शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

प्रायश्चित



श्री भगवती चरण वर्मा की व्यंग्य-कथा ‘प्रायश्चित’ हिंदी साहित्य की सर्वश्रेष्ठ व्यंग्य-रचनाओं में गिनी जाती है. आज से लगभग सौ साल पहले लिखी गयी कहानी की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है. आज भी हमारा समाज पुरानी रूढ़ियों और मूर्खतापूर्ण अंधविश्वासों से ग्रस्त है. आज भी पुरोहित वर्ग भोली-भाली धर्मभीरु किन्तु मूर्ख जनता का खुलेआम शोषण और दोहन कर रहा है.  इस कहानी की खलनायिका कहने को तो कबरी बिल्ली है किन्तु उस से भी बड़े खलनायक पंडित परम सुख हैं. विडम्बना यह है कि अशिक्षित महरी पंडित परमसुख की हर धूर्ततापूर्ण चाल को समझती है किन्तु रामू की माँ जैसी पढी-लिखी महिला उनकी चाल में फँस जाती है.  परिस्थितियां किस प्रकार पंडित परमसुख के अनकूल अथवा प्रतिकूल होती हैं, वो सब कुछ इस कहानी के नाट्य रूपांतर में आपको मिल जाएगा.  

प्रायश्चित
श्री भगवतीचरण वर्मा की अमर कहानी का नाट्य-रूपांतर
नाट्य-रूपांतरकार: गोपेश मोहन जैसवाल
पात्र:
रामू की बहू
रामू की माँ
रामू
मिसरानी
महरी
पंडित परमसुख

(पहला दृश्य - रामू की माँ के घर का आँगन)
मिसरानी:  अरे राम ! राम ! सत्यानास ! ये कबरी नासपीटी तो हंडिया में धरी सारी मलाई चट कर गयी.
बहूरानी ! हम तो जरूरी काम के लिए घर के बाहर गयी थीं और तुमसे कह कर गयी थीं कि उस कबरी चुड़ैल को घर में घुसने भी मत देना और कबरी तुम्हारे सामने डाकुओं की तरह आई और हंडिया की सारी मलाई चट कर गयी? क्या सो रही थीं बहू रानी?
रामू की बहू:  नहीं, सो तो नहीं रही थी मिसरानी जी, बस ज़रा आँख लग गयी थी.
महरी:  हमारी बहूरानी तो बड़ी भोली हैं. अब बताओ, सोने में और आँख लगने में का फरक है?
मालकिन जानेंगी तो उनको बड़ा दुःख होगा. पूरे सात दिन की जमा की गयी मलाई थी. अब रोटी में मिसरानी जी क्या तेल चुपड़ेंगीं?
रामू की बहू:  महरी जी, ये कबरी की बच्ची एक नंबर की चोर है. कल दूध की हांडी झूठी कर के भाग गयी थी, आज मलाई पर हाथ साफ़ कर दिया. इसने तो मेरी जान आफ़त में डाल दी है. तुम्हारे भैयाजी के लिए परसों जो मैंने रबड़ी बनाई थी, वो भी इसी के हिस्से में आई थी.
मिसरानी:  तुमसे घर की इत्ती सी निगरानी भी नहीं होती बहूरानी? मालकिन के बाद ये घर तुमको ही तो संभालना है.
महरी:  धीरे, धीरे बोलो मिसरानी जी, मालकिन सुन लेंगी कि तुम उनके बाद बहूरानी को घर का जिम्मा सौंपने की बात कर रही हो तो वो भले ही कबरी को घर से न निकालें पर तुमको जरूर निकाल देंगी.
मिसरानी:  हमने तो कबरी को फांसने के लिए कल आँगन में कठघरा रख दिया था, उसमें तूतिया डाल के दूध से भरा कटोरा भी रख दिया था. कल नहीं फंसी तो कोई बात नहीं, दो-चार दिन में तो कठघरे में फँस ही जाएगी.
रामू की बहू:  मिसरानी जी, कबरी को फांसने की तुम्हारी तरकीब काम कर गयी तो तुमको मैं चांदी का रुपया दूँगी.
मिसरानी:  बहू रानी तुम रुपया तैयार रक्खो.
रामू की माँ:  मिसरानी, आँगन में ये कठघरा किसने रक्खा है? उसमें दो चूहे मरे पड़े हैं. मेरा तो पैर भी भिड़ गया. सारा घर नरक कर दिया है तुम लोगों ने.
मिसरानी:  मालकिन ! कबरी को फांसने को बहूरानी ने ये जाल बिछाया है. आज ससुरी सारी जमा मलाई चट कर गयी.
रामू की बहू:  मैंने कहाँ? वो तो तुमने---
रामू की माँ:  मिसरानी जी, तुम इस कल की बच्ची की बातों में आ गईं? बिल्ली बहुत सयानी होती है, वो तुम्हारे या बहूरानी के कहने से कठघरे में नहीं फंसेगी. हटाओ इस झमेले को. अब कठघरे में पड़े इन चूहों का क्रियाकरम कौन करेगा?
चलो, महरी जी, कठघरे को बाहर निकालो और पूरा आँगन धोकर साफ़ करो.
महरी:  वाह, ये तो वही मसल हुई - करे कोई, भरे कोई. वाह री हमारी किस्मत !

