उत्तराखंड की स्थापना से लगभग दो वर्ष पहले कही
गयी मेरी काव्यात्मक भविष्यवाणी -
(अब पाठकगण बतलाएं कि मेरी ज्योतिष की दुकान चल पाएगी या नहीं?)
उत्तराखण्ड की लोरी
बेटे का प्रश्न –
मां ! जब पर्वत प्रान्त बनेगा, सुख सुविधा मिल जाएंगी?
दुःख-दारिद्र मिटेंगे सारे, व्यथा दूर हो जाएंगी?
रोटी, कपड़ा, कुटिया क्या,
सब लोगों को मिल पाएंगी?
फिर से वन में कुसुम खिलेंगे,
क्या नदियां मुस्काएंगी?
माँ का उत्तर -
अरे भेड़ के पुत्र,
भेड़िये से क्यों आशा करता है?
दिवा स्वप्न में मग्न भले रह,
पर सच से क्यों डरता है?
सीधा रस्ता चलने वाला,
तिल-तिल कर ही मरता है,
कोई नृप हो, हम जैसा, आजीवन पानी भरता है.
अभी भेड़िया बहुत दूर है,
फिर समीप आ जाएगा,
नहीं एक-दो, फिर तो वह, सारा कुनबा खा जाएगा.
चाहे जिसको रक्षक चुन ले,
वह भक्षक बन जाएगा,
तेरे श्रमकण और लहू से, अपनी प्यास बुझाएगा.
बेगानी शादी में ख़ुश है, किन्तु नहीं गुड़ पाएगा,
तेरा तो सौभाग्य पुत्र भी,
तुझे देख मुड़ जाएगा.
प्रान्त बनेगा, नेता-अफ़सर का मेला, जुड़ जाएगा,
सरकारी अनुदान समूचा, भत्तों में उड़ जाएगा.
राजनीति की उठा-पटक से, हर पर्वत हिल जाएगा,
देव भूमि का सत्य-धर्म सब,
मिट्टी में मिल जाएगा.
वन तो यूं ही जला करेंगे,
कुसुम कहां खिल पाएगा,
हम सी लावारिस लाशों का,
कफ़न नहीं सिल पाएगा.
रात हो गई, मेहनतकश सब, अपने घर जाते होंगे,
जल से चुपड़ी, बासी
रोटी, सुख से वो खाते होंगे.
चिन्ता मत कर, मुक्ति कभी तो, हम जैसे पाते होंगे,
सो जा बेटा, मधुशाला से, बापू भी आते होंगे.
सटीक।
जवाब देंहटाएं2019 की भविष्यवाणी कर डालिये
राम सुना है बनेंगे राजा
रामराज्य की फिर से
एक और घोषणा कर डालिये ।
मेरी यह पुरानी कविता तो तुम पढ़ ही चुके हो -
जवाब देंहटाएं'हर तरफ़ मजबूरियां हैं, हर तरफ़ फ़रियाद है,
राम, तेरे राज की, कितनी हंसी बुनियाद है.
ख़ुदकुशी के फ़ैसले से, दूर होंगी मुश्किलें,
हम परिंदों ने, हिफाज़तदां चुना, सैयाद है.'
तो मित्र ! 2019 के चुनाव तक हम परिंदों का बचना तो मुश्किल है पर अगर बात सिर्फ़ भविष्यवाणी की है तो लौट-फिर के किसी सैयाद को ही परिंदों की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी मिलने वाली है.
व्यंग्यात्मक शैली में लिखने मेंं कोई जवाब नही आपका .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीनाजी. यह भविष्यवाणी व्यंग्यात्मक अवश्य थी लेकिन मेरे दिल में इस क्षेत्र की वाकई फ़िक्र थी और इस भविष्यवाणी के सच निकलने पर मुझे बहुत दुःख हुआ है.
हटाएंजी सर,कमोबेस हर प्रदेश की यही कहानी है।
जवाब देंहटाएंखंड कोई भी हो दर्द की एक जैसी रवानी है।।
आपकी लेखनी से निकले बुलेट काश कि प्रतिनिधियों के सीने तक पहुँच पाते।
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने सर।
सादर
प्रशंसा के लिए धन्यवाद श्वेता जी, ठगों का अपना देश-प्रदेश नहीं होता. इस विषय में वो 'वसुधैव कुटुम्बकं' की अवधारणा में विश्वास करते हैं.
हटाएंजन-प्रतिनिधियों के चिकने कानों पर जय शंकर प्रसाद कह चुके हैं -
'मुख-कमल समीप सजे थे, दो किसलय से पुरइन के,
जल-बिंदु सदृश कब ठहरे, इन कानों में दुःख किनके.'