गुरुवार, 28 सितंबर 2017

टाइपराइटर

टाइपराइटर -
गवर्नमेंट इंटर कॉलेज रायबरेली में क्लास 8 में पढ़ते हुए मैंने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा आयोजित हाईस्कूल मेरिट स्कॉलरशिप के लिए एक परीक्षा में भाग लिया था और उसमें मैं सफल भी हुआ था. अब मुझे क्लास 9 तथा क्लास 10 में 10 रूपये महीने का स्कालरशिप मिलना था. लेकिन मैंने जैसे ही क्लास 9 उत्तीर्ण किया, पिताजी का तबादला बाराबंकी हो गया. क्लास 9 में स्कॉलरशिप के 120 रूपये मुझे रायबरेली में मिल भी गए थे. क्लास 10 के लिए अब मेरा प्रवेश गवर्नमेंट इंटर कॉलेज बाराबंकी में करा दिया गया.
मुझे अपने स्कॉलरशिप के बकाया 120 रूपये की बहुत चिंता थी. ये उस ज़माने की बात है जब मेरा मासिक जेब-खर्च 2 रूपये हुआ करता था. स्कॉलरशिप की बकाया रकम मुझे बाराबंकी में मिलनी थी. आखिर रायबरेली और बाराबंकी दोनों ही उत्तर प्रदेश में आते हैं.
मैंने कॉलेज के ऑफिस में पता किया तो मुझे बताया गया कि हाईस्कूल मेरिट स्कॉलरशिप की अगली किश्त आ चुकी है. हमारे बाराबंकी के कॉलेज में इस स्कॉलरशिप को बड़े बाबू श्री – (अब उनका नाम लालची बड़े बाबू ही मान लीजिए) डील करते थे मैंने आवश्यक दस्तावेज़ पहले ही ऑफिस में जमा कर दिए थे. बड़े बाबू ने कागज़ात लेते समय मुझे बहुत कस के घूरा था जिसका कारण उस समय मेरे समझ में नहीं आया था. बाद में मित्रों ने बताया कि लालची बड़े बाबू खर्चा पानी लिए बिना तो अपने बाप का काम भी नहीं करते. लेकिन मैं दूसरी मिट्टी का बना था. पैसे देकर अपना वाजिब काम कराना मेरे उसूलों के खिलाफ़ था और मैं समझता था कि ऐसे हर बेईमान को मेरे पिताजी अपनी अदालत में कड़ी से कड़ी सज़ा दे सकते हैं.
लालची बड़े बाबू के पास जब भी मैं स्कॉलरशिप के बारे में पता करने जाता तो वो घुड़क कर मुझे भगा देते थे. इन 120 रुपयों के पीछे कम से कम 10-12 बार तो मैंने झिड़की, घुड़की, डांट-फटकार आदि तो खाई ही होगी पर अब पानी सर से ऊपर निकल गया था. मैंने अब अपने ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने का निश्चय किया और लालची बड़े बाबू की शिकायत पिताजी से कर दी.
मैं कल्पना कर ही रहा था कि पिताजी लालची बड़े बाबू को कठोर दंड सुनाने के साथ मेरा बकाया स्कॉलरशिप दिलाने का आदेश पारित कर देंगे पर ये क्या हुआ? पिताजी बेरुखी से बोले –
‘अपने कॉलेज की बात मुझसे क्यों कर रहे हो? बड़ा बाबू बेईमान है तो उसकी शिकायत अपने प्रिंसिपल से करो.’
अब मैं पिताजी को कैसे बताता कि प्रिंसिपल साहब से बड़े बाबू की शिकायत कर पाना मेरे लिए असंभव था.
लालची बड़े बाबू को पता था कि मेरे पिताजी जुडिशियल मजिस्ट्रेट हैं पर वो इस से बिलकुल भी रौब में नहीं आए और बिना दस्तूरी लिए मेरा काम करने को क़तई तैयार नहीं थे. अब मैंने खुद ही न्यायाधीश बनने का फ़ैसला कर लिया.
पिताजी के पास रेमिंगटन का पोर्टेबल टाइपराइटर था अपने जजमेंट की सीक्रेसी मेन्टेन करने के लिए पिताजी खुद ही उन्हें अपने टाइपराइटर पर टाइप करते थे. हम बच्चे भी उनकी अनुमति से और उनके निर्देशन में उनके टाइपराइटर पर टाइपिंग में पारंगत होते रहते थे. खैर टाइपिंग तो मुझे क्या आई पर एक ऊँगली से लेटर टाइप करना तो आ ही गया था.
‘A quick brown fox jumps over the lazy dog’
