शनिवार, 17 अप्रैल 2021

नीम-करेले का जूस

 रहीम ने कहा है -

'खीरा मुख तें काटिए, मलियत नोन लगाय,
रहिमन कड़वे मुखन को, चहियत इही सजाय.'
मुझे लगता है कि भारत में मेरे जनम से सैकड़ों साल पहले से ही मेरी जान के दुश्मन मौजूद थे.
आज सुबह अपनी कॉलोनी के एक पार्क में टहलने गया तो देखा कि एक साहब वहां दो बड़े-बड़े कुत्तों को बिना कोई चेन बांधे घुमा रहे हैं. ऐसे सभी महानुभावों को टोकना मैं अपना फ़र्ज़ समझता हूँ. मैंने उन सज्जन से कहा कि अव्वल तो उन्हें अपने कुत्तों को पार्क में घुमाने के लिए लाना ही नहीं चाहिए और अगर उन्हें वहां घुमाना भी है तो कम से कम उन्हें चेन से बांधकर लाना चाहिए.
उन सज्जन ने मुझे आश्वस्त किया कि उनके कुत्ते बड़े सज्जन (उन्होंने तो उन्हें जेंटलमैन कहा था) हैं, वो किसी को काटते नहीं हैं.
मुझे उन साहब के आश्वासन पर कोई भरोसा नहीं हुआ और मैंने उन्हें पार्क से जाने की सलाह दे डाली.
उन्होंने आग्नेय नेत्रों से मुझे घूरा फिर उन्होंने मुझसे पूछा –
‘आप जानते हैं मैं कौन हूँ?’
मैंने बुद्धूपन से जवाब दिया –
‘जी मैं आपको नहीं जानता. क्या आप अपना परिचय देंगे?
उन्होंने फ़रमाया – ‘
मैं अपना परिचय दूंगा तो आप हिल जाएंगे.’
मैंने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए कहा –
'ओह, माफ़ कीजिएगा राष्ट्रपति महोदय, आपने गोल्डन फ्रेम वाला अपना चश्मा नहीं लगाया है, इसलिए मैं आपको पहचान नहीं पाया.’
उन राष्ट्रपति महोदय का चेहरा लाल हो गया पर इस बार गुस्से से नहीं, बल्कि शर्म से.
बाद में उनसे बड़े प्यार से बात हुई. वो सज्जन ग्रेटर नॉएडा डवलपमेंट अथॉरिटी के किसी विभाग में मैनेजर की पोस्ट पर कार्यरत थे और आदतन पूरे ग्रेटर नॉएडा को अपनी जागीर समझते थे.
मेरे इन नए बने मित्र ने मुझे आश्वस्त किया कि अब वो अपने कुत्तों को लेकर पार्क में नहीं आएँगे.
घर जाकर जब मैंने अपनी श्रीमतीजी को अपनी यह उपलब्धि बताई तो उन्होंने मुझसे पूछा –
‘आपकी ब्लड-शुगर कंट्रोल करने के लिए मैं जो आपको रोज़ सवेरे नीम-करेले का जूस देती हूँ वो आप अपने गले के नीचे उतारने के बजाय अपनी ज़ुबान पर ही क्यूँ रक्खे रहते हैं?’
बड़े दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि मेरी श्रीमतीजी ने आगे से मुझे नीम-करेले का जूस न देने का फ़ैसला कर लिया है.

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. मित्र, हमारे यहाँ आओगे तो क्या चाहोगे कि तुम्हारी भाभी जी तुम्हारा स्वागत इसी पेय से करें?

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  2. है व्यंग का सुंदर लेख जोखा,आयुर्वेद का गुणगान भी ,सादर नमन ।

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    1. हाय ! मेरी दर्द भरी दास्तान को तुमने व्यंग्य समझा जिज्ञासा !
      गब्बर सिंह के शब्दों में - 'बहुत नाइंसाफ़ी है.'

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