रविवार, 21 अक्टूबर 2018

शाश्वत गुनाहगार ‘कॉमन मैन’ और सदा-निष्पाप वी. आई. पी.


अकबर इलाहाबादी’, ओह माफ़ कीजिएगा ! अकबर प्रयागराजी ने आम आदमी की जीवन भर की उपलब्धियों पर क्या ख़ूब कहा है -
हम क्या कहें, अहबाब वो, कारे नुमाया, कर गए,
बी. ए. किया, नौकर हुए, पेंशन मिली, और मर गए.’
(हम क्या बताएं कि उन्होंने अपने जीवन में क्या-क्या उल्लेखनीय कार्य किए. उन्होंने बी. ए. किया, फिर नौकरी की, फिर उन्हें पेंशन मिली, और फिर वो मर गए.)

आर. के. लक्ष्मण के कार्टूनों के कॉमन मैन की की उड़ी-उड़ी ज़ुल्फ़ें, उसके चेहरे पर बदहवासी या हैरानी वाला भाव, और उसके सामने उसका खून पीने वाले की आत्म-विश्वास से भरी हेकड़ी वाली मुद्रा कौन भूल सकता है?
कॉमन मैन केंचुआ किस्म का वह प्राणी होता है जिसको अगर आप अपने पैरों से कुचलें तो वह आपके पैरों के नीचे दबे-दबे ही विनम्रता से पूछेगा –
हुज़ूर, मुझे कुचलने में आपको कोई तकलीफ़ तो नहीं हो रही है?’
ये भोला सा और निरीह सा दिखने वाला कॉमन मैन बड़े से बड़े गुनाह करता है. मसलन - कभी-कभार बिना हेल्मेट पहने हुए स्कूटर चलाता हुआ पकड़ा जाता है और वो भी तीन-तीन सवारियों के साथ. कभी ट्रेन में यह अपने छह-सात साल के बच्चे को पांच साल से कम का बताकर उसे बिना टिकट ले जाता हुआ टी. टी. ई द्वारा धर लिया जाता है तो कभी जीएसटी बचाने के लिए बिना रसीद के सामान खरीदता है और देशद्रोही तो इतना है कि दीपावली पर रौशनी करने के लिए अपने घर में चायनीज़ लड़ियाँ लगाता है. मंदिर-मस्जिद जाकर यह दान की पेटी में अक्सर कटे-फटे और तुड़े-मुड़े नोट डालता है. इसको अपना काम निकालने के लिए सुविधा शुल्क देने का गुनाह-ए-अज़ीम करने की तो ऐसी आदत पड़ गयी है कि अगर इसका कोई काम यूँ ही कर दे तो ये समझता है कि अगले ने उसे धोखा दिया है.
ऐसी पाप भरी ज़िन्दगी बिताने वाले से भला ऊपर वाला कैसे खुश रह सकता है? इसीलिए वह अगर डेली बेसिस पर नहीं तो कम से कम साप्ताहिक स्तर पर एक नई मुसीबत से उसे दो-चार कराता रहता है.
एक कॉमन मैन का, यानी कि ख़ुद अपना एक किस्सा याद आ रहा है.
2013 में हम पति-पत्नी को अपने पासपोर्ट्स बनवाने थे. उन दिनों इसके लिए मैरिज सर्टिफ़िकेट भी बनवाना पड़ता था. हम सम्बंधित अधिकारी के पास गए तो उसने पूछा –
'आप लोगों के पास क्या अपनी शादी का कार्ड है?’
मैंने दुखी होकर जवाब दिया –
हमारी शादी हुए एक अर्सा हो गया है. इस बीच दसियों बार हमने घर बदले हैं. अब हमारे पास अपनी शादी का कार्ड नहीं है पर हाँ,  हमारी बड़ी बेटी की शादी का कार्ड हमारे पास रक्खा है. हम उसे ज़रूर दिखा सकते हैं.
अधिकारी महोदय मेरी बात पर हँसे फिर सख्ती से बोले –
तो आपकी बिटिया का मैरिज सर्टिफ़िकेट बनवा देते हैं.’
मेरे हाय-हाय करने पर उन्होंने हमारे मैरिज सर्टिफ़िकेट के लिए ख़ुद पंडित की भूमिका निभाने के लिए एक हज़ार की दक्षिणा की मांग कर दी और साथ में एक राजपत्रित अधिकारी से हमारी शादी हो जाने का एक प्रमाण पत्र भी संलग्न करने के लिए कहा. यह बात और है कि जब एक हफ़्ते बाद हमने केंद्र सरकार के एक बहुत बड़े अधिकारी से अपनी शादी को प्रमाणित किए जाने का प्रमाणपत्र प्रस्तुत किया तो फिर उन्होंने पंडित के रूप में अपनी दक्षिणा की डिमांड को एक मज़ाक़ बता दिया.
नोटबंदी के वक़्त जब कॉमन मैन बैंकों के आगे क़तारों में घंटों खड़े रहकर अपनी टाँगे तोड़ते हुए धूप सेकने का आनंद ले रहा था तब वी. आई. पी. लोग एक फ़ोन पर, अरबों-करोड़ों के काले धन को, उज्जवल, निष्कलंक और सफ़ेद बनवा रहे थे.  
      