इस छोटे से वाक्य में 'ए' से लेकर ‘ज़ेड’ तक के सभी अक्षर आ जाते हैं और मैं इतना टाइप करना तो जान ही गया था.
मेरा अंग्रेज़ी ज्ञान किसी बर्नार्ड शॉ से कम नहीं था. लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी के एम. ए. मेरे पिताजी और अंग्रेज़ी में महा-निष्णात मेरे बड़े भाई साहब भी मुझे अंग्रेज़ी का पंडित नहीं बना सके थे. अंग्रेज़ी से हिंदी करना तो मुझे आता था पर अंग्रेज़ी में कुछ भी लिखने के लिए उसको कंठस्थ करना बड़ा ज़रुरी होता था. अब चाहे वो एप्लीकेशन हो, चाहे कम्प्लेन हो, चाहे एसे हो.
अब मैंने पिताजी की ओर से लालची बड़े बाबू के खिलाफ़ एक कम्प्लेन लिखने का निश्चय किया. टाइप राइटर ज़िन्दाबाद! अब टाइपराइटर पर टाइप की हुई मेरी शिकायत में तो मेरी बचकानी राइटिंग भी छुप जानी थी. मुझे लीव एप्लीकेशन लिखना आता था. उसी पैटर्न पर मैंने पिताजी की ओर से प्रिंसिपल साहब को कम्प्लेन टाइप कर दी.
मुझे पता था कि पिताजी को अगर मेरी गुस्ताखी का पता चल गया तो दो-चार जन्म तो वो लगातार मुझको फांसी की सज़ा दिलवा ही देंगे पर उन्हें पता चलना ही कहाँ था?
मैंने कम्प्लेन टाइप की –
To
The Principal,
Government Inter College,
Barabanki.
Sir,
With due respect, I beg to say that the Head Clerk of your office Shri --- is very dishonest. He is is not releasing the second instalment of the High School Merit Scholarship of my son Gopesh Mohan Jaswal, a student of Class Xth.
Kindly do the needful and punish the culprit.
With regards,
Yours faithfully,
A. P, Jaswal
Dated : ---
शिकायत पत्र को और भी अधिक प्रामाणिक बनाने के लिए मैंने पिताजी के सिर्फ़ हस्ताक्षर ही नहीं बनाए बल्कि उनकी सरकारी मुहर भी उस पर लगा दी.
मुझे पता था कि लालची बड़े बाबू भी मेरी तरह अंग्रेज़ी में पैदल हैं. मैं बड़े रौब से बड़े बाबू के पास पहुंचा और बहुत आत्मविश्वास से उन से बोला –
‘बड़े बाबू ! पिताजी ने आपके खिलाफ़ प्रिंसिपल साहब को यह शिकायत भेजी है पर उन्होंने कहा है कि इसे तुम पहले बड़े बाबू को दिखाओ, अगर वो तुम्हारे स्कॉलरशिप के पैसे तुम्हें फिर भी नहीं दें तो फिर तुम इसे अपने प्रिंसिपल साहब को दे देना.
बड़े बाबू ने घूरते हुए वो कागज़ मुझसे ले लिया. बहुत देर तक वो उसे रुक-रुक कर हक्ला-हक्ला कर पढ़ते रहे. पहले उनका चेहरा पीला हुआ फिर उनके कान लाल हुए फिर उन्होंने कुछ देर अपनी आँखें बंद कर लीं फिर एक दम से ममता की मूर्ति बनकर बोले -
‘अरे बेटा गोपेश ! तुमने अपने पिताजी को नाहक तकलीफ़ दी. तुम्हारे स्कॉलरशिप के पैसे तो परसों ही आ गए थे. मैं तो चपरासी भेजकर तुमको बुलवाने ही वाला था.’
बड़े बाबू ने मेरी रकम मुझे सौंपी और रसीद में रेवेन्यू स्टाम्प भी अपनी ओर से लगा दी.
मैंने शिकायत वाला पत्र उनके सामने ही नष्ट कर दिया.
अंत भला तो सब भला. पर कहना होगा कि सत्य की नहीं बल्कि असत्य की जय हुई.
पिताजी को कभी मैंने अपनी इस गुस्ताखी के बारे में नहीं बताया पर अब लगता है कि पिताजी स्वर्ग में बैठे मेरी इस बदमाशी के विषय जानकर हंस रहे होंगे और लालची बड़े बाबू आज जहाँ भी होंगे, वहां उस घटना को याद करते हुए,  अपने दांत पीस रहे होंगे.

