शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

नया सुदामा चरित

ऐसे बिहाल बिबाइन सों, पग कंटक-जाल लगे पुनि जोए,
हाय महादुख पायौ सखा ! तुम आये इतै न कितै दिन खोए.
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकें करुनानिधि रोए,
पानी परात सों हाथ छुयौ नहिं, नैनन के जल सों पग धोए.
{सुदामाचरित : नरोत्तमदास}
कलयुगी करुणानिधि -
भूख-अभाव फटो छप्पर, कब लौं अभिसाप प्रभू कोऊ ढोए,
रोज गुलामी कुबेरन की करि, इज्जत-आबरू दोनहु खोए.
देख सुदामा की दीन दसा, करूनानिधि चादर तानि के सोए,

पादुका-हीन सखा पग जानि, तुरंतहिं मारग कंटक बोए. 

9 टिप्‍पणियां:

  1. कटाक्ष और व्यंग्य का कांटेदार शब्दचित्र । सुंदर सृजन।

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  2. धन्यवाद जिज्ञासा !
    नरोत्तमदास जी के पदों को नए ज़माने के हिसाब से संशोधित किए जाने की ज़रुरत है.

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  3. उत्तर
    1. धन्यवाद विकास नैनवाल 'अंजान' जी.
      आजकल के तथाकथित करुणानिधान दया और करुणा से सर्वथा दूर ही रहते हैं.

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  4. कलयुग का प्रभाव है 😄😄😄 बढ़िया कटाक्ष

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    1. कलयुगी प्रभाव ने तो दोस्ती के मायने ही बदल दिए हैं संगीता स्वरुप (गीत) जी.

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  5. तारीफ़ के लिए धन्यवाद आलोक सिन्हा जी.

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