कॉमन मैन की व्यथा के बाद अब इस कथा के दूसरे भाग पर आते हैं अर्थात् ईश्वर के प्रिय - वी. आई. पी. समुदाय की सदा-निष्पाप, सदा-निष्कलंक स्थिति पर.
कल नेटफ्लिक्स पर इस साल की सुपर हिट फ़िल्म संजू देखी. इस फ़िल्म को देखने के बाद हमको यह ज्ञान मिला कि किसी वी. आई. पी. का बच्चा कभी ख़ुद गलतियाँ नहीं करता, बल्कि कोई खलनायक ही उसके द्वारा की गयी ग़लतियों के लिए ज़िम्मेदार होता है. अगर वो ड्रग्स लेता है तो यह किसी गॉडकी साज़िश होती है, अगर वो अपने सबसे वफ़ादार दोस्त की गर्ल फ्रेंड चुराता है तो इसका दोष उस दोस्त की निष्क्रियता और उसकी गर्ल फ्रेंड की नापाक हरक़तों का होता है, उसके द्वारा अपने घर में आतंकवादियों के असले छुपाने के पीछे भी अपने पप्पा की और अपनी बहनों की जान बचाने का पवित्र कर्तव्य होता है.
ज़ालिम बिश्नोई समुदाय अपनी खुंदक निकालने के लिए एक मासूम सुपर स्टार पर हिरन मारने का झूठा इल्ज़ाम लगा देता है जब कि सच्चाई यह है कि कि मक़तूल हिरन ने ख़ुदकुशी की थी. मुझे ताज्जुब होता है कि हमारे सुपर स्टार के किसी  काबिल वक़ील ने, इस संदर्भ में, कोर्ट में, उस हिरन का डाइंग डिक्लेरेशन अभी तक क्यों नहीं जमा किया है.  
आप लाख जॉली एलएल. बी. बना लीजिए लेकिन अदालतों में यह बार-बार साबित कर दिया जाएगा कि तेज़ रफ़्तार से फ़ुटपाथ पर सोने वालों को कुचलने वाली गाड़ी को कोई रईसज़ादा नहीं, बल्कि उसका अभागा ड्राईवर चला रहा था या फिर - फ़ुटपाथ पर पहले से ही कुचले हुए लोग सो रहे थे.   
तुलसीदास जी कहते हैं –
समरथ को नहिं, दोस गुसाईं !
आज इस पंक्ति में सुधार किए जाने की आवश्यकता है. इसके चार सुधरे रूप प्रस्तुत हैं -  
1.   समरथ जेब, क़ानून गुसाईं !
2.   समरथ जेब, दरोगा साईं !
3.   समरथ जेब, मीडिया साईं !
4.   समरथ जेब, मिनिस्टर साईं !
रावण-दहन के वक़्त अमृतसर में ट्रेन हादसा होता है जिसमें तक़रीबन 60 लोग मारे जाते हैं लेकिन इसके लिए दोषी किसी को नहीं माना जाता है. एफ़. आई. आर. लिखाई जाती है तो किसी बेनाम के खिलाफ़. इस विषय में बड़ा बवाल हो रहा है. इस हादसे को लेकर सिद्धू दंपत्ति और पंजाब की सरकार की बड़ी किरकिरी हो रही है. इन वी. आई. पी. लोगों को ऐसे लांछनों से बचने के लिए मेरा सुझाव है कि वो एफ़. आई. आर. पाकिस्तान के खिलाफ़ लिखवा दें. आख़िर अमृतसर पाकिस्तान से लगा हुआ ही तो है.