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सोमवार, 25 सितंबर 2017

शानदार भाषण

शानदार भाषण -
124 साल पहले शिकागो में आयोजित विश्व धर्म-सम्मलेन में एक अनजान भारतीय सन्यासी, स्वामी विवेकानंद ने अपने भाषण से सारी दुनिया पर भारतीय आध्यात्म की समृद्धि की गहरी छाप छोड़ी थी. दुनिया के तमाम गोरे, काले, पीले, उनके और भारतीय आध्यात्म के मुरीद हो गए थे. इस भाषण ने हम गुलाम भारतीयों के आहत अभिमान पर मरहम का काम किया था. इस भाषण ने हम भारतीयों में आत्म-सम्मान और आत्म-विश्वास का संचार किया था पर इस ऐतिहासिक भाषण से हमारे देश को एक बहुत बड़ा नुकसान भी हुआ है और वह यह है कि इस के बाद से हमारे देश में भाषण फोड़ना और अपनी लफ्फाज़ी से जनता को गुमराह करना एक व्यवसाय बन गया है.
आज अच्छे वक्ता की बड़ी क़द्र है. फ़िल्मों में अच्छे संवाद हों तो मज़ा आ जाता है. फ़िल्म मुगले आज़म के लम्बे-लम्बे भाषण हम आज भी याद करते हैं, भले ही उनकी क्लिष्ट उर्दू हमारे क़तई पल्ले न पड़ती हो.
फिर ज़माना आया फ़िल्म ‘शोले’ का, उसके वन लाइनर डायलौग्स का. - ‘तुम्हारा नाम क्या है बसंती?’, ‘तेरा क्या होगा कालिया?’, ‘ये हाथ हमको दे दे ठाकुर’, ‘बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना.’
कोई भी वित्तमंत्री जब बजट पेश करते हैं तो उसमें दो-चार शेर ज़रूर पढ़े जाते हैं अगर इनकम टैक्स की दर बढ़ाई जाती है तो मिर्ज़ा ग़ालिब का शेर पढ़ा जाता है. अगर सेल्स टैक्स बढ़ाया जाता है तो जिगर मुरादाबादी का. और अगर घाटे को कम करने में नाकामी स्वीकार की जाती है तो बशीर बद्र का यह शेर पढ़ दिया जाता है –
‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता.’
नेहरु जी के चहेते कृष्णा मेनन थे, बहुत अच्छा भाषण फोड़ते थे. यू एन ओ में पाकिस्तान के खिलाफ़ इतने अच्छे और ओजस्वी भाषण देते थे कि क्या कहा जाय. एक बार तो वो भाषण देते-देते बेहोश भी हो गए थे. बाद में कृष्णा मेनन हमारे रक्षा मंत्री बना दिए गए पर जब चीन ने 1962 में हमको पटकनी दी तो हमारे रक्षा मंत्री जी की भाषण कला हमारे किसी काम नहीं आई.
आजकल फिर भाषण कला के महत्त्व को पुनर्स्थापित किया जा रहा है. हमारे प्रधान मंत्री देश- विदेश में जहाँ भी भाषण देते हैं तो उनकी जय-जयकार होती है. उनके भाषण की प्रशंसा में कसीदे पढ़े जाते हैं और साथ में यह भी जोड़ दिया जाता है कि पित्ज़ा मम्मी को तो हिंदी बोलना भी नहीं आता और पप्पू तो हमेशा बचकानी बात करता है.
अभी यू. एन. में हमारी युवा अधिकारी ईनम गंभीर ने पाकिस्तान को टेररिस्तान कह दिया. वाह ! क्या खूब कहा ! पाकिस्तान तो पानी पानी हो गया. पर इस से क्या पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादियों की संख्या घट जाएगी? क्या अमेरिका तथा अन्य पाश्चात्य देश आतंकवाद के गढ़ पाकिस्तान को आर्थिक सहायता देना बंद कर देंगे?
और अगर ऐसा नहीं होगा तो ईनम गंभीर के भाषण को हम इतनी गंभीरता से क्यों ले रहे हैं?
इस से तो अच्छा है कि हम पी वी सिन्धु की जीत पर खुशियाँ मनाएं, कुलदीप यादव की हैट ट्रिक या हार्दिक पांड्या के छक्कों का जश्न मनाएं, या थिएटर में जाकर फ़िल्म ‘न्यूटन’ देख आएं.
आइए अब असली मुद्दे पर आएं.
23 सितम्बर 2017 को हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यू. एन. ओ. की जनरल असेंबली के 72 वें अधिवेशन में शानदार भाषण दिया. प्रधानमंत्री ने उनके भाषण की भूरि भूरि प्रशंसा की पर कांग्रेसी नेता इस से जल मरे.
इस भाषण में सुषमा जी ने 2030 तक की महत्वकांक्षी भारतीय योजनायें प्रस्तुत कर दीं.
अब जलवायु परिवर्तन, निरस्त्रीकरण, ‘सेव दि गर्ल’, ‘एजुकेट दि गर्ल’, वाली बातें तो दुनिया भर के पल्ले पड़ी होंगी पर जन-धन योजना, उज्जवला योजना, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, क्लीन इंडिया, स्टैंड अप इंडिया वगैरा से दुनिया को क्या लेना देना? क्या सुषमाजी का इरादा 2019 के चुनाव में दुनिया भर के कूटनीतिज्ञों के वोट लेने का भी है?
सुषमा जी ने भारत और पाकिस्तान की तुलना करते हुए बताया –
‘हमने विद्वान, इंजीनियर और डॉक्टर उत्पन्न किए जब कि पाकिस्तान ने आतंकवादी पैदा किए हैं.'
अब इस पर ताली बजाना तो बनता है. अब ऐसी बात पहली बार तो कही नहीं गयी है और ऐसी बातों से पाकिस्तान अपनी हरक़तों से बाज़ भी नहीं आएगा, हमको तो किसी चमत्कार की कोई सम्भावना भी नज़र नहीं आती. क्या इस से पाकिस्तान पर दबाव पड़ेगा कि वह आतंकवाद को पनाह न दे, या कश्मीर भारत को सौंप दे, और ऐसा कुछ नहीं होने वाला तो हम इस नूरा कुश्ती को इतना ज़्यादा महत्त्व क्यों दे रहे हैं?
सुषमा जी को बधाई ! वो अंतर्राष्टीय मंच पर भारत का पक्ष रखने में सफल रहीं पर इस भाषण में उनका मुख्य उद्देश्य तो मोदी जी को 2019 का चुनाव जिताना लग रहा है.
भाषण तो मैं भी अच्छे फोड़ लेता हूँ, शेरो-शायरी करना भी थोड़ा-बहुत आता है, मकबूल शायरों के कुछ फड़कते हुए अशआर भी सुना सकता हूँ. पर मेरे भाषणों में इतनी ताक़त भी नहीं कि उसके बल पर मेरी अदना सी कार एक किलोमीटर भी चल सके. मोदी जी और सुषमा जी तो अपने भाषणों के बल पर पूरे हिंदुस्तान को ही नहीं, बल्कि सारी दुनिया को चलाना चाहते हैं.
मेरी समस्त देशवासियों से करबद्ध प्रार्थना है कि वो किसी भाषण को इतना महत्त्व न दें कि अपने सारे काम भुलाकर सिर्फ़ जश्न मनाने में लग जाएं. फैज़ अहमद फैज़ की तर्ज़ पर मैं कहूँगा –
‘और भी गम हैं ज़माने में, तेरे भाषण के सिवा,
काम कुछ और भी हैं, ताली बजाने के सिवा.

