ये किस्सा मेरे जन्म से पहले का है. हमारी एक चाची ताजमहल के निकट ताजगंज की रहने वाली थीं.
जब चाचाजी और चाची का रिश्ता तय हुआ और उनकी शादी हुई तब पिताजी की पोस्टिंग आगरा में ही थी.
एक बार माँ, पिताजी, मेरे भाइयों और बहन के साथ चाची के मायके ताजगंज गए.
नानी जी अर्थात चाची की माताजी ने अतिथियों का भव्य स्वागत किया. बातचीत के दौरान माँ ने उनसे पूछा -
'मौसी, आपके घर से तो ताजमहल साफ़ दिखाई देता है. आपलोग तो रोज़ाना घूमते-घूमते ताजमहल चले जाते होंगे?'
नानीजी ने जवाब दिया -
'जे ताजमहल मरो इत्तो ऊँचो ऐ कि जा पे नजर तो पड़ई जात ऐ.'
(ये कमबख्त ताजमहल इतना ऊंचा है कि इस पर नज़र तो पड़ ही जाती है.)
माँ ने नानी से पूछा –
'आप कितनी बार ताजमहल गयी हैं?'
नानी ने जवाब दिया –
'ए लली, जे तो मकबरो ऐ, बा में जाय के कौन अपबित्तर होय?'
(बिटिया, ये तो मकबरा है, उसमें जा कर कौन अपवित्र हो?)
फिर नानी ने माँ-पिताजी से पूछा -
तुम लोग का मंदिरजी होयके आय रए ओ?
(तुम लोग क्या मंदिर जी हो कर आ रहे हो?)
पिताजी ने जवाब दिया –
'नहीं मंदिरजी हो कर नहीं, हम तो ताजमहल घूम कर आ रहे हैं.'
नानी जी ने माँ-पिताजी का लिहाज़ किए बिना दहाड़ कर अपनी बहू को आवाज़ लगाई –
'बऊ ! महरी ते कै कि मेहमानन के बर्तन कूँ आग में डाल के मांजे'
(बहू, मेहरी से कह कि मेहमानों के बर्तनों को आग में डाल कर मांजे)
इतना कह कर नानी जी भुनभुनाती हुई दुबारा स्नान करने को चली गईं.
साहिर ने भी भक्तिन नानी की तरह ताजमहल को मुमताज़ महल का मकबरा मानते हुए कहा है -
'इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़'
काश कि नानी जी ने और साहिर ने इतिहास में माहिर पी. एन. ओक साहब और श्री विनय कटियार जैसे आज के देशभक्तों के विचारों को पढ़ा होता तो फिर वो ताजमहल बनवाने वाले इस नामुराद बादशाह को कुछ इस तरह कोसते -
'इक शहंशाह ने दौलत का सहारा लेकर
तेजो-मन्दिर को बना रक्खा है मलिका का मज़ार'
और इधर हमारी भक्तिन नानी इस पवित्र मन्दिर तेजो-महालय के दर्शन करने वाले हमारे भक्त माँ-पिताजी पर गुस्सा करने के बजाय उनकी ख़ातिर-तवज्जो करने के साथ-साथ उस पुण्य-भूमि से लाया गया प्रसाद भी श्रद्धा-भाव से ग्रहण करतीं.
तेजो महालय गजब :)
जवाब देंहटाएंजाओ मित्र ! तेजो-महालय के दर्शन कर पुण्य-लाभ प्राप्त करो !
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (08 -11-2021 ) को 'अंजुमन पे आज, सारा तन्त्र है टिका हुआ' (चर्चा अंक 4241) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
'अंजुमन पे आज सारा तंत्र है टिका हुआ' (चर्चा अंक - 4241) में मेरे संस्मरण को सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद रवीन्द्र सिंह यादव जी.
हटाएंबहुत रोचक संस्मरण ।
जवाब देंहटाएंमेरी भी बड़ी दादी कई बार बर्तनों को आग में डलवा कर मंजवाती थीं, हमारे कुनबे के सभी भाई बहनों और मैंने भी बचपन में अपने ऐसे मित्रों का नाम ही बदल दिया था और हमारे उन मित्रों की आदत में शामिल था कि बड़ीदादी कुछ मुंह बनाती हैं, पर अब कुछ भी ऐसा नहीं 😀🙏
मेरे संस्मरण की प्रशंसा के लिए धन्यवाद जिज्ञासा !
हटाएंधार्मिक कट्टरता से ग्रस्त व्यक्ति बुद्धि-विवेक को ताक पर रख कर ही अपने उन्मादी कृत्य करता है.
रोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद अनिता जी.
हटाएंहमारे बुजुर्गों की सोच ऐसी ही थी। सुंदर संस्मरण
जवाब देंहटाएंमेरे संस्मरण की धन्यवाद ज्योति !
हटाएंहमारे बुजुर्गों की ही ऐसी सोच नहीं थी, बल्कि आज के बहुत से नेताओं-धर्मगुरुओं-मुल्लाओं आदि की सोच भी ऐसी ही है.
बहुत ही उम्दा संस्मरण आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंपढ़ कर बहुत अच्छा लगा!
मेरे संस्मरण की तारीफ़ के लिए शुक्रिया मनीषा !
जवाब देंहटाएंयह जान कर अच्छा लगता है कि नौजवान पीढ़ी को भी हम बूढों की आपबीती रोचक लगती है.
रोचक संस्मरण। अच्छा दादी ने मेहमानों को नहाने और गंगा जल से पवित्र होने को न कहा। केवल बर्तन ही धुलवाये। इतिहास का बदलना तो चलता रहता है। जिसकी लाठी उसकी भैंस वाला हिसाब है। ओक और कटियार साहब तो वही कर रहे हैं। लाठी है तो भैंस हका रहे हैं।
जवाब देंहटाएंविकास नैनवाल 'अंजान' जी,
हटाएंमक़बरे को महा-अपवित्र मानने वाली नानी ने कम से कम इतिहास के साथ छेड़खानी तो नहीं की.
हमको परेशानी तो ताजमहल को तेजो-महालय मानने वालों से है.