(दूसरा दृश्य - रामू और रामू की बहू का शयन कक्ष)

रामू:  वाह ! क्या खुशबू है? क्या पकाया है, हमारी रानी ने?
रामू की बहू:  बूझो तो जानें.
रामू:  खुशबू से तो ऐसा लग रहा है कि इलाइची और केसर डालकर हमारे लिए रबड़ी पकाई है रानी जी ने.
रामू की बहू:  करीब-करीब सही पहुंचे. पर हमने तुम्हारे लिए रबड़ी नहीं, खीर बनाई है.
रामू:  अब अपने हाथों से खिला भी दो. इसकी खुशबू ने तो हमारी भूख जगा दी है.
रामू की बहू:  थोड़ी तपस्या करो, थोड़ा इन्तजार करो. अभी खीर को बर्फ में ठंडा होने के लिए रक्खा है. तब तक उसके दर्शन करके अपना जी बहला लो.
रामू:  और हमारी खीर तुम्हारी कबरी चट कर गयी तो?
रामू की बहू:  हमने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. हमने खीर वाले डिब्बे को ताक पे रक्खा है. इतना ऊंचा थोड़ी कूद पाएगी तुम्हारी चहेती कबरी?
अच्छा, हम खीर खाने के लिए दो ठो कटोरे लेकर आते हैं. साथ-साथ खाएंगे.
रामू:  साथ-साथ ही खीर खानी है तो फिर दो क्यों? एक ही कटोरा लाना.
रामू की बहू:  अच्छा बाबा, एक ही कटोरा लाएंगे. अब हम जाते हैं  
(रामू की बहू के जाते ही ‘भद्द’ की हल्की सी आहट और फिर ज़मीन पर ‘झन्न’ करके बर्तन गिरने की ज़ोरदार आवाज़)
रामू की बहू:  क्या हुआ जी? ये बर्तन कौन सा गिरा?
रामू:  हाय, मेरी खीर ! सारी की सारी जमीन पर गिरा गयी तुम्हारी मौसी !
रामू की बहू:  इतनी ऊंची छलांग लगाकर ताक तक पहुँच गयी बदमाश? और तुम क्या पड़े-पड़े उसको निहार रहे थे? उसको भगा नहीं सकते थे?
रामू:  काहे को अम्मा की डांट खाने का इंतजाम कर रही हो? खीर तो गयी कबरी के हिस्से में और डांट-फटकार आएगी तुम्हारे हिस्से में. सबर करो और चुपचाप सो जाओ.
रामू की बहू:  हे देवी मैया ! इस कबरी को उठा लो. मैं सात दिन तक 11 ब्राह्मणों को भोज कराऊंगी और तुम्हें चांदी का नारियल चढ़ाऊँगी.

(तीसरा दृश्य – रामू और रामू के बहू का शयन कक्ष)

रामू:  (फुसफुसाते हुए) सुनती हो ! आ गई तुम्हारी चहेती. आँगन में है.
रामू की बहू:  (फुसफुसाते हुए) पता है. उसकी खातिर हम दूध से भरा कटोरा भी रख आए हैं आँगन में.
रामू:  अच्छा जी, मौसीजी की इतनी खातिर?
रामू की बहू: (फुसफुसाते हुए): तुम चुपचाप पड़े तमाशा देखते जाओ