बुधवार, 13 सितंबर 2017

हिंदी दिवस की पूर्व-संध्या पर



हिंदी दिवस

कितनी नक़ल करेंगे, कितना उधार लेंगे,
सूरत बिगाड़ माँ की, जीवन सुधार लेंगे.
पश्चिम की बोलियों का, दामन वो थाम लेंगे,  
हिंदी दिवस पे ही बस, हिंदी का नाम लेंगे.

जिसे स्कूल, दफ्तर से, अदालत से, निकाला था,
उसी हिंदी को अब, घर से औ दिल से निकाला है.
तरक्क़ी की खुली राहें, मिली अब कामयाबी भी,  
बड़ी मेहनत से खुद को, सांचा-ए-इंग्लिश में ढाला है.    

सूर की राधा दुखी,  तुलसी की सीता रो रही है,
शोर डिस्को का मचा है,  किन्तु मीरा सो रही है.
सभ्यता पश्चिम की,  विष के बीज कैसे बो रही है,
आज अपने देश में, हिन्दी प्रतिष्ठा खो रही है.

आज मां अपने ही बेटों में,  अपरिचित हो रही है,
बोझ इस अपमान का,  किस शाप से वह ढो रही है.
सिर्फ़ इंग्लिश के सहारे, भाग्य बनता है यहां,
देश तो आज़ाद है,  फिर क्यूं ग़ुलामी हो रही है.

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे -
ज़हर, सुकरात बन, पीना पड़े तो, मैं नहीं डरता,
किसी मंसूर के भी सामने, पानी नहीं भरता.
मुखातिब आग का दरिया, मैं उस में कूद जाता हूँ,
मगर लब खोलने की आज, मैं हिम्मत नहीं करता.

रविवार, 10 सितंबर 2017

चंद अशआर

नया खुदा -
मुझे कुर्सी पे बिठला कर, करम जो तूने फ़रमाया,
मुझे अब क्या गरज़, सर पर रहे, अल्लाह का साया.

मिस्ड कॉल -
मेरे ज़मीर ने मुझको, बहुत आवाज़ तो दी थी,
मैं ईमां बेचने की हाट में, वो सुन नहीं पाया.

To Let

सियासत की चला बन्दूक, तू, रख, मेरे काँधे पर,
किराए पर, मेरा तू, दीन, फिर ईमान भी लेना.     

