टंडन - हेलो
मेहता जी, मैं टंडन बोल रहा हूँ.
मेहता जी -
हाँ भाई, बोल टंडन, तू ने ऐसी कड़ाके की ठण्ड में सुबह सात बजे फ़ोन किया है तो ज़रूर कोई ख़ास बात
होगी. बता, क्या बात है?
टंडन - वो
अपने दीनानाथ जी हैं न, भूतपूर्व मंत्री और वर्तमान विधायक! उनका कल रात
देहांत हो गया.’
मेहता जी – क्या अनाप शनाप बक रहा है तू?
कल शाम को ही
तो मैंने उन्हें टीवी स्टार मनोरमा के फ्लैट से निकलते हुए देखा था.
टंडन - आप
क्या अदालत में इस बात की गवाही दोगे?
मेहता जी – मैं गवाही
क्यों देने लगा? मुझे क्या पागल कुत्ते ने काटा है?
टंडन – ठीक है, तो फिर आप भूल
जाइए कि कल आपने उन्हें किसके यहाँ जाते हुए और किसके यहाँ से निकलते हुए देखा था.
मेहता जी – लो भूल गया.
बल्कि मैं तो कहूँगा कि दीनानाथ जी को मैंने पिछले एक महीने से नहीं देखा है.
टंडन – अच्छा ये सब
छोड़िए. ये बताइए कि दीनानाथ जी के बंगले पर पहुंचना कब है. अब तो न्यूज़ चेनल्स पर
भी दीनानाथ जी ही छाए हुए हैं.
मेहताजी – यार ! श्रीमती जी तो आज
सुबह हरे धनिए की चटनी के साथ पालक के और गोभी के पकौड़े बनाकर खिलाने वाली थीं.
टंडन - मैं
स्कूटर से 5 मिनट में आपके घर पहुँच रहा हूँ और फिर अगले 10 मिनट में हम दोनों वहां से दीनानाथ जी के
बंगले के लिए निकलेंगे.
मेहता जी – मान्यवर ! इस
शोक की वेला में मेरे घर पर दस मिनट रुक कर आप क्या करेंगे?
टंडन – हुज़ूर ! मुझे
भी भाभी जी के हाथ के पालक के और गोभी पकौड़े बहुत अच्छे लगते हैं.’
(आधे घंटे के बाद)
मेहता जी – यार टंडन, यहाँ तो पूरा
शहर उमड़ा पड़ा है और प्रेस वाले भी मधुमक्खियों के छत्ते जैसे टूटे पड़ रहे हैं.
टंडन – गुरुदेव ! आप
की तो बहुत पहुँच है.
इस शोक की
वेला में किसी न्यूज़ चेनल वाले फ़ोटोग्राफ़र का कैमरा हमारी तरफ़ भी मुड़वा दो.
खुद का चेहरा
न्यूज़ चेनल पर देख लेंगे तो आप को दुआ देंगे.
मेहता जी – पापी ! तू कभी
सुधरेगा नहीं. ठहर, वो ‘वर्तमान न्यूज़’ का भाटिया दिखाई दे रहा है. उस से कहता हूँ कि वो हमको भी कवर कर ले.
टंडन - आप धन्य हैं
गुरुदेव ! आपकी कृपा से हम भी टीवी स्टार बन जाएँगे.
मेहता जी – बच्चे ! सिर्फ़ ‘धन्य हैं’ , कहने से काम नहीं चलेगा. अगर तेरा चेहरा ‘वर्तमान न्यूज़’ पर दिख गया तो तू अगले सन्डे हमको रम
पिलाएगा.
टंडन – ‘पक्का ! रम, वो भी तले हुए
काजुओं के साथ.’
मेहता जी – लो तुम्हारी
सती मनोरमा दिखाई पड़ गईं.
वाह ! कितना
बढ़िया रोती है !
टंडन – किस पार्लर का
कमाल है कि आंसुओं से इसका मेकअप ज़रा भी धुलता नहीं?
मेहता जी – श्रीमती
दीनानाथ को देखो. कैसे खा जाने वाली नज़रों से सती मनोरमा को देख रही हैं?
टंडन – श्रीमती दीनानाथ का घूरना तो बनता है.
