बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे -
ज़हर, सुकरात बन, पीना पड़े तो, मैं नहीं डरता,
किसी मंसूर के भी सामने, पानी नहीं भरता.
मुखातिब आग का दरिया, मैं उस में कूद जाता हूँ,
मगर लब खोलने की आज, मैं हिम्मत नहीं करता.
किसी मंसूर के भी सामने, पानी नहीं भरता.
मुखातिब आग का दरिया, मैं उस में कूद जाता हूँ,
मगर लब खोलने की आज, मैं हिम्मत नहीं करता.
क्या बात है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशील बाबू. जिसके भी लब खुले, उसके परिवार वालों को उसके बीमा की रकम मिली और कभी-कभी सरकारी मुआवज़ा भी.
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