बुधवार, 6 सितंबर 2017

विनम्र श्रद्धांजलि गौरी लंकेश -

ज़ुल्म की हर इंतिहा, इक हौसला बन जाएगी,
और खूंरेज़ी मुझे, मंज़िल तलक पहुंचाएगी,
छलनी-छलनी कर दिया सीना मेरा तो क्या हुआ?
ये शहादत, कौम को, जीना सिखाती जाएगी.

आज अगर श्रीमती सुभद्रा कुमारी चौहान होती तो कहतीं -

जाओ गौरी याद रखेंगे, हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा, स्वतंत्रता अविनासी. 

रविवार, 3 सितंबर 2017

आज के समाचार -

आज के समाचार -

शतरंज की बिसात पे, प्यादे ही पिटे हैं,
बेगम, वज़ीर, शाह तो, अपनी जगह पे हैं.

ताश की गड्डी फेंट, चंद जोकर निकाल कर,
और नए कुछ डाल, क्रान्ति आ गयी देश में.

और मजाज़ की तर्ज़ पर एक देशभक्त की शिकायत -

बहुत मुश्किल है, दुनिया का संवरना,
मंत्रिमंडल में, मेरा नाम नहीं है.

शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

प्रायश्चित



श्री भगवती चरण वर्मा की व्यंग्य-कथा ‘प्रायश्चित’ हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य-रचनाओं में गिनी जाती है. आज से लगभग सौ साल पहले लिखी गयी कहानी की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. आज भी हमारा समाज पुरानी रूढ़ियों और मूर्खतापूर्ण अंधविश्वासों से ग्रस्त है. आज भी पुरोहित वर्ग भोली-भाली धर्मभीरु किन्तु मूर्ख जनता का खुलेआम शोषण और दोहन कर रहा है.  इस कहानी की खलनायिका कहने को तो कबरी बिल्ली है किन्तु उस से भी बड़े खलनायक पंडित परम सुख हैं. विडम्बना यह है कि अशिक्षित महरी पंडित परमसुख की हर धूर्ततापूर्ण चाल को समझती है किन्तु रामू की माँ जैसी पढी-लिखी महिला उनकी चाल में फँस जाती है.  परिस्थितियां किस प्रकार पंडित परमसुख के अनकूल अथवा प्रतिकूल होती हैं, वो सब कुछ इस कहानी के नाट्य रूपांतर में आपको मिल जाएगा.  

प्रायश्चित
श्री भगवतीचरण वर्मा की अमर कहानी का नाट्य-रूपांतर
नाट्य-रूपांतरकार: गोपेश मोहन जैसवाल
पात्र:
रामू की बहू
रामू की माँ
रामू
मिसरानी
महरी
पंडित परमसुख

(पहला दृश्य - रामू की माँ के घर का आँगन)
मिसरानी:  अरे राम ! राम ! सत्यानास ! ये कबरी नासपीटी तो हंडिया में धरी सारी मलाई चट कर गयी.
बहूरानी ! हम तो जरूरी काम के लिए घर के बाहर गयी थीं और तुमसे कह कर गयी थीं कि उस कबरी चुड़ैल को घर में घुसने भी मत देना और कबरी तुम्हारे सामने डाकुओं की तरह आई और हंडिया की सारी मलाई चट कर गयी? क्या सो रही थीं बहू रानी?
रामू की बहू:  नहीं, सो तो नहीं रही थी मिसरानी जी, बस ज़रा आँख लग गयी थी.
महरी:  हमारी बहूरानी तो बड़ी भोली हैं. अब बताओ, सोने में और आँख लगने में का फरक है?
मालकिन जानेंगी तो उनको बड़ा दुःख होगा. पूरे सात दिन की जमा की गयी मलाई थी. अब रोटी में मिसरानी जी क्या तेल चुपड़ेंगीं?
रामू की बहू:  महरी जी, ये कबरी की बच्ची एक नंबर की चोर है. कल दूध की हांडी झूठी कर के भाग गयी थी, आज मलाई पर हाथ साफ़ कर दिया. इसने तो मेरी जान आफ़त में डाल दी है. तुम्हारे भैयाजी के लिए परसों जो मैंने रबड़ी बनाई थी, वो भी इसी के हिस्से में आई थी.
मिसरानी:  तुमसे घर की इत्ती सी निगरानी भी नहीं होती बहूरानी? मालकिन के बाद ये घर तुमको ही तो संभालना है.
महरी:  धीरे, धीरे बोलो मिसरानी जी, मालकिन सुन लेंगी कि तुम उनके बाद बहूरानी को घर का जिम्मा सौंपने की बात कर रही हो तो वो भले ही कबरी को घर से न निकालें पर तुमको जरूर निकाल देंगी.
मिसरानी:  हमने तो कबरी को फांसने के लिए कल आँगन में कठघरा रख दिया था, उसमें तूतिया डाल के दूध से भरा कटोरा भी रख दिया था. कल नहीं फंसी तो कोई बात नहीं, दो-चार दिन में तो कठघरे में फँस ही जाएगी.
रामू की बहू:  मिसरानी जी, कबरी को फांसने की तुम्हारी तरकीब काम कर गयी तो तुमको मैं चांदी का रुपया दूँगी.
मिसरानी:  बहू रानी तुम रुपया तैयार रक्खो.
रामू की माँ:  मिसरानी, आँगन में ये कठघरा किसने रक्खा है? उसमें दो चूहे मरे पड़े हैं. मेरा तो पैर भी भिड़ गया. सारा घर नरक कर दिया है तुम लोगों ने.
मिसरानी:  मालकिन ! कबरी को फांसने को बहूरानी ने ये जाल बिछाया है. आज ससुरी सारी जमा मलाई चट कर गयी.
रामू की बहू:  मैंने कहाँ? वो तो तुमने---
रामू की माँ:  मिसरानी जी, तुम इस कल की बच्ची की बातों में आ गईं? बिल्ली बहुत सयानी होती है, वो तुम्हारे या बहूरानी के कहने से कठघरे में नहीं फंसेगी. हटाओ इस झमेले को. अब कठघरे में पड़े इन चूहों का क्रियाकरम कौन करेगा?
चलो, महरी जी, कठघरे को बाहर निकालो और पूरा आँगन धोकर साफ़ करो.
महरी:  वाह, ये तो वही मसल हुई - करे कोई, भरे कोई. वाह री हमारी किस्मत !

