत भी करें मेरी छड़ी से !!!
प्रशंसा के लिए धन्यवाद मीना जी.
हटाएंलूटने-पीटने वाले से मुहब्बत करने का अपना मज़ा है.
'पांच लिंकों का आनंद' के 2-11-20 के अंक में मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद कुलदीप ठाकुर जी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मित्र !
हटाएंउम्दा संग्रह..
जवाब देंहटाएंमेरी काव्यात्मक गुस्ताखी की प्रशंसा के लिए धन्यवाद विभा जी.
हटाएंलाजवाब सृजन ...
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद मीना जी.
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार 3-11-2020 ) को "बचा लो पर्यावरण" (चर्चा अंक- 3874 ) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
'बचा लो पर्यावरण' (चर्चा अंक - 3874) में प्रदूषित राजनीतिक पर्यावरण पर लिखी गयी मेरी गुस्ताखी को सम्मिलित करने लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी.
हटाएंउम्दा प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अमृता तन्मय !
हटाएंकड़वी वास्तविकता के दर्शन कराती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति.
हटाएंजब भी मैं कोई अच्छी रचना पढता हूँ, मेरा खुराफाती दिमाग उसे फ़ौरन सियासती व्यंग्य का मोड़ देने की सोचने लगता है.