कितना जानते हैं आप और हम अपने गणतंत्र-दिवस को?
कोई पूछे कि पहली गणतंत्र दिवस परेड देश की राजधानी में कहां हुई थी, तो सबसे पहले उत्तर आएगा -'राजपथ'
नहीं ! दिल्ली में 26 जनवरी, 1950 को पहली गणतंत्र दिवस परेड, राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी.
इसी प्रकार गणतंत्र दिवस २६ जनवरी को
ही क्यों मनाया जाता है,
‘छब्बीस जनवरी का शुभ दिन, आ गया आज खुशियाँ लेकर,
जन-जन में फैला नवजीवन, खिल उठी धरा पुलकित होकर।'
प्रत्येक 26 जनवरी को हम अपने गणतंत्र दिवस की
जयंती मनाते हैं. आप सब सोच रहे होंगे कि यह कविता हमारे गणतंत्र दिवस के
उपलक्ष्य में गाई जाती होगी. पर नहीं, 26 जनवरी पर यह कविता हमारे गणतंत्र
दिवस के उपलक्ष्य में नहीं, बल्कि 1930 से लेकर 1947 तक हर छब्बीस जनवरी को हमारे
स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में गाई जाती थी.
हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में भी 26 जनवरी की तिथि का बहुत अधिक महत्त्व
है.
1920 में प्रारम्भ हुए असहयोग आंदोलन का राजनीतिक लक्ष्य
स्वराज्य प्राप्त करना था. 1922 के चौरीचौरा काण्ड के बाद असहयोग
आंदोलन वापस अवश्य ले लिया गया परंतु स्वराज्य प्राप्त करने के लक्ष्य को गांधीजी
और कांग्रेस ने ज्यों का त्यों बनाए रखा.
1927-28 में साइमन कमीशन का देशव्यापी
बहिष्कार अंग्रेज़ सरकार को क्षुब्ध कर गया था. उसका दमन चक्र अपने शिखर पर था.
लाला लाजपत राय जैसे महान नेता, ब्रिटिश शासन की क्रूरता की भेंट चढ़
गए थे.
सरकार ने साइमन कमीशन के विकल्प के रूप में कांग्रेस द्वारा
तैयार नेहरू रिपोर्ट की सिफ़ारिशों पर विचार किए बिना ही उन्हें खारिज कर दिया था.
इस बढ़ती हुई राजनीतिक कटुता के कारण सन् 1929 के आरम्भ में ही गांधीजी पूर्ण
स्वराज्य की प्राप्ति हेतु सविनय अवज्ञा आंदोलन करने का मन बना चुके थे.
सन् 1929 का कांग्रेस अधिवेशन लाहौर में होना
निश्चित हुआ था जिसमें कि अध्यक्ष पण्डित जवाहरलाल नेहरू को बनाया जाना था.
साइमन कमीशन की विफलता तथा सरकार द्वारा नेहरू रिपोर्ट को
खारिज किए जाने के बाद अब कांग्रेस स्वतंत्रता या कम से कम पूर्ण स्वराज्य के
लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध थी.
श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के कानपुर से प्रकाशित पत्र ‘प्रताप’ के 15 दिसम्बर, 1929 के अंक में हरिदत्त की कविता ‘लाहौर कांग्रेस’ प्रकाशित हुई थी ।
इस कविता में कवि ने कांग्रेसअधिवेशन में लिए
जाने वाले निर्णयों की ओर स्पष्ट संकेत किया था
‘भारत में गुल ख्लिाएगी लाहौर कांग्रेस,
परतंत्रता मिटाएगी, लाहौर कांग्रेस.
बलिदान जहाँ हो गए, यतीन्द्रनाथ वीर,
फिर क्यों न रंग लाएगी, लाहौर कांग्रेस.
खुशकिस्मती कि सद्र हुए मोती से
जवाहर,
सर ताज अब रखाएगी, लाहौर कांग्रेस.
इरविन का जाल खोल दिया पार्लामेन्ट
ने,
अब चाल में न आएगी, लाहौर कांग्रेस.
चलकर रगों में आ रहा, अपने वतन का खूँ,
मुर्दों को भी जिलाएगी, लाहौर कांग्रेस.
साइमन रिपोर्ट का न वहाँ इन्तज़ार हो,
बल अपना आज़माएगी, लाहौर कांग्रेस.
पूरी स्वतंत्रता लिए बिन, हम न रहेंगे,
ऐलान यह सुनाएगी, लाहौर कांग्रेस.
तैयार होके जाना ओ ! भारत के सपूतो,
हरिदत्त नाम पाएगी, लाहौर कांग्रेस.’