(दूसरा दृश्य - रामू और रामू की बहू का शयन कक्ष)

रामू:  वाह ! क्या खुशबू है? क्या पकाया है, हमारी रानी ने?
रामू की बहू:  बूझो तो जानें.
रामू:  खुशबू से तो ऐसा लग रहा है कि इलाइची और केसर डालकर हमारे लिए रबड़ी पकाई है रानी जी ने.
रामू की बहू:  करीब-करीब सही पहुंचे. पर हमने तुम्हारे लिए रबड़ी नहीं, खीर बनाई है.
रामू:  अब अपने हाथों से खिला भी दो. इसकी खुशबू ने तो हमारी भूख जगा दी है.
रामू की बहू:  थोड़ी तपस्या करो, थोड़ा इन्तजार करो. अभी खीर को बर्फ में ठंडा होने के लिए रक्खा है. तब तक उसके दर्शन करके अपना जी बहला लो.
रामू:  और हमारी खीर तुम्हारी कबरी चट कर गयी तो?
रामू की बहू:  हमने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. हमने खीर वाले डिब्बे को ताक पे रक्खा है. इतना ऊंचा थोड़ी कूद पाएगी तुम्हारी चहेती कबरी?
अच्छा, हम खीर खाने के लिए दो ठो कटोरे लेकर आते हैं. साथ-साथ खाएंगे.
रामू:  साथ-साथ ही खीर खानी है तो फिर दो क्यों? एक ही कटोरा लाना.
रामू की बहू:  अच्छा बाबा, एक ही कटोरा लाएंगे. अब हम जाते हैं  
(रामू की बहू के जाते ही ‘भद्द’ की हल्की सी आहट और फिर ज़मीन पर ‘झन्न’ करके बर्तन गिरने की ज़ोरदार आवाज़)
रामू की बहू:  क्या हुआ जी? ये बर्तन कौन सा गिरा?
रामू:  हाय, मेरी खीर ! सारी की सारी जमीन पर गिरा गयी तुम्हारी मौसी !
रामू की बहू:  इतनी ऊंची छलांग लगाकर ताक तक पहुँच गयी बदमाश? और तुम क्या पड़े-पड़े उसको निहार रहे थे? उसको भगा नहीं सकते थे?
रामू:  काहे को अम्मा की डांट खाने का इंतजाम कर रही हो? खीर तो गयी कबरी के हिस्से में और डांट-फटकार आएगी तुम्हारे हिस्से में. सबर करो और चुपचाप सो जाओ.
रामू की बहू:  हे देवी मैया ! इस कबरी को उठा लो. मैं सात दिन तक 11 ब्राह्मणों को भोज कराऊंगी और तुम्हें चांदी का नारियल चढ़ाऊँगी.

