ऐसे बिहाल बिबाइन सों, पग कंटक-जाल लगे पुनि जोए,
हाय महादुख पायौ सखा ! तुम आये इतै न कितै दिन खोए.
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकें करुनानिधि रोए,
पानी परात सों हाथ छुयौ नहिं, नैनन के जल सों पग धोए.
{सुदामाचरित : नरोत्तमदास}
कलयुगी करुणानिधि -
भूख-अभाव फटो छप्पर, कब लौं अभिसाप प्रभू कोऊ ढोए,
रोज गुलामी कुबेरन की करि, इज्जत-आबरू दोनहु खोए.
देख सुदामा की दीन दसा, करूनानिधि चादर तानि के सोए,
पादुका-हीन सखा पग जानि, तुरंतहिं मारग कंटक बोए.
कटाक्ष और व्यंग्य का कांटेदार शब्दचित्र । सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जिज्ञासा !
जवाब देंहटाएंनरोत्तमदास जी के पदों को नए ज़माने के हिसाब से संशोधित किए जाने की ज़रुरत है.
वाह
जवाब देंहटाएं'वाह' के लिए धन्यवाद मित्र !
हटाएंतगड़ा कटाक्ष...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान' जी.
हटाएंआजकल के तथाकथित करुणानिधान दया और करुणा से सर्वथा दूर ही रहते हैं.
कलयुग का प्रभाव है 😄😄😄 बढ़िया कटाक्ष
जवाब देंहटाएंकलयुगी प्रभाव ने तो दोस्ती के मायने ही बदल दिए हैं संगीता स्वरुप (गीत) जी.
हटाएंतारीफ़ के लिए धन्यवाद आलोक सिन्हा जी.
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