गुरुवार, 28 सितंबर 2017

टाइपराइटर

टाइपराइटर -
गवर्नमेंट इंटर कॉलेज रायबरेली में क्लास 8 में पढ़ते हुए मैंने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद् द्वारा आयोजित हाईस्कूल मेरिट स्कॉलरशिप के लिए एक परीक्षा में भाग लिया था और उसमें मैं सफल भी हुआ था. अब मुझे क्लास 9 तथा क्लास 10 में 10 रूपये महीने का स्कालरशिप मिलना था. लेकिन मैंने जैसे ही क्लास 9 उत्तीर्ण किया, पिताजी का तबादला बाराबंकी हो गया. क्लास 9 में स्कॉलरशिप के 120 रूपये मुझे रायबरेली में मिल भी गए थे. क्लास 10 के लिए अब मेरा प्रवेश गवर्नमेंट इंटर कॉलेज बाराबंकी में करा दिया गया.
मुझे अपने स्कॉलरशिप के बकाया 120 रूपये की बहुत चिंता थी. ये उस ज़माने की बात है जब मेरा मासिक जेब-खर्च 2 रूपये हुआ करता था. स्कॉलरशिप की बकाया रकम मुझे बाराबंकी में मिलनी थी. आखिर रायबरेली और बाराबंकी दोनों ही उत्तर प्रदेश में आते हैं.
मैंने कॉलेज के ऑफिस में पता किया तो मुझे बताया गया कि हाईस्कूल मेरिट स्कॉलरशिप की अगली किश्त आ चुकी है. हमारे बाराबंकी के कॉलेज में इस स्कॉलरशिप को बड़े बाबू श्री – (अब उनका नाम लालची बड़े बाबू ही मान लीजिए) डील करते थे मैंने आवश्यक दस्तावेज़ पहले ही ऑफिस में जमा कर दिए थे. बड़े बाबू ने कागज़ात लेते समय मुझे बहुत कस के घूरा था जिसका कारण उस समय मेरे समझ में नहीं आया था. बाद में मित्रों ने बताया कि लालची बड़े बाबू खर्चा पानी लिए बिना तो अपने बाप का काम भी नहीं करते. लेकिन मैं दूसरी मिट्टी का बना था. पैसे देकर अपना वाजिब काम कराना मेरे उसूलों के खिलाफ़ था और मैं समझता था कि ऐसे हर बेईमान को मेरे पिताजी अपनी अदालत में कड़ी से कड़ी सज़ा दे सकते हैं.
लालची बड़े बाबू के पास जब भी मैं स्कॉलरशिप के बारे में पता करने जाता तो वो घुड़क कर मुझे भगा देते थे. इन 120 रुपयों के पीछे कम से कम 10-12 बार तो मैंने झिड़की, घुड़की, डांट-फटकार आदि तो खाई ही होगी पर अब पानी सर से ऊपर निकल गया था. मैंने अब अपने ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने का निश्चय किया और लालची बड़े बाबू की शिकायत पिताजी से कर दी.
मैं कल्पना कर ही रहा था कि पिताजी लालची बड़े बाबू को कठोर दंड सुनाने के साथ मेरा बकाया स्कॉलरशिप दिलाने का आदेश पारित कर देंगे पर ये क्या हुआ? पिताजी बेरुखी से बोले –
‘अपने कॉलेज की बात मुझसे क्यों कर रहे हो? बड़ा बाबू बेईमान है तो उसकी शिकायत अपने प्रिंसिपल से करो.’
अब मैं पिताजी को कैसे बताता कि प्रिंसिपल साहब से बड़े बाबू की शिकायत कर पाना मेरे लिए असंभव था.
लालची बड़े बाबू को पता था कि मेरे पिताजी जुडिशियल मजिस्ट्रेट हैं पर वो इस से बिलकुल भी रौब में नहीं आए और बिना दस्तूरी लिए मेरा काम करने को क़तई तैयार नहीं थे. अब मैंने खुद ही न्यायाधीश बनने का फ़ैसला कर लिया.
पिताजी के पास रेमिंगटन का पोर्टेबल टाइपराइटर था अपने जजमेंट की सीक्रेसी मेन्टेन करने के लिए पिताजी खुद ही उन्हें अपने टाइपराइटर पर टाइप करते थे. हम बच्चे भी उनकी अनुमति से और उनके निर्देशन में उनके टाइपराइटर पर टाइपिंग में पारंगत होते रहते थे. खैर टाइपिंग तो मुझे क्या आई पर एक ऊँगली से लेटर टाइप करना तो आ ही गया था.
‘A quick brown fox jumps over the lazy dog’
इस छोटे से वाक्य में 'ए' से लेकर ‘ज़ेड’ तक के सभी अक्षर आ जाते हैं और मैं इतना टाइप करना तो जान ही गया था.
मेरा अंग्रेज़ी ज्ञान किसी बर्नार्ड शॉ से कम नहीं था. लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी के एम. ए. मेरे पिताजी और अंग्रेज़ी में महा-निष्णात मेरे बड़े भाई साहब भी मुझे अंग्रेज़ी का पंडित नहीं बना सके थे. अंग्रेज़ी से हिंदी करना तो मुझे आता था पर अंग्रेज़ी में कुछ भी लिखने के लिए उसको कंठस्थ करना बड़ा ज़रुरी होता था. अब चाहे वो एप्लीकेशन हो, चाहे कम्प्लेन हो, चाहे एसे हो.
अब मैंने पिताजी की ओर से लालची बड़े बाबू के खिलाफ़ एक कम्प्लेन लिखने का निश्चय किया. टाइप राइटर ज़िन्दाबाद! अब टाइपराइटर पर टाइप की हुई मेरी शिकायत में तो मेरी बचकानी राइटिंग भी छुप जानी थी. मुझे लीव एप्लीकेशन लिखना आता था. उसी पैटर्न पर मैंने पिताजी की ओर से प्रिंसिपल साहब को कम्प्लेन टाइप कर दी.
मुझे पता था कि पिताजी को अगर मेरी गुस्ताखी का पता चल गया तो दो-चार जन्म तो वो लगातार मुझको फांसी की सज़ा दिलवा ही देंगे पर उन्हें पता चलना ही कहाँ था?
मैंने कम्प्लेन टाइप की –
To
The Principal,
Government Inter College,
Barabanki.
Sir,
With due respect, I beg to say that the Head Clerk of your office Shri --- is very dishonest. He is is not releasing the second instalment of the High School Merit Scholarship of my son Gopesh Mohan Jaswal, a student of Class Xth.
Kindly do the needful and punish the culprit.
With regards,
Yours faithfully,
A. P, Jaswal
Dated : ---
शिकायत पत्र को और भी अधिक प्रामाणिक बनाने के लिए मैंने पिताजी के सिर्फ़ हस्ताक्षर ही नहीं बनाए बल्कि उनकी सरकारी मुहर भी उस पर लगा दी.
मुझे पता था कि लालची बड़े बाबू भी मेरी तरह अंग्रेज़ी में पैदल हैं. मैं बड़े रौब से बड़े बाबू के पास पहुंचा और बहुत आत्मविश्वास से उन से बोला –
‘बड़े बाबू ! पिताजी ने आपके खिलाफ़ प्रिंसिपल साहब को यह शिकायत भेजी है पर उन्होंने कहा है कि इसे तुम पहले बड़े बाबू को दिखाओ, अगर वो तुम्हारे स्कॉलरशिप के पैसे तुम्हें फिर भी नहीं दें तो फिर तुम इसे अपने प्रिंसिपल साहब को दे देना.
बड़े बाबू ने घूरते हुए वो कागज़ मुझसे ले लिया. बहुत देर तक वो उसे रुक-रुक कर हक्ला-हक्ला कर पढ़ते रहे. पहले उनका चेहरा पीला हुआ फिर उनके कान लाल हुए फिर उन्होंने कुछ देर अपनी आँखें बंद कर लीं फिर एक दम से ममता की मूर्ति बनकर बोले -
‘अरे बेटा गोपेश ! तुमने अपने पिताजी को नाहक तकलीफ़ दी. तुम्हारे स्कॉलरशिप के पैसे तो परसों ही आ गए थे. मैं तो चपरासी भेजकर तुमको बुलवाने ही वाला था.’
बड़े बाबू ने मेरी रकम मुझे सौंपी और रसीद में रेवेन्यू स्टाम्प भी अपनी ओर से लगा दी.
मैंने शिकायत वाला पत्र उनके सामने ही नष्ट कर दिया.
अंत भला तो सब भला. पर कहना होगा कि सत्य की नहीं बल्कि असत्य की जय हुई.
पिताजी को कभी मैंने अपनी इस गुस्ताखी के बारे में नहीं बताया पर अब लगता है कि पिताजी स्वर्ग में बैठे मेरी इस बदमाशी के विषय जानकर हंस रहे होंगे और लालची बड़े बाबू आज जहाँ भी होंगे, वहां उस घटना को याद करते हुए,  अपने दांत पीस रहे होंगे.