(तीसरा दृश्य – रामू और रामू के बहू का शयन कक्ष)

रामू:  (फुसफुसाते हुए) सुनती हो ! आ गई तुम्हारी चहेती. आँगन में है.
रामू की बहू:  (फुसफुसाते हुए) पता है. उसकी खातिर हम दूध से भरा कटोरा भी रख आए हैं आँगन में.
रामू:  अच्छा जी, मौसीजी की इतनी खातिर?
रामू की बहू: (फुसफुसाते हुए): तुम चुपचाप पड़े तमाशा देखते जाओ

(चौथा दृश्य- रामू की माँ के घर का आंगन) 
(रामू की बहू अपने कमरे से चुपचाप दबे पाँव आती है और दूध पीती हुई कबरी पर बहुत जोर से पटा दे मारती है. कबरी चोट खाते ही वहीं के वहीं निश्चेष्ट पड़ जाती है.)
महरी:  हाय ! हाय ! ये क्या किया बहू रानी? तुमने कबरी पर पटा दे मारा? ये तो मर गयी ! ये तो बहुत बुरा हुआ.
मिसरानी जी, मालकिन को बुलाओ. अब वही बतायेंगी कि हमको क्या करना है.
मिसरानी:  कबरी मर गयी? हम रसोई को हाथ भी नहीं लगाएंगे. पहले सुद्धि होगी फिर कोई रसोई में जाएगा.
रामू की माँ:  तुम लोगों ने ये क्या हल्ला मचा रक्खा है?
हैं? ये क्या? ये कबरी आँगन में कैसे पड़ी हुई है? किसने मारा इसको? अरे ! ये तो मर गयी !
मिसरानी:  अपनी बहू रानी ने इस पर पटा दे मारा और ये हरामखोर फौरन मर गई.
रामू की माँ:  मरी आत्मा को गाली तो मत दो मिसरानी !
और बहूरानी, शिकार करने को तुमको क्या अपना ही घर मिला था? जवाब दो, बोलती क्यों नहीं?
महरी:  मालकिन, बहूरानी ने अपनी सारी ताकत तो कबरी के पटा मारने में खर्च कर दी. अब उन बेचारी में अपना मुंह खोलने की ताकत बची कहाँ है?  
मिसरानी:  मालकिन हमारे लिए क्या हुकुम है? क्या घर में सुद्धि हुए बिना ही हम खाना बना दें?
रामू की माँ:  राम, राम ! अभी कोई खाना-वाना नहीं पकेगा. पहले शुद्धि होगी, पूजा-पाठ होगा, प्रायश्चित करने के लिए हवन होगा, दान-दक्षिणा होगी. तब जाकर हम किसी के मुंह में निवाला जाने देंगे.   
महरी, जाओ, तुम पंडित परमसुख को बुला लाओ. अभी वो घर पर ही होंगे.
(आँगन में पड़ौस की औरतों का जमाव. खुसफुस की आवाजें)
एक पडौसन:  हाय, हाय ! कबरी बिल्ली मार डाली? पर ये महा पाप हुआ किस से?
दूसरी पडौसन:  मिसरानी जी और महरी जी बता तो रही हैं कि रामू की बहू ने उस पे पटा दे मारा.
तीसरी पडौसन:  हाय ! बिल्ली की हत्या का पाप तो मानुस की हत्या के बराबर होता है.
चौथी पडौसन: ऐसे-वैसे मानुस की हत्या का पाप नहीं, बल्कि बिल्ली की हत्या पर तो ब्रह्म-हत्या का पाप लगता है.   
पांचवीं पडौसन:  लो पंडित परमसुख आ गए. अब वही बताएँगे कि बिल्ली की हत्या का प्रायश्चित कैसे होगा.
(पंडित परमसुख को एक ऊंची चौकी पर बिठाया जाता है)
मिसरानी:  (पंडित जी के कान में फुसफुसाते हुए) पंडित जी, मालकिन से मन-चाही दान-दक्षिणा वसूल करना पर हम गरीबों का भी उसमें हिस्सा होना चाहिए.
पंडित परम सुख:  (मिसरानी की बात को अनसुना करते हुए) हरि ॐ! हरि ॐ! रामू की माँ ! तुम्हारी जैसी पुण्यात्मा के घर में बिल्ली की हत्या? घोर अनर्थ, घोर अनर्थ !
रामू की माँ:  ऐसा मत कहो पंडित जी ! बहूरानी तो नादान है, उस से भूल हो गयी. अब तुम्हीं कोई उपाय बताओ और इस संकट से हमको उबारो.
पंडित परम सुख:  अंग्रेजी कानून से तो बहूरानी पर दफ़ा तीन सौ दो लगेगी जिस में फांसी या उमर क़ैद होती है.
महरी:  पंडित जी, दान-दक्षिणा के लालच में हमारी बहूरानी से एक पिद्दी सी बिल्ली की हत्या हो जाने पर तुम उन्हें क्या फांसी पर चढ़वा दोगे?