संत दीनानाथ
ने अपना एक लक्ज़री फ्लैट और एक पेट्रोल पम्प जो इस सती के नाम कर दिया है.
मेहता जी – दीनानाथ जी के
सपूत कहीं नहीं दिखाई दे रहे.
टंडन – वो बेचारा रात
में अफ़ीम खाकर सुबह दस बजे तक उठता है. अपने पापा के अंतिम प्रस्थान करने से पहले
तो उठ ही जाएगा.
मेहता जी – यार टंडन, बड़ी ठण्ड है.
चाय की तलब लग रही है.
टंडन – ‘आप भी गुरुदेव
नमूना हो. भाभी जी ने पकौड़ों के साथ हमको चाय भी तो सर्व की थी पर आप मानोगे थोड़ी.
अब चुपके से
चलिए, नुक्कड़ वाले गोपाल के यहाँ की स्पेशल चाय पीते हैं.
मेहता जी – दीनानाथ जी के
बंगले के अन्दर ये शोर कैसा है? ज़रा जाकर पता करो.
(टंडन बंगले के अन्दर जाकर पता करता है)
टंडन – दीनानाथ जी के
सपूत जाग गए हैं और अब वो अपनी माँ तथा माँ समान मनोरमा जी से झगड़ा कर रहे हैं.
मेहता जी – ऐसी दुःख की
वेला में झगड़ा?
टंडन – ये कुर्सी के
लिए त्रिकोणात्मक संघर्ष है गुरुदेव !
मिलियन डॉलर
का सवाल है कि दिवंगत दीनानाथ जी की विधायक वाली सीट किसे मिलेगी?
पिनकची बेटे
को, ताड़का स्वरूपा पत्नी को, या फिर उनकी आम्रपाली जैसी प्रेमिका को?
मेहता जी – भई, हमको तो
मनोरमा पसंद है.
टंडन – वो तो शहर के
आधे नौजवानों की पसंद है. आप पके आम, इस स्वयंवर में कहाँ से आ टपके?
मेहताजी – नालायक कहीं
के ! अपने गुरु की टांग खींचते हो?
अच्छा, ये सब छोड़ो.
ये बताओ कि ये गुप्ता बिल्डर इतने दहाड़ मार मार कर क्यों रो रहा है?
टंडन – अपनी जनरल नॉलेज
अपडेट रक्खा करिए गुरुदेव !
गुप्ता ने
अपने होटल में जो पब्लिक पार्क की ज़मीन दबा ली थी, उसको होटल के नाम कराने के लिए उसने दीनानाथ
जी को बीस लाख रूपये एडवांस में दिए थे.
अब वो रूपये
डूब गए हैं तो क्या बेचारा रोएगा भी नहीं?
मेहता जी – चलो इंतज़ार की
घड़ियाँ समाप्त हुईं.
दीनानाथ जी की
साज-सज्जा पूरी हुई.
अब श्मशान घाट
के लिए चलना है.
टंडन – कौन कमबख्त खटारा स्वर्ग-विमान से जाए?
अपन स्कूटर से
ही चलते हैं.
हम थोड़ा पहले
पहुँच जाएंगे तो स्कूटर पार्क करने में सहूलियत होगी.
मेहता जी – चल भई, ये ज़िन्दगी
हमने तेरे नाम कर दी.
(पंद्रह मिनट बाद)
टंडन – अरे, ये तो रिवोली
आ गया. अब बताइए, श्मशान घाट के रास्ते में सिनेमा ! क्या प्लानिंग है इस शहर की?
मेहता जी – हाय ! इसमें
तो फ़िल्म ‘गंगा-जमुना’ लगी है.
टंडन -
गुरुदेव ! आप ये ‘हाय’ दीनानाथ जी के आकस्मिक निधन पर कर रहे हैं या
रिवोली में इस वक़्त फ़िल्म – ‘गंगा-जमुना’ लगाए जाने पर?
मेहता जी – ‘गंगा-जमुना’ मैं दस बार
देख चुका हूँ.
टंडन - और आज
उसे शायद आप ग्यारहवीं बार देखने वाले हैं.’
मेहता जी – अरे दुष्ट !