आज मैंने ऊपर वाले के पास इस आशय की अपनी एक हजारवीं अर्ज़ी भेज दी है कि वो अगले जनम में मुझे वी. आई. पी. या किसी वी. आई. पी. का बेटा बना दे.
एक बार अगर ऐसा हो गया तो फिर तो मेरे सात खून माफ़ हो जाएंगे पर मैं इस बात को सोच-सोच कर परेशान हुआ जा रहा हूँ कि अगर मैंने आठवाँ खून भी कर दिया तो मेरे साफ़ बच निकलने का क्या रास्ता होगा !

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपने जो भी पढ़ा है उसे किसी को ना पढ़ाना
    आपने जो भी सीखा है अब किसी को ना सिखाना
    कुछ करने की तमन्ना अभी भी बची है अगर
    उसके किसी चमचे की कक्षा में
    रोज जाने का ढूँढ लेना अब कोई बहाना
    अगले जनम में तभी तर पाओगे जनाबे आला
    इस जनम उसको पहले
    बना लोगे अगर अपना ऊपर वाला।

    लिक्खे जाओ लिक्खे जाओ।

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  2. हाय, ये शिक्षा तुम तब दे रहे हो जब अपनी शमा बुझने वाली है. खैर कोई बात नहीं, तुम्हारी हिदायतें हमारे अगले जनम में काम आएंगी. और रही लिखते रहने की बात तो तुम्हारे जैसे कद्रदान अगर हमारा लिखा पढ़ते रहेंगे और यूँ ही हमारा हौसला बढ़ाते रहेंगे तो हम लिखते रहेंगे, लिखते रहेंगे.

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/10/2018 की बुलेटिन, विरोधाभास - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. ब्लॉग बुलेटिन के आज के अंक में मेरी रचना सम्मिलित करने के लिए धन्यवाद शिवम् मिश्राजी. आप लोगों का स्नेह और प्रोत्साहन मेरे लिए अमूल्य है.

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  5. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २२ अक्टूबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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    1. धन्यवाद ध्रुव सिंह जी. आप गुणीजन के प्रेम ने मुझ 'कॉमन मैन'को औरों की नज़रों में तो नहीं, लेकिन मेरी अपनी नज़र में 'वी. आई. पी.' बना दिया है. 'लोकतंत्र' संवाद मंच का मैं नियमित अध्ययन करता हूँ.

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  6. मेरिज सर्टिफ़िकेट तो हमने। ही ऐसे ही बनवाया .... हमारे बच्चे चीख़ते रहे हम इनके बच्चे हैं पर नहि माने तो नहि माने ... फिर आम आदमी की तरह व्यवहार किया मान गए ...
    इलाहाबादी साहब सही कह गए हैं ... ही चक्र है सब का ...
    अच्छा आलेख है ...

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    1. धन्यवाद दिगंबर नसवा जी. लोग बेकार ही कहते हैं कि गाँधी जी को इस ज़माने में भुला दिया गया है. मैंने देशभक्तों को, समाज-सेवकों को और देश-संचालकों को उनकी तस्वीर छपे कागज़ों को हम जैसे कॉमन मैन से बार-बार माँगते देखा है.

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  7. क्या सटिक व्यंग लिखा हैं👌👌गोपेश जी!मैं आपके लेखनी की कायल हो गई हूं। बहुत खूब। अपने ब्लॉग पर ई मेल सबस्क्रिबशन का विजेट लगाइए न ताकि आपके नए पोस्ट की जानकारी मिल सके।

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    1. प्रशंसा के लिए धन्यवाद ज्योति जी. आपके सुझाव पर अमल किया जाएगा.

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  8. सटीक व्यंग्य। गलती हमेशा कमजोर की ही होती है।सुन्दर आलेख।

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    1. धन्यवाद विकास जी. खून के घूँट पीकर जीने की आदत डाल लेने वाला कमज़ोर हमेशा खुश रहता है (या खुश रहने का नाटक कर लेता है.)

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