ow More Reactions


6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही रोचक प्रस्तुति और इस घटना से साफ हो जाता है कि भ्रष्टाचार की जड़े कितनी गहरी है और इसमें सरकार या अन्य व्यवस्था पर भाड़ी है आम जनता की भागीदारी। हम अपने आप को ईमानदार बना लें तो सिस्टम अपने आप ठीक हो जायेगा। आपकी लघु कथा को पढ़कर आनंद आ गया।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रशंसा के के लिए धन्यवाद राकेश कुमार राही जी.पुराने ज़माने के बेईमान आज के बेईमानों की तुलना में भोले और नादान थे जो किसी किशोर की चतुराई के झांसे में आ जाते थे. आज तो किसी मुख्यमंत्री का शिकायती पत्र भी उन्हें रिश्वतखोरी के मार्ग पर चलने से विचलित नहीं कर सकता.

      हटाएं
  2. मतलब आप बचपन से ही शरारती रहे :) बढ़िया। ऐसा कुछ यहाँ भी कर सकते थे आप हमारे यहाँ के बड़े बड़े बाबुओं के लिये|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद सुशील बाबू. मेरी ये चतुराई विश्वविद्यालयों के, ए. जी. ऑफिस के और ट्रेज़री ऑफिस के बाबुओं के सामने बिलकुल भी नहीं चल पाई थी. वो सब मुझसे कहीं अधिक सयाने निकले.

      हटाएं
    2. अब धीरे धीरे आप पकड़ने लगे हैं ब्लॉग की दुनियाँ को। आपकी ब्लॉग सूची में थोड़े से ब्लॉग हैं । संख्या बढ़ाइये। जो जो ब्लॉग आपको अच्छे लगते हैं उनसे जुड़ते चलें।

      हटाएं
    3. वाक़ई, मुझे अब विभिन्न ब्लॉग से जुड़ना अच्छा लग रहा है. आगे से और भी ब्लॉग में प्रकशित सामग्री पढ़ा करूँगा.

      हटाएं