क्या तू मुझे दीनानाथ जी के समर्थकों से जूते पड़वाएगा?
टंडन – किसी को भी पता
नहीं चलेगा. हम लोग अपनी-अपनी मंकी कैप से अपना-अपना मुंह ढक लेंगे. हमको कोई पहचान ही नहीं पाएगा.
ये ग्यारह से
दो का शो है. लोगबाग श्मशान घाट से जब लौट रहे होंगे तो हम भी उस भीड़ में शामिल हो
जाएंगे.
पर फ़िल्म की
टिकट आपकी तरफ़ से होनी चाहिए.
मेहताजी – ‘गंगा-जमुना’ देखने के लिए तो मैं गंगा में या
जमुना में, किसी में भी डूबने
को तैयार हूँ.
तू तो मुझ से सिर्फ़ फ़िल्म की
टिकटें खरीदवाना चाहता है.
टंडन – लेकिन हमको यह
गुनाह सबकी नज़रों से बचाकर करना है.
मेहता जी – अगर दीनानाथ
जी का कोई और भक्त भी इस वक़्त इस सिनेमा हॉल में दिख गया तो?
टंडन – आप ने क्या वो
मसल नहीं सुनी? – ‘चोर चोर, मौसेरे भाई.’
जो हमको फ़िल्म
देखते हुए पकड़ेगा, क्या वो ख़ुद वहां भजन-कीर्तन करने आया होगा?
मेहता जी – ‘तुम अपना स्कूटर
स्टैंड पर खड़ा करो. मैं फ़िल्म की टिकट लेकर आता हूँ.
वैसे ऐसा पाप
करते हुए मुझे बहुत शर्म आ रही है.
टंडन – आप क्यों
शर्मिंदा होते हैं गुरुदेव?
इसमें सारा
कुसूर तो दिलीप कुमार का है.
हमने उनसे
थोड़ी कहा था कि वो इस वक़्त अपनी सबसे अच्छी फ़िल्म श्मशान घाट के रास्ते में पड़ने
वाले इस सिनेमा हॉल में लगवा लें.
सबका अपना अपना तरीका
जवाब देंहटाएंश्मशान घाट में बैठ दुनियाभर की इधर-उधर की बातों से बेहतर है
गंगा-जनुमा फिल्म देख भावभीनी श्रद्धांजलि देना
एकदम सही!
हटाएंकविता जी, ख़ुद मैंने अपने छात्र-जीवन में, श्री लाल बहादुर शास्त्री को छोड़ कर किसी भी नेता के मरने पर जो भी छुट्टी मिली, उसका सदुपयोग, मैंने पिकनिक करने में या सिनेमा देखने में ही किया था.
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया दोस्त !
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद ओंकार जी.
हटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनुराधा जी.
हटाएंहर 8नसान मनोरंजन के अपने अपने तरीके खोज ही लेता है। सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया ज्योति !
हटाएंदिखावे वाले दुःख में चोरी-छुपे जश्न भी मनाया जा सकता है.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति भरा लेखन..
जवाब देंहटाएंमेरी व्यंग्य-कथा को सराहने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी.
जवाब देंहटाएंगोपेश जी , इस व्यंग कथा में आपने जो कडवा सच संजोया है वो हमारे आधे समाज का कडवा सत्य है | संभ्रांत लोगों की अंतिम यात्रा में ये असंवेदंनशीलता कुछ ज्यादा ही हो जाती है |
जवाब देंहटाएंरेणु जी, मेरी कहानी के नायक दीनानाथ जी जैसे तथाकथित सम्भ्रांत लोग ऐसी ही श्रद्धा के पात्र होने चाहिए.
हटाएंऐसे बगुला भगत धरती पर और समाज पर, बोझ होते हैं. इनके अंतिम संस्कार में समय गंवाने से बेहतर है कि मातमपुर्सी में शामिल हुए लोग 'गंगा-जमुना' जैसी कोई अच्छी फ़िल्म देखें.
सटीक व्यंग्य!
जवाब देंहटाएंकहानी के उदार आकलन के लिए धन्यवाद गजेन्द्र भट्ट 'हृदयेश' जी.
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