इस ऐतिहासिक घोषणा का हार्दिक स्वागत
किया गया.
ब्रिटिश सरकार ने लाहौर कांग्रेस
द्वारा पूर्ण स्वराज्य की मांग की पूरी तरह अनसुनी कर दी. कांग्रेस पहले ही चेतावनी दे चुकी थी
कि इस विषय में सरकार की निष्क्रियता पर वह 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाएगी.
जैसी कि आशंका थी, ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस की पूर्ण
स्वराज्य की मांग को और मांग पूरी न होने की स्थिति में स्वतंत्रता घोषित किए जाने
की चेतावनी को पूरी तरह से अनसुना कर दिया.
अब भारतीयों को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाने से कोई नहीं रोक
सकता था.
इस दिन कांग्रेस ने स्वतंत्रता दिवस मनाने का निश्चय किया
और सारे देश में देशभक्तों ने स्वतंत्रता दिवस मनाया.
प्रातः काल प्रभात फेरी निकाली गयीं.
श्यामलाल पार्षद जी का गीत ‘विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा’ गाते हुए बच्चे, नौजवान, यहाँ तक कि बुज़ुर्ग भी प्रभात
फेरियों में उत्साह पूर्वक सम्मिलित हुए.
आज़ादी से पहले भी तब से हम हर 26 जनवरी को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते
रहे.
15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी हमारे
लिए 26 जनवरी का महत्त्व कम नहीं हुआ और जब 1950 में हमको अपने देश को पूर्ण
संप्रभुता प्राप्त गणतंत्र घोषित करना था तो उसकी तिथि 26 जनवरी ही रक्खी गयी.
आप सबको गणतंत्र दिवस की बधाई.
बहुत सुन्दर जानकारी।
जवाब देंहटाएं72वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
आलेख की सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानप्रद आलेख!! आभार और 26 जनवरी की बधाई!!!
जवाब देंहटाएंतारीफ़ के लिए शुक्रिया दोस्त !
जवाब देंहटाएंवैसे मैं पुरानी डिश दुबारा परोस रहा हूँ.
और निकालो पोटली से :) हा हा शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंपोटली में तो अभी बहुत कुछ है दोस्त, पर तुम जैसे क़द्रदान बहुत कम हैं.
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (27-01-2021) को "गणतंत्रपर्व का हर्ष और विषाद" (चर्चा अंक-3959) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
'गणतंत्रपर्व का हर्ष और विषाद' (चर्चा अंक - 3959) में मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद डॉक्टर रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' !
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी दी सर आपने,आपकी प्रतिबद्धता और लेखन शैली मनमोहक है सदा से ही।
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी लेख।
सादर साधुवाद।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
ऐसी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद कुसुम जी.
हटाएंराष्ट्रीय-आन्दोलन के कुछ और प्रेरक प्रसंगों को मैं मित्रों के साथ साझा करना चाहूँगा.
इंतज़ार रहेगा आपके हर आलेख का।
हटाएंसादर।
ये जानकारी बार-बार दोहरानी आवश्यक है. याद करना - कराना बहुत ज़रुरी है. तभी तो कद्र करेंगी आने वाली पीढियां. वर्ना कौन याद रखता है ?
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया.
नूपुर जी, थोड़ा-बहुत भी ज्ञान हो तो उसको - दोनों हाथों से उलीचना ही चाहिए.
हटाएंहमारे राष्ट्रीय-आन्दोलन के अनछुए पहलुओं से अपने मित्रों को परिचित कराने की मेरी यह कोशिश जारी रहेगी.
बहुत ही सारगर्भित जानकारी भरा लेखन. साथ ही प्रस्तुत कविता जोश से परिपूर्ण है आज के दौर में भी ऐसे ओजस्वी कवियों की बहुत ही जरूरत है सादर..जिज्ञासा सिंह..
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा जी !
हटाएं31 दिसंबर, 1929 को लाहौर में रावी नदी के तट पर पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य की घोषणा और फिर 26 जनवरी, 1930 का पहले स्वतंत्रता-दिवस के रूप में मनाया जाना !
हमारे देश के इतिहस का यह एक गौरवशाली अध्याय है.
वाह!बहुत ही प्रभावशाली सृजन सर।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक जानकारी से भरपूर।
सादर
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद अनीता.
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञान वर्धक लेख आदरणीय गोपेश जी। बिटिया ने भी पढ़ा। कोटि आभार आपका🙏🙏
जवाब देंहटाएंइस आलेख की प्रशंसा के लिए धन्यवाद रेणु जी.
जवाब देंहटाएंमेरा मुख्य उद्देश्य बिटिया और उसके समवयस्कों के ज्ञान-वर्धन का ही था.