बुधवार, 24 जुलाई 2013

गाँधी के जाँनशीन

                   
जब भी रुकती है मेरी कार, किसी गाँव  के बीच ,
मुझको गाँधी  के ख़यालों पे, हंसी  आती है ।
न यहाँ बार, न होटल, न सिनेमा कोई,
इसमें इन्सान को रहने में , शरम आती है ।।

मुल्क की रूह, बसा करती है, इन गाँवों  में ,
सिर्फ़ दीवानों को ये बात, समझ आती है ।
यूँ इलैक्शन में चला जाता हूं, मजबूरी में,
गाँव में याद तो, पेरिस की गली आती है ।।

      

बुधवार, 10 जुलाई 2013

प्रगति गान


हर मुर्दे को कफ़न, भले ही हो न मयस्सर,
पर हर शासक का स्मारक बन जाता है ।
दुर्घटना का समाधान है, जांच  कमीशन,
दंगों  के ही बाद, सैन्यदल आ पाता है ।।

राहत कार्य भले ही, कागज़ पर चलता हो,
हर दौरे को, टी.वी. कवरेज मिल जाता है ।
उजड़े  बस्ती गाँव , घरों में जले न चूल्हा,
वक्तव्यों में, देश प्रगति करता जाता है ।।