पंडित परमसुख:  महरी जी, हम तो वो पंडित हैं कि किसी पर ब्रह्म-हत्या का भी पाप हो तो उसे पाप-मुक्त करा दें. बिल्ली की हत्या के पाप से तो हम बहूरानी को चुटकियों में मुक्त करा देंगे. पर पूजा-पाठ बहुत करनी होगी और दान-दक्षिणा पर भी मोटी रकम खर्च करनी होगी.
रामू की माँ:  पाप-मुक्ति के लिए ही तो आपको बुलाया है पंडित जी. आप प्रायश्चित करने के लिए पूजा-सामग्री की फ़ेहरिस्त तो तैयार कराइए.
पंडित परमसुख:  पंडिताइन की परसी थाली छोड़कर आया हूँ. सवेरे से मुंह में एक निवाला तक नहीं गया है. पहले सेर-सेर भर लड्डू-पेड़े मंगवाओ. उनका भोग लगाकर ही पूजा की सामग्री बताऊंगा.
रामू की माँ:  मरी बिल्ली आँगन में पड़ी है और आप वहीं पर बैठकर लड्डू-पेड़े खा लेंगे?
महरी: मालकिन पंडित जी की तोंद में जाते ही सब पकवान सुद्ध हो जाते हैं.
पंडित परम सुख:  (लड्डू-और पेड़े खाते हुए) महरी जी, हम से ठिठोली करोगी तो तुमको हम अगले जनम में बिल्ली की योनि में पैदा होने का शाप दे देंगे. फिर बचती रहना किसी और बहू के पटे की चोट से.
रामू की माँ:  पंडित जी, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, महरी को माफ़ कर दीजिए और हमको पूजा और दान दक्षिणा की सामग्री बताइए.
पंडित परमसुख:  शास्त्रों में लिखा है कि अगर किसी से बिल्ली की हत्या हो जाए तो वो प्रायश्चित के तौर पर बिल्ली की तौल के बराबर का सोना दान कर दे. बिल्ली तो होगी कोई इक्कीस सेर की. अब तुम उतना सोना तो क्या दान करोगी, हाँ, इक्कीस तोले की सोने की बिल्ली बनवाकर तुमको दान ज़रूर करवानी होगी. हवन के लिए सामग्री भी मंगवानी होगी और 11 ब्राह्मणों को भोज भी कराना होगा. पर तुम चिंता मत करो दान-दक्षिणा के साथ तुम अकेले मुझे ही भोजन करा दोगी तो 11 ब्राह्मणों के भोज का पुण्य तुम्हें मिल जाएगा.
महरी:  पंडितजी, अकेले ही 11 ब्राह्मणों के बराबर खा लेते हैं मालकिन. इनकी तोंद तो देखो.
पंडित परमसुख:  रामू की माँ, प्रायश्चित का इतना बड़ा आयोजन हो रहा है और तुम्हारी ये महरी हमारा मखौल उड़ा रही है. अच्छा ये सब छोड़ो ! ये बताओ, बिल्ली बनवाने के लिए सोना तुम अपने पास से दोगी या फिर उसे भी बाज़ार से लेना पड़ेगा?
रामू की माँ:  21 तोला सोना? ये तो बहुत ज़्यादा है ! पंडित जी, फिर तो आप बहूरानी पर अभी यह पाप चढ़ा ही रहने दीजिए. मैं किसी दूसरे पंडित को बुलाती हूँ.
पंडित परमसुख:  अच्छा, 11 तोले?  
रामू की माँ: ठीक है 11 तोले सोना मैं घर से निकालकर देती हूँ, आप सुनार के यहाँ जाकर उसकी बिल्ली बनवा दीजिएगा. और घी, नाज, धूप, चन्दन, लकड़ी, अगरबत्ती वगैरा जो भी चाहिए आप लाला मातादीन की दुकान से ले आइए, उसके पैसे मैं उन्हें ही दे दूँगी.
पंडित परमसुख:  रामू की माँ, तुम को तो जो भी दान-पुण्य करना है वो सब मेरे हाथ से करना होगा वरना बहूरानी और तुम सबको इस घोर पाप से मुक्ति नहीं मिलेगी.
महरी:  मालकिन ! पंडित जी के जाल में जो एक बार फँस गया, वो सात जनम तक छूटता नहीं है.
पंडित परमसुख:  अच्छा, रामू की माँ. तुम 11 तोला सोना निकालो और सामग्री लाने के लिए हमको पैसे दो.
अच्छा ठहरो, हिसाब कर लेते हैं. बिल्ली बनवाई के तीस रूपये, सवा मन घी के चालीस रुपये, चन्दन की लकड़ी के दस रूपये, धूप-अगरबत्ती के 5 रूपये, अन्य सामग्री के 11 रूपये और मेरी दक्षिणा के ----‘
महरी:  मालकिन, मालकिन ! गजब हो गया.
रामू की माँ:  अरे क्या हुआ? कुछ बोलेगी भी कम्बखत?
महरी: वो, वो, कबरी थी ना ----‘
रामू की माँ: हाय, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. अरे मरी, बता तो क्या हुआ? अब कौन सी आफ़त आ गयी?
महरी:  मालकिन ! कबरी तो उठकर भाग गयी.