(चौथा दृश्य- रामू की माँ के घर का आंगन) 
(रामू की बहू अपने कमरे से चुपचाप दबे पाँव आती है और दूध पीती हुई कबरी पर बहुत जोर से पटा दे मारती है. कबरी चोट खाते ही वहीं के वहीं निश्चेष्ट पड़ जाती है.)
महरी:  हाय ! हाय ! ये क्या किया बहू रानी? तुमने कबरी पर पटा दे मारा? ये तो मर गयी ! ये तो बहुत बुरा हुआ.
मिसरानी जी, मालकिन को बुलाओ. अब वही बतायेंगी कि हमको क्या करना है.
मिसरानी:  कबरी मर गयी? हम रसोई को हाथ भी नहीं लगाएंगे. पहले सुद्धि होगी फिर कोई रसोई में जाएगा.
रामू की माँ:  तुम लोगों ने ये क्या हल्ला मचा रक्खा है?
हैं? ये क्या? ये कबरी आँगन में कैसे पड़ी हुई है? किसने मारा इसको? अरे ! ये तो मर गयी !
मिसरानी:  अपनी बहू रानी ने इस पर पटा दे मारा और ये हरामखोर फौरन मर गई.
रामू की माँ:  मरी आत्मा को गाली तो मत दो मिसरानी !
और बहूरानी, शिकार करने को तुमको क्या अपना ही घर मिला था? जवाब दो, बोलती क्यों नहीं?
महरी:  मालकिन, बहूरानी ने अपनी सारी ताकत तो कबरी के पटा मारने में खर्च कर दी. अब उन बेचारी में अपना मुंह खोलने की ताकत बची कहाँ है?  
मिसरानी:  मालकिन हमारे लिए क्या हुकुम है? क्या घर में सुद्धि हुए बिना ही हम खाना बना दें?
रामू की माँ:  राम, राम ! अभी कोई खाना-वाना नहीं पकेगा. पहले शुद्धि होगी, पूजा-पाठ होगा, प्रायश्चित करने के लिए हवन होगा, दान-दक्षिणा होगी. तब जाकर हम किसी के मुंह में निवाला जाने देंगे.   
महरी, जाओ, तुम पंडित परमसुख को बुला लाओ. अभी वो घर पर ही होंगे.
(आँगन में पड़ौस की औरतों का जमाव. खुसफुस की आवाजें)
एक पडौसन:  हाय, हाय ! कबरी बिल्ली मार डाली? पर ये महा पाप हुआ किस से?
दूसरी पडौसन:  मिसरानी जी और महरी जी बता तो रही हैं कि रामू की बहू ने उस पे पटा दे मारा.
तीसरी पडौसन:  हाय ! बिल्ली की हत्या का पाप तो मानुस की हत्या के बराबर होता है.
चौथी पडौसन: ऐसे-वैसे मानुस की हत्या का पाप नहीं, बल्कि बिल्ली की हत्या पर तो ब्रह्म-हत्या का पाप लगता है.   
पांचवीं पडौसन:  लो पंडित परमसुख आ गए. अब वही बताएँगे कि बिल्ली की हत्या का प्रायश्चित कैसे होगा.
(पंडित परमसुख को एक ऊंची चौकी पर बिठाया जाता है)
मिसरानी:  (पंडित जी के कान में फुसफुसाते हुए) पंडित जी, मालकिन से मन-चाही दान-दक्षिणा वसूल करना पर हम गरीबों का भी उसमें हिस्सा होना चाहिए.
पंडित परम सुख:  (मिसरानी की बात को अनसुना करते हुए) हरि ॐ! हरि ॐ! रामू की माँ ! तुम्हारी जैसी पुण्यात्मा के घर में बिल्ली की हत्या? घोर अनर्थ, घोर अनर्थ !
रामू की माँ:  ऐसा मत कहो पंडित जी ! बहूरानी तो नादान है, उस से भूल हो गयी. अब तुम्हीं कोई उपाय बताओ और इस संकट से हमको उबारो.
पंडित परम सुख:  अंग्रेजी कानून से तो बहूरानी पर दफ़ा तीन सौ दो लगेगी जिस में फांसी या उमर क़ैद होती है.
महरी:  पंडित जी, दान-दक्षिणा के लालच में हमारी बहूरानी से एक पिद्दी सी बिल्ली की हत्या हो जाने पर तुम उन्हें क्या फांसी पर चढ़वा दोगे?
पंडित परमसुख:  महरी जी, हम तो वो पंडित हैं कि किसी पर ब्रह्म-हत्या का भी पाप हो तो उसे पाप-मुक्त करा दें. बिल्ली की हत्या के पाप से तो हम बहूरानी को चुटकियों में मुक्त करा देंगे. पर पूजा-पाठ बहुत करनी होगी और दान-दक्षिणा पर भी मोटी रकम खर्च करनी होगी.
रामू की माँ:  पाप-मुक्ति के लिए ही तो आपको बुलाया है पंडित जी. आप प्रायश्चित करने के लिए पूजा-सामग्री की फ़ेहरिस्त तो तैयार कराइए.
पंडित परमसुख:  पंडिताइन की परसी थाली छोड़कर आया हूँ. सवेरे से मुंह में एक निवाला तक नहीं गया है. पहले सेर-सेर भर लड्डू-पेड़े मंगवाओ. उनका भोग लगाकर ही पूजा की सामग्री बताऊंगा.
रामू की माँ:  मरी बिल्ली आँगन में पड़ी है और आप वहीं पर बैठकर लड्डू-पेड़े खा लेंगे?
महरी: मालकिन पंडित जी की तोंद में जाते ही सब पकवान सुद्ध हो जाते हैं.
पंडित परम सुख:  (लड्डू-और पेड़े खाते हुए) महरी जी, हम से ठिठोली करोगी तो तुमको हम अगले जनम में बिल्ली की योनि में पैदा होने का शाप दे देंगे. फिर बचती रहना किसी और बहू के पटे की चोट से.
रामू की माँ:  पंडित जी, मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ, महरी को माफ़ कर दीजिए और हमको पूजा और दान दक्षिणा की सामग्री बताइए.
पंडित परमसुख:  शास्त्रों में लिखा है कि अगर किसी से बिल्ली की हत्या हो जाए तो वो प्रायश्चित के तौर पर बिल्ली की तौल के बराबर का सोना दान कर दे. बिल्ली तो होगी कोई इक्कीस सेर की. अब तुम उतना सोना तो क्या दान करोगी, हाँ, इक्कीस तोले की सोने की बिल्ली बनवाकर तुमको दान ज़रूर करवानी होगी. हवन के लिए सामग्री भी मंगवानी होगी और 11 ब्राह्मणों को भोज भी कराना होगा. पर तुम चिंता मत करो दान-दक्षिणा के साथ तुम अकेले मुझे ही भोजन करा दोगी तो 11 ब्राह्मणों के भोज का पुण्य तुम्हें मिल जाएगा.
महरी:  पंडितजी, अकेले ही 11 ब्राह्मणों के बराबर खा लेते हैं मालकिन. इनकी तोंद तो देखो.
पंडित परमसुख:  रामू की माँ, प्रायश्चित का इतना बड़ा आयोजन हो रहा है और तुम्हारी ये महरी हमारा मखौल उड़ा रही है. अच्छा ये सब छोड़ो ! ये बताओ, बिल्ली बनवाने के लिए सोना तुम अपने पास से दोगी या फिर उसे भी बाज़ार से लेना पड़ेगा?
रामू की माँ:  21 तोला सोना? ये तो बहुत ज़्यादा है ! पंडित जी, फिर तो आप बहूरानी पर अभी यह पाप चढ़ा ही रहने दीजिए. मैं किसी दूसरे पंडित को बुलाती हूँ.
पंडित परमसुख:  अच्छा, 11 तोले?  
रामू की माँ: ठीक है 11 तोले सोना मैं घर से निकालकर देती हूँ, आप सुनार के यहाँ जाकर उसकी बिल्ली बनवा दीजिएगा. और घी, नाज, धूप, चन्दन, लकड़ी, अगरबत्ती वगैरा जो भी चाहिए आप लाला मातादीन की दुकान से ले आइए, उसके पैसे मैं उन्हें ही दे दूँगी.
पंडित परमसुख:  रामू की माँ, तुम को तो जो भी दान-पुण्य करना है वो सब मेरे हाथ से करना होगा वरना बहूरानी और तुम सबको इस घोर पाप से मुक्ति नहीं मिलेगी.
महरी:  मालकिन ! पंडित जी के जाल में जो एक बार फँस गया, वो सात जनम तक छूटता नहीं है.
पंडित परमसुख:  अच्छा, रामू की माँ. तुम 11 तोला सोना निकालो और सामग्री लाने के लिए हमको पैसे दो.
अच्छा ठहरो, हिसाब कर लेते हैं. बिल्ली बनवाई के तीस रूपये, सवा मन घी के चालीस रुपये, चन्दन की लकड़ी के दस रूपये, धूप-अगरबत्ती के 5 रूपये, अन्य सामग्री के 11 रूपये और मेरी दक्षिणा के ----‘
महरी:  मालकिन, मालकिन ! गजब हो गया.
रामू की माँ:  अरे क्या हुआ? कुछ बोलेगी भी कम्बखत?
महरी: वो, वो, कबरी थी ना ----‘
रामू की माँ: हाय, मेरा तो दिल बैठा जा रहा है. अरे मरी, बता तो क्या हुआ? अब कौन सी आफ़त आ गयी?
महरी:  मालकिन ! कबरी तो उठकर भाग गयी